छोड़ दे बन्दे झूठे धन्धे, बन जा सच्चा इन्सान रे ! छोड़ दे बन्दे झूठे धन्धे, बन जा सच्चा इन्सान रे, मान रे माटी के पुतले मान रे ।। तू इस मिट्टी के ढाँचे पे नाज करता है, तू किसी की आह को बिल्कुल नहीं समझता है । आज संसार में इंसानियत का नाम नहीं, यहाँ पर ऐसे दुर्जनो का कोई काम नहीं । आज के सन्त को , असन्त ही चिढ़ाते हैं, विष्णु-राम-कृष्ण को क्या-क्या न कहा करते हैं । छोड़ झमेला जग का मेला दो दिन का मेहमान रे । मान रे माटी के पुतले मान रे ।। लोग वि
ज्ञान के चक्कर में रहा करते हैं, विष्णु-राम-कृष्ण की हँसी उड़ाया करते हैं । आज नैतिकता का कोई ख्याल नहीं, आज अश्लीलता का भी कोई मलाल नहीं । आज की नारियाँ नारीत्त्व को ही भूल गयीं, नये श्रृंगार की रस्सी पकड़ के झूल गयीं । छोड़ी सच्चाई पकड़ी बुराई सतियों के अरमान रे । मान रे माटी के पुतले मान रे ।। तू आदमी है आदमी से जला करता है, ऐसे इन्सान से भगवान भी उबलता है । आज संसार में उसे रहने का अधिकार नहीं, जिसे परमात्मा से कोई सरोकार नहीं । खुदा-गॉड-भगवान की भक्ति को भूल बैठे हो, अली हनुमान की शक्ति को भूल बैठे हो । भूल गये हो गीता-रामायण भूले बाइबिल र्कुआन रे । मान रे माटी के पुतले मान रे ।। आज उस गर्भ के वादे को भूल बैठे हो, चन्द दौलत के इशारे पे शान ऐंठे हो । तेरा परिवार तेरा साथ न निभाएगा, बहुत करेगा तो शैया के साथ जाएगा । रहा जो गर्भ का वादा उसे न बिसराओ, प्राण राहत के लिए प्रभु का भजन गाओ । नहीं ठिकाना कब है जाना, समय बड़ा बलवान रे । मान रे माटी के पुतले मान रे ।। मेरे दो हाथ रहे नाथ के पूजन के लिए, रहे बेचैन नयन प्रभु के दर्शन के लिए । मेरी जिह्वा रहे प्रभु आपके सुमिरन के लिए, सिर झुकता रहे प्रभु आपके चरणों के नीचे, मेरी भक्ति रहे कायम प्रभु दुहाई हो, यही भक्ति सबके लिये सुखदायी हो । हे उपकारी करुणाधारी सबका हो कल्याण रे । मान रे माटी के पुतले मान रे ।। --------------------------------‘सदानन्द तत्त्वज्ञान परिषद्’