।। कविता ।। ## तेरा जाना ##
अब न आओगे कभी तुम लौट करके फिर कभी ।
चाहने वाले तुम्हारे लौट कर अा जाएंगे ।।
याद तेरी तिफ्ल तेरी मौज तेरी तिस्नगी ।
भस्म कर तेरी चिता पर फूल यों बरसाएंगे ।।
चाह कर भी वक़्त गुजरा लौट न पाएगा फिर ।
अब तुम्हारी इस कमी को खाक क्या भर पाएंगे ।।
भूल भी जाएं कभी जो रात कातिल बीतती ।
पर तुम्हारी उस हंसी को भूल कैसे पाएंगे ।।
आज अरसे बाद रोया फूट कर मैं यूं "प्रणव" ।
जिस तरह दस साल पहले खो दिया था भ्रात यों ।। .
रजत और अंकुर तुम्हारी याद आएगी सदा ।
सदा सी देती रहेगी , ख़ामोश तेरी ये सदा ।।
निठुर से लेटे हो तुम पर कुछ नहीं हो बोलते ।
भूल क्या जाओगे अपने दोस्तों को इस तरह ।।
साथ जो देखे तुम्हारे ख्वाब वो दिनरात सब ।
अब बहुत ही मुश्किलें आएंगी उसके दरमियां ।।
देख पाओगे वहां से जिस वतन के राह हो ।
चल पड़े हो करके विस्मृत साथ अपने तात को ।।
गिर पड़ी है मां तुम्हारी उस पुराने वृक्ष सी ।
ज्यों की कोई नीड़ उजड़े बर्फ पड़ती रात को ।।
मां तुम्हारी अब कभी भी न उबर पाएगी यूं ।
हर सुबकती सांस होगी आस टूटी बात में ।।
सपने सारे भग्न होंगे , सांस गिरवी ईश की ।
उम्र सारी कम पड़ेगी , जिंदगी एक टीस सी ।।
डॉ.आलोक कुमार तिवारी(यायावर)
"कल्पद्रुम " सुल्तानपुर
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26/05/2020 ©®