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मेरा उद्देश्य

26 जुलाई 2016

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मेरा उद्देश्य

मेरा उद्देश्य आप समस्त सत्यान्वेषी भगवद् जिज्ञासुजन को दोष रहित, सत्य प्रधान, उन्मुक्तता और अमरता से युक्त सर्वोत्तम जीवन विधान से जोड़ते-गुजारते हुये लोक एवं परलोक दोनो जीवन को भरा-पूरा सन्तोषप्रद खुशहाल बनाना और बनाये रखते हुये धर्म-धर्मात्मा-धरती रक्षार्थ जिसके लिये साक्षात् परमप्रभु- परमेश्वर-खुदा-गॉड-भगवान अपना परमधाम (बिहिश्त-पैराडाइज) छोड़कर भू-मण्डल पर आते हैं, आये भी हैं, में लगना-लगाना-लगाये रखना है । माध्यम और पूर्णतया मालिकान तत्त्वज्ञान रूप भगवद्ज्ञान वाले खुदा-गॉड-भगवान का ही होगा-रहेगा।किसी को भी पूरे भू-मण्डल पर ही इस परम पुनीत भगवत् कार्य, जिसका माध्यम और मालिक भी साक्षात् खुदा-गॉड-भगवान ही हों, में जुड़ने -लगने -लगाने-लगाये रखने में जरा भी हिचक नहीं होनी चाहिये । खुशहाली और प्रसन्नता के साथ यथाशीघ्र लग-लगाकर ऐसे परमशुभ अवसर का परमलाभ लेने में क्यों न प्रति स्पर्धात्मक रूप में अग्रसर हुआ जाय ? न कोई जादू, न कोई टोना- न कोई मन्त्र, न कोई तन्त्र । सब कुछ ही भगवत् कृपा रूप तत्त्वज्ञान रूप सत्य ज्ञान के माध्यम से । वेद-उपनिषद्-रामायण-गीता- पुराण-बाइबिल- कुर्आन- गुरुग्रन्थ साहब आदि-आदि सद्ग्रन्थीय सत्प्रमाणों द्वारा समर्थित और स्वीकृत विधानों से ही कार्यक्रम चल-चला रहा है और चलता भी रहेगा। मनमाना कुछ भी नहीं।

                                                                   सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस 

स्वामी सदानंद जी परमहंस की अन्य किताबें

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मेरा उद्देश्य

26 जुलाई 2016
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मेरा उद्देश्य“मेरा उद्देश्य आप समस्त सत्यान्वेषी भगवद् जिज्ञासुजन को दोष रहित, सत्य प्रधान, उन्मुक्तता और अमरता से युक्त सर्वोत्तम जीवन विधान से जोड़ते-गुजारते हुये लोक एवं परलोक दोनो जीवन को भरा-पूरा सन्तोषप्रद खुशहाल बनाना और बनाये रखते हुये धर्म-धर्मात्मा-धरती रक्षार्थ जिसके लिये साक्षात् परमप्रभ

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एक बनें नेक बनें । वसुधैव कुटुम्बकम् की सार्थकता--

4 अगस्त 2016
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एक बनें नेक बनें ।वसुधैव कुटुम्बकम् की सार्थकता--शारीरिक प्रतिक्रिया भावों को व्यक्त करने के माध्यम को ही भाषा कहते हैं । भाषाऐं अनेक हो सकती हैं मगर मूल भावार्थ तात्पर्य एक ही है जैसे हिन्दी में पानी, नीर कहिए, ऊर्दू में आव कहिए या अंग्रेजी में Water कहिए तीनों का मतलब भाव एक ही है चाहे पानी कहिए,

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छोड़ दे बन्दे झूठे धंधे बन जा सच्चा इंसान रे मान रे माटी के पुतले मान रे

9 अगस्त 2016
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छोड़ दे बन्दे झूठे धन्धे, बन जा सच्चा इन्सान रे ! छोड़ दे बन्दे झूठे धन्धे, बन जा सच्चा इन्सान रे, मान रे माटी के पुतले मान रे ।। तू इस मिट्टी के ढाँचे पे नाज करता है, तू किसी की आह को बिल्कुल नहीं समझता है । आज संसार में इंसानियत का नाम नहीं, यहाँ पर ऐसे दुर्जनो का कोई काम नहीं । आज के सन्त को , असन

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शिक्षा (एजुकेशन) शिक्षा पध्दति

18 अगस्त 2016
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शिक्षा (EDUCATION) शिक्षा पध्दति सद्भावी सत्यान्वेषी पाठक बन्धुओं ! शिक्षा प्रणाली आज की इतनी गिरी हुई एवं ऊल-जलूल है कि आज शिक्षा क्या दी जानी चाहिए ? और शिक्षा क्या दी जा रही है यह तो ऐसा लग रहा है कि शिक्षार्थी तो शिक्षार्थी ही है, यदि श

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विश्व विद्वत् समाज एवं विश्व सरकारों को खुली चुनौती

18 अगस्त 2016
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विश्व विद्वत् समाज एवं विश्व सरकारों को खुली चुनौती ================================ आज विश्व की समस्त सरकारें परेशान हैं जनसंख्या से ! बेकारी और बेरोजगारी से हर तरह भी कमियों एवं भूखमरी तथा नित्य बढ़ते हुये अपराधों से तो मैं, परमात्मा-परमेश्वर खुदा-गॉड-भगवान् या सर्वोच

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दुष्परिणाम जो आज समाज भुगत रहा है

18 अगस्त 2016
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अपना 'कर्तव्य' देखें, 'अधिकार' नहीं! सदभावी मानव बन्धुओं ! आजकल सर्वत्र यही देखा जा रहा है कि सभी कर्मचारी, अधिकारी, सामाजिक संस्थायें, राजनीतिक नेता गण आदि आदि प्राय: सभी के सभी ही अपने अधिकारों के माँग में

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हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई

18 अगस्त 2016
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हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई, शरीर से उठकर देखो भाई । नूर-सोल और ज्योति भाव में, देते हैं सब एक दिखलाई ।। इससे भी ऊपर उठकर देखो, खुदा-गाॅड-परमेश्वर है । वही सभी का परमप्रभु और वही एक भुवनेश्वर है ।। रूह-नूर और काल-अलम् ही , अहँ-सः और परमतत्त्वं है । सेल्फ-सोल एण्ड सुप्र

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थाना-पुलिस या अपराध-उत्पादन-केन्द्र !

20 अगस्त 2016
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सद्भावी मानव बन्धुओं ! यह बात तो सही है कि थाना-पुलिस के भय से लोग मनमाना नहीं कर पाते हैं परन्तु यह बात मात्र सज्जन पुरुषों एवं अच्छे कहे जाने वालों में ही है । जिनका थोड़ा भी सम्बन्ध किसी सांसद, विधायक से है वे, और उच्चस्थ पदाधिकारियों से

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मानव अधिकार माने क्या ?

17 सितम्बर 2016
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परमेश्वर ने जब इस संसार की रचना की तो उसने सत्य भी बनाया और असत्य भी बनाया, प्रकाश भी बनाया और अंधकार भी बनाया, मृत्यु भी बनाई और अमरता भी बनाई। यह सोचने की जरूरत नहीं है कि परमेश्वर ने अच्छाई के साथ साथ बुराई क्यों बनाई। क्योंकि दुनिया का कोई भी खेल दो परस्पर विरोधी पक्ष

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