shabd-logo

मानव अधिकार माने क्या ?

17 सितम्बर 2016

432 बार देखा गया 432
परमेश्वर ने जब इस संसार की रचना की तो उसने सत्य भी बनाया और असत्य भी बनाया, प्रकाश भी बनाया और अंधकार भी बनाया, मृत्यु भी बनाई और अमरता भी बनाई। यह सोचने की जरूरत नहीं है कि परमेश्वर ने अच्छाई के साथ साथ बुराई क्यों बनाई। क्योंकि दुनिया का कोई भी खेल दो परस्पर विरोधी पक्षों के बिना पूरा नहीं होता, और यह संसार परमेश्वर द्वारा रचा गया एक खेल ही तो है। इस प्रकार इस संसार की रचना द्वैत (दो चीजों) से हुई है। इस द्वैत का ही परिणाम है कि जब मानव की उत्पत्ति हुई तो दानव की उत्पत्ति भी हो गई। वास्तव में जो लोग सत्य और धर्म के रास्ते पर चले उन्हे मानव कहा गया और जो लोग असत्य और अधर्म के रास्ते पर चले उन्हे दानव कहा गया। हालांकि शारीरिक संरचना दोनों की समान ही होती है, परंतु अपने कर्मों के द्वारा ही उन्हे मानव या दानव कहा जाता है। इससे सिद्ध होता है कि सिर्फ शारीरिक संरचना के आधार पर ही किसी को मानव नहीं कहा जा सकता। मानव तो वह है जो जीवन के हर क्षेत्र में सत्य-धर्म का पालन करते हुये अपने कर्तव्यों को पूरा करता है। अब बात करते हैं मानव अधिकार की, तो इसके लिए पहले यह जानना जरूरी है कि अधिकार होता क्या है ? हम जो भी कर्तव्य-कर्म करते हैं, उसका जो फल बनता है, उसे ही अधिकार कहा जाता है। अर्थात अधिकार का मुख्य आधार कर्तव्य-कर्म ही है। बिना कर्तव्य-कर्म किए अधिकार की प्राप्ति हो ही नहीं सकती। अब कर्तव्य-कर्म को समझने के लिए सबसे पहले स्वयं को समझना जरूरी है। जब तक आप अपने आपको नहीं जानेंगे कि आप कौन हैं, तब तक यह कैसे पता चलेगा कि आपको करना क्या है या आपका कर्तव्य-कर्म क्या है ? बिना कर्तव्य-कर्म किए केवल अधिकार के लिए चिल्लाना केवल मूर्खता है। वैसे भी तो मानव के हाथ में केवल कर्तव्य-कर्म करना ही तो है, उसका फल देना तो प्रकृति के हाथ में है। तो फिर जो चीज आपके हाथ में है ही नहीं उसके लिए शोर मचाने से अच्छा है कि जो चीज आपके हाथ में है उस पर ध्यान दिया जाए। यानि कर्तव्य-कर्म करने पर ध्यान देने की जरूरत है। आज जिधर देखो उधर सब अधिकार के लिए लड़ते दिखाई देते हैं, कर्तव्य-कर्म पर कोई ध्यान नहीं देता। क्या कभी सुनने में आया है कि किसी ने कर्तव्य-कर्म को लेकर कोई हड़ताल या धरना-प्रदर्शन किया हो ? कर्तव्य-कर्म जरा भी नहीं करना पड़े और अधिकार पूरा मिल जाए, क्या यह सही है ? क्या ऐसे कामचोरों के अधिकारों के लिए लड़ने की जरूरत है ? ‘मानव अधिकार आयोग’, मानवों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनी एक ऐसी संस्था है जिसे मानव की परिभाषा ही नहीं मालूम, मानव और दानव में फर्क ही नहीं मालूम। यह आयोग तो केवल दो हाथ और दो पैर वाली शारीरिक संरचना को ही मानव समझता है। इससे पूछा जाए कि अगर यह शारीरिक संरचना ही मानव है तो फिर दानव क्या है? वास्तव में मानव या दानव होना कर्मों पर निर्भर करता है न कि शारीरिक संरचना पर। अगर कहीं पर किसी अपराधी, शैतान या दानव को पकड़कर दंडित किया जाता है तो ये मानव अधिकार आयोग वाले झट से मानव अधिकारों की दुहाई देने लगते हैं। मैं पूछता हूँ कि यह मानव अधिकार आयोग मानवों के लिए है या दानवों के लिए ? अगर किसी आतंकवादी को पकड़कर दंडित किया जाता है तो ये मानव अधिकार वाले तुरन्त चिल्लाने लगते हैं- रहम, रहम। अरे दानव के साथ कैसा रहम ? वह तो कठोर सजा का अधिकारी है न कि रहम का ताकि दुबारा फिर कभी कोई दानव समाज में पैदा ही न हो। सच्चाई तो यह है कि यह लोग मानव क्या होता है यह जानते ही नहीं हैं। जो व्यक्ति स्वयं को नहीं जानता वो अपने कर्तव्यों को भी नहीं जान सकता और जो अपने कर्तव्यों को नहीं जानता, उसके लिए कैसा अधिकार ? ऐसा व्यक्ति तो मानव कहलाने के योग्य ही नहीं है। इसलिए मानव अधिकार आयोग को भी चाहिए कि वह सिर्फ मानवों के लिए काम करे दानवों के लिए नहीं।

स्वामी सदानंद जी परमहंस की अन्य किताबें

1

मेरा उद्देश्य

26 जुलाई 2016
0
1
0

मेरा उद्देश्य“मेरा उद्देश्य आप समस्त सत्यान्वेषी भगवद् जिज्ञासुजन को दोष रहित, सत्य प्रधान, उन्मुक्तता और अमरता से युक्त सर्वोत्तम जीवन विधान से जोड़ते-गुजारते हुये लोक एवं परलोक दोनो जीवन को भरा-पूरा सन्तोषप्रद खुशहाल बनाना और बनाये रखते हुये धर्म-धर्मात्मा-धरती रक्षार्थ जिसके लिये साक्षात् परमप्रभ

2

एक बनें नेक बनें । वसुधैव कुटुम्बकम् की सार्थकता--

4 अगस्त 2016
0
1
0

एक बनें नेक बनें ।वसुधैव कुटुम्बकम् की सार्थकता--शारीरिक प्रतिक्रिया भावों को व्यक्त करने के माध्यम को ही भाषा कहते हैं । भाषाऐं अनेक हो सकती हैं मगर मूल भावार्थ तात्पर्य एक ही है जैसे हिन्दी में पानी, नीर कहिए, ऊर्दू में आव कहिए या अंग्रेजी में Water कहिए तीनों का मतलब भाव एक ही है चाहे पानी कहिए,

3

छोड़ दे बन्दे झूठे धंधे बन जा सच्चा इंसान रे मान रे माटी के पुतले मान रे

9 अगस्त 2016
0
2
0

छोड़ दे बन्दे झूठे धन्धे, बन जा सच्चा इन्सान रे ! छोड़ दे बन्दे झूठे धन्धे, बन जा सच्चा इन्सान रे, मान रे माटी के पुतले मान रे ।। तू इस मिट्टी के ढाँचे पे नाज करता है, तू किसी की आह को बिल्कुल नहीं समझता है । आज संसार में इंसानियत का नाम नहीं, यहाँ पर ऐसे दुर्जनो का कोई काम नहीं । आज के सन्त को , असन

4

शिक्षा (एजुकेशन) शिक्षा पध्दति

18 अगस्त 2016
0
1
0

शिक्षा (EDUCATION) शिक्षा पध्दति सद्भावी सत्यान्वेषी पाठक बन्धुओं ! शिक्षा प्रणाली आज की इतनी गिरी हुई एवं ऊल-जलूल है कि आज शिक्षा क्या दी जानी चाहिए ? और शिक्षा क्या दी जा रही है यह तो ऐसा लग रहा है कि शिक्षार्थी तो शिक्षार्थी ही है, यदि श

5

विश्व विद्वत् समाज एवं विश्व सरकारों को खुली चुनौती

18 अगस्त 2016
0
1
0

विश्व विद्वत् समाज एवं विश्व सरकारों को खुली चुनौती ================================ आज विश्व की समस्त सरकारें परेशान हैं जनसंख्या से ! बेकारी और बेरोजगारी से हर तरह भी कमियों एवं भूखमरी तथा नित्य बढ़ते हुये अपराधों से तो मैं, परमात्मा-परमेश्वर खुदा-गॉड-भगवान् या सर्वोच

6

दुष्परिणाम जो आज समाज भुगत रहा है

18 अगस्त 2016
0
2
0

अपना 'कर्तव्य' देखें, 'अधिकार' नहीं! सदभावी मानव बन्धुओं ! आजकल सर्वत्र यही देखा जा रहा है कि सभी कर्मचारी, अधिकारी, सामाजिक संस्थायें, राजनीतिक नेता गण आदि आदि प्राय: सभी के सभी ही अपने अधिकारों के माँग में

7

हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई

18 अगस्त 2016
0
1
0

हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई, शरीर से उठकर देखो भाई । नूर-सोल और ज्योति भाव में, देते हैं सब एक दिखलाई ।। इससे भी ऊपर उठकर देखो, खुदा-गाॅड-परमेश्वर है । वही सभी का परमप्रभु और वही एक भुवनेश्वर है ।। रूह-नूर और काल-अलम् ही , अहँ-सः और परमतत्त्वं है । सेल्फ-सोल एण्ड सुप्र

8

थाना-पुलिस या अपराध-उत्पादन-केन्द्र !

20 अगस्त 2016
0
10
2

सद्भावी मानव बन्धुओं ! यह बात तो सही है कि थाना-पुलिस के भय से लोग मनमाना नहीं कर पाते हैं परन्तु यह बात मात्र सज्जन पुरुषों एवं अच्छे कहे जाने वालों में ही है । जिनका थोड़ा भी सम्बन्ध किसी सांसद, विधायक से है वे, और उच्चस्थ पदाधिकारियों से

9

मानव अधिकार माने क्या ?

17 सितम्बर 2016
0
1
0

परमेश्वर ने जब इस संसार की रचना की तो उसने सत्य भी बनाया और असत्य भी बनाया, प्रकाश भी बनाया और अंधकार भी बनाया, मृत्यु भी बनाई और अमरता भी बनाई। यह सोचने की जरूरत नहीं है कि परमेश्वर ने अच्छाई के साथ साथ बुराई क्यों बनाई। क्योंकि दुनिया का कोई भी खेल दो परस्पर विरोधी पक्ष

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए