सद्भावी मानव बन्धुओं ! यह बात तो सही है कि थाना-पुलिस के भय से लोग मनमाना नहीं कर पाते हैं परन्तु यह बात मात्र सज्जन पुरुषों एवं अच्छे कहे जाने वालों में ही है । जिनका थोड़ा भी सम्बन्ध किसी सांसद, विधायक से है वे, और उच्चस्थ पदाधिकारियों से सम्बन्धित जो तथा जितने भी अपराध प्रवृत्ति के हैं, अगर थाना से भी कुछ सम्बन्ध (कमीशन माहवारी) स्थापित कर लिये हैं वे भी, थोड़ा भी पुलिस से नहीं डरते हैं । पुलिस से भयभीत तो मध्यम और कमजोर वर्ग के हैं उनमें भी जिन्हें एक-आध बार भी पुलिस पकड़ कर जेल भेज दी है और जेल से लौट आये हैं वे नहीं।
जन-मानस अथवा समाज में अपराध बढ़ने में पचहत्तर से अस्सी प्रतिशत हाथ तो अपराध नियन्त्रक आरक्षी या पुलिस का है । यदि किसी क्षेत्र में अपराध न हो तो थाना-पुलिस की जरूरत यानी आवश्यकता ही नहीं रह जायेगी तथा पुलिस की आमदनी जो सबसे ही आवश्यक हो गया है तथा उन्नति कैसे होगी ? पुलिस परोक्ष रूप से स्वयं ही अपराध का उत्प्रेरण, षड्यन्त्र तथा अपराधियों में उनका संरक्षण जिनसे आमदनी होती है, करती-कराती है । क्षेत्रों मे अपराध बढ़नें से पुलिस की आमदनी (घूस के जरिये) बढ़ती है थाना-पुलिस अपराधियों में सामान्य (छोटे किस्म के) लोगों को पकड़-पकड़ खूंखार अपराधी घोषित कर-करवा देना, जिससे विभागीय प्रतिष्ठा एवं उन्नति मिले, बड़े किस्म के अपराधी तो तब पकड़ाते हैं जब कमीशन में गड़बड़ी अथवा जो सामाजिक दृष्टि में आ गये हैं जिससे पुलिस को बदनाम होना है ।
अपराध होने से पुलिस को अपराधी से आमदनी अलग, जिनके यहाँ डकैती, या चोरी या अन्य अपराध हुआ केस (मुकद्मा) चलाने के लिये उनसे लिया गया घूस जो अनिवार्य है, नहीं तो पचानवे प्रतिशत तो नहीं घूस पाने अथवा थाना का रेकार्ड खराब होने के भय से दर्ज ही नहीं होता है । एक ईमानदारी तो पुलिस में अब खूब है कि खूब खाती (घूस लेती) है और खूब काम करती है । दोनों पक्षों से खाती है और साथ ही कम-वेश दोनों पक्षों का काम करती है यदि कोई रुपया देकर किसी को तंग या परेशान तथा बेइज्जत करने के लिये झूठ-मूठ में भी कुछ इल्जाम लगा कर एफ0आई0आर0 दर्ज करके, उनसे भी पैसा ऐंठ कर फाइनल भी उनके तरफ से लगा देती है । इस काम में तो पुलिस माहिर है ।
हम सभी लोगों (हम तथा हमारे अनुयायी) द्वारा पुलिस के ऐसे ही अनेकानेक-प्रस्तावों पर ध्यान न देना तथा विपक्ष द्वारा सदा तैयार और पूर्ति करना ही है कि समाज सुधार एवं समाजोद्धार हेतु संकल्प लेकर अपना सर्वस्व समाज कल्याण हेतु न्यौछावर करने हेतु समाज में उतरा है तो वही आज विपक्ष (दुष्ट-वर्ग) के ताल-मेल तथा हमसे आमदनी का न होना ही है जो आज कारा-बन्द करते-कराते हुये समाज विरोधी एवं अपराध कर्मी घोषित होते जा रहे हैं परन्तु हम लोग भी प्रतीक्षा में है कि अन्याय की भी एक सीमा होगी जिसे कभी न कभी खत्म होना ही है ।
सद्भावी बन्धुओं ! यह अकाट्य सत्य है कि यदि क्षेत्र में अपराध समाप्त तो समाप्त है कम भी हो जाय तो पुलिस की परेशानी यहाँ तक बढ़ सकती है कि रुपया-पैसा के लिये रात में वह डाका डालेगी तथा दिन में कुछ लोगों को पकड़ कर जेल भेज देगी । पैसा देकर पुलिस से कुछ भी करवाया जा सकता है तथा हो भी रहा है । सबसे बड़ी आमदनी तो पुलिस को डाकुओं, चोरों और लूटेरों से है । मुकद्मा करने (एक0आई0आर0) दर्ज तथा पक्ष में रिपोर्ट वाले से अलग, चोर, डाकू, लूटेरों से अलग तथा छापामारी एवं माल बरामद में तो पूछना ही क्या है । यदि यह कहा जाय कि कानून की दृष्टि से बच-बचा कर मात्र रात्रि में चोरी-डकैती करने वालों पर नियंत्रण उन बन्धुओं को सौंपा गया है जो कानूनी मर्यादा के साथ थाना-पुलिस, इन्सपेक्टर, एस0सी0 आदि कहलाने वाले दिन के जबर्दस्त ‘चोर-डाकू’ तो नहीं परन्तु घूसखोर और लूटेरा है यह बात अक्षरशः शतप्रतिशत सही एवं समाज के हर दिलों द्वारा समर्थित है ।
हालांकि मात्र थाना-पुलिस को ही घूसखोर एवं लूटेरा कहना दोष हो सकता है क्योंकि आज लगभग अन्ठानबे-निन्यानबे प्रतिशत कर्मचारी-अधिकारी चांदी काटने पर लगे हैं परन्तु नेता, राजनेता, मन्त्रीगण तो सोना ही काट रहे हैं । क्या मौज था राजतन्त्र के राजाओं तथा उनके कारिंदों को, जमींदारों तथा उनके सिपाहियों को ? आज के सरकारी कर्मचारी और अधिकारियों तथा नेता राजनेताओं को जो मौज आज है, वह शायद ही रावण, मारीच, खर-दूषण, अहिरावण तथा कंस, दुर्योधन, जरासिंध तथा शिशुपाल आदि के कर्मचारी एवं अधिकारी गण पाये हों । आज रहते तो उनको भी सीखना पड़ता कि मौज राजतन्त्र के कर्मचारी-अधकारी तथ नेता, राजनेता में नहीं अपितु जनतन्त्र के कर्मचारी-अधिकारी, नेता एवं राजनेता बनने में है । मौज, लूट-खसोट के माामलों में उन लोगों के पास कोई तरकीब नहीं थे, कोई उपाय नहीं थे, कोई खास ढंग एवं अनुभव भी नहीं था ।
इस मामले में आज की परिस्थिति तो कितनी गुनी अधिक है यह कहना भी कठिन है क्योंकि तुलना करने पर हो सकता है कि लूट-खसोट एवं मौज के मामलों में आज के कर्मचारी-अधिकारी तथा नेता राजनेता की तुलना किया जाय तो उस समय (राजतन्त्र) के कर्मचारी-अधिकारी एवं जमींदार तथा राजा बहुत ही फींका पड़ जायेंगे । तुलना का मेल ही नहीं होगा । अन्ततः बन्धुओं ! हम तो इस निष्कर्ष पर पहुँच गये हैं कि हर-बार की तरह इस बार भी भगवान् का भी इस परिस्थिति को बदलने में कितनी परेशानी एवं कठिनाइयों, कष्ट एवं यातनाओं से गुजरते हुये ‘ठीक’ करना पड़ेगा, यह वही जानते हैं क्योंकि वर्तमान विकृत परिस्थिति को बदलना एवं जन-कल्याण हेतु जन-मानस को अमन-चैन में रखना तो उनका एक मात्र लक्ष्य ही होता है परन्तु लग रहा है कि इस बार समाज एवं दुनियां को ठीक करने में विशेष परेशानी एवं कठिनाई उठानी पड़ेगी ।
- सन्त ज्ञान ेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस