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अपराध

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"अब क्या होगा... क्या करूं , इनका अकेले मुक़ाबला करना सही रहेगा या इनके वार का इंतज़ार करूं .... बहुत जल्द ही ये और नज़दीक आ जाएंगे ... मेरे पास तो एक ही कुल्हाड़ी है," ये सारी बातें मेरे दिमाग़ में च

भाग 4 कमल और जमील बाहर आते हैं , मनोज  भी साथ बाहर आता है ,वह उन्हे ऑटो स्टैंड तक छोड़ता  है और धीरे से कमल के जेब में  2 हजार रुपए डालते हैं, कमल उसकी तरफ देखता है तो वह इशारे से

भाग 3 कमल जमील के साथ उसके महल में जाता है वहा एक आधी अधूरी बिल्डिंग थी जिसे ये लोग महल कहते थे, कमल के सामने भी मजबूरी थी क्योंकि और कहीं जा भी नही सकता था ,उसे तो सही में पता नही था कि मुम्बई क

भाग 2जमील अपने दो आदमी कमल और फारूक को बुला के बोलता है " आज से डबलिंग कर दे , साहब लोग को भी एक्स्ट्रा चाहिए, ऊपर से ऑर्डर है,"!! कमल कहता है ," जमील भाई उतनाच देने को रोते हैं, तुम डबलिंग करने को बो

भाग   1 शाम का समय है, सूरज देव बड़ी तेज़ी से दूसरी तरफ जाने को बेताब हैं , पक्षी भी अपने घोसलो की तरफ लौटने लगे हैं , लोग भी ऑफिस से छूटने पर अपने अपने घरों कि तरफ भागते जा रहे हैं, यह मुंब

दंड भोगना नहीं अपराध करना शर्म की बात होती है। जीभ में हड्डी नहीं फिर भी वह हड्डियाँ तुड़वा देती है।। लाभ की चाहत में बुद्धिमान भी मूर्ख बन जाते हैं। उधार के कपड़े तन पर कभी सही नहीं आते हैं।। द

वृंदा ने गहरी श्वासं लेकर कहाँ।...मै अपने काम में इतनी खो गई कि घर का ख्याल ही नहीं रहा। एक प्रयोग को आखरी सफ़लता तक पहुँचाने में एकाग्रता का कितना महत्व होता हैं।नये-नये प्रयोग को ,सफ़ल और समाज के कल्य

दरबाजे पर निशान्त ने घंटी बजाई।... सुनैना ने दरबाजा खोला तो सामने निशान्त था। निशान्त सुनैना को देखकर गले से लिपट गया एक मासूम बच्चे की तरह।....रोते-रोते कहने लगा।माँ,माँ मुझे बचालो। सुनैना की आँखे भर

(पहला भाग पढ़कर कुछ पाठकों की प्रतिक्रिया आई कि न्यायालय अक्सर अपराधियों और आतंकवादियों के मानवाधिकार ही देखते हैं और उसी के अनुसार अपना फैसला सुनाते हैं । न्यायालयों को आज तक पीड़ित पक्षकारों के मानवाध

( राजस्थान में भीलवाड़ा जिले की सत्य घटना पर आधारित कहानी ) राजस्थान उच्च न्यायालय में आज एक अजीब सा केस लिस्टेड था । हत्या के अपराध में सजा काट रहे अपराधी की पैरौल का मामला राजस्थान उच्च न्यायालय

कुनाल की मौत से कभी पर्दा नहीं उठ पाता.... उसकी मौत को सामान्य मृत्यु मान कर सभी अपने आप में व्यस्त हो जाते.... और ब्रजमोहन की दरीदंगी कभी सामने ना आतीं अगर उस संस्था में एक और किस्सा ना होता तो...।&n

कुण्डली---दिल्ली में दंगाइयों ने ऐसा मचाया उत्पात।धार्मिक जुलूस पर  की पत्थरों से बरसातपत्थरों से बरसात कई जख्मी लोग, पुलिस वालेविधर्मियों ने किये कई वाहन आग के हवालेसेवक*वक्त बड़ा बेढंगा रामभक्त

द्रोण रोकता-टोकता लेकिन कोई प्रभाव नहीं पढ़ता।द्रोण की खाट एक अंधेरे कमरे एकान्त में डा़ल दी।खाट पर पड़े पड़े प्राश्चित के लिए जीवित था।प्राग्रिया अपने दुख में ही मग्न थी।प्राग्रिया ही द्रोण का ख्याल रखत

*ईश्वर कृपा क्या है?*पैसा, आलीशान घर, महंगी गाड़ियां और धन-दौलत ईश्वर_कृपा नहीं है।इस जीवन में अनेक संकट और विपदाएं जो हमारी जानकारी के बिना ही गायब हो जाती हैं, *वह ईश्वर कृपा है।*कभी-कभी सफ़र के दौर

सरपंच साहब की हवेली पर शाम को खूब "हथाई" हुआ करती थी । ग्राम सेवक जी, पटवारी जी, मास्टर जी और रिटायर्ड थानेदार जी की महफिल जमती थी रोज । एक दो घंटे तक हंसी ठठ्ठा चलता रहता था । इसी बीच पूरे दिन की गति

सुनैना परेशान थीं।...शेखर अब क्या होगा? परेशान तो मै भी हूँ।मैं तुमको छोड़कर जी नहीं सकता और उसके साथ जीना नहीं चाहता।जेल में रहने से अच्छा है कि आजा़द रहूँ।माया माया पर कुण्ड़ली मार कर बैठ़ी हैं।ऐसा कु

क्या राज हो सकता हैं? बहू को सावन हर्षाने लगा है फिर क्यों थार की धूल में रहना चाहेगी। घुमा-फिराकर बाते क्यों करती हों? तुम ही सोंचो.....जब-तक निशान्त यहाँ था तो बहू मायके में थीं।जब निशान्त गया तो सस

सुनैना ने देखा कि निशान्त चला गया।अपने मुख का ताला खोला और कमरे में प्रवेश किया।....अरी ओ महारानी क्या टसुआ ही बहाती रहोगी।घर भी सभालोगी?अभी तक चाय नहीं मिली,मेरा तो सिर पीर के मारे फ़टा जा रहा हैं।बहु

(जीवन का दूसरा भाग) एक तरफ़ जहाँ कृपा जिंदगी को नया रंग नई दिशा दे रहा था।दूसरी तरफ़ द्रोण प्राश्चित में था।कृपा के साथ बहुत अन्याय किया हैं।कृपा की जम़ीन जायदाद को हड़प कर खून के रिश्तों को कंलकित किया

द्वारपाल ने रोका,ठ़हरो यह देवी जागरण तुम जैसो के लिए नहीं हैं।जाने कहाँ-कहाँ से चले आते हैं। कृपा ने कहा,माँ के दरबार में कोई छोटा-बड़ा नहीं हैं।माँ की दृष्टि सबपर हैं,हम सब संतान हैं। द्वारपाल हँसने ल

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