ना तख़्त रहेंगे ना ताज़ रहेंगे,
ना करोना के नामोनिशान रहेंगे.
तारीख़ में कुछ नाम दर्ज़ रहेंगे,
मना रहे थे जश्न महामारी में.
मेहमाननवाज़ी भी हुई ज़ोरो से,
बदली हुकूमत भी खूब शोरो से.
धमकियाँ भी खाई खूब शेरों ने,
मज़हबी दहशत भी फैलाई लोगो ने.
बजा थाली, जला दीया बाती,
मनाई सालगिरह भी सियासतदानों ने.
खड़ा था पूरा अवाम खामोशी से,
देख रहा था तबाही बेबस आँखों से.(आलिम)