एक बनें नेक बनें ।
वसुधैव कुटुम्बकम् की सार्थकता--
शारीरिक प्रतिक्रिया भावों को व्यक्त करने के माध्यम को ही भाषा कहते हैं । भाषाऐं अनेक हो सकती हैं मगर मूल भावार्थ तात्पर्य एक ही है जैसे हिन्दी में पानी, नीर कहिए, ऊर्दू में आव कहिए या अंग्रेजी में Water कहिए तीनों का मतलब भाव एक ही है चाहे पानी कहिए, चाहे जल नीर कहिए, चाहे आव कहिए, चाहे वाटर कहिए जिसका गुण-प्रभाव-कार्य-लाभ प्रयोग विधि एक ही है । जैसे मनुष्य कहिए या आदमी कहिए या मैन (Man) कहिए तीनों का भावार्थ एक ही है शरीर-जिस्म-Body एक ही है, जीव-रूह-सेल्फ एक ही है ठीक उसी प्रकार भगवान्-खुदा-गॉड ये शब्द मात्र तीन हैं वास्तव में तीनों का भाव तात्पर्य एक ही है। जब भगवान्-खुदा-गॉड एक ही है तो उसका स्रैष्टिक विधान धर्म कैसे अनेक हो सकता है अर्थात् उस भगवान्-खुदा-गॉड का स्रैष्टिक विधान-ब्रह्माण्डीय विधान कदापि दो या अनेक नहीं हो सकता बल्कि एक ही है फिर ये धर्म भगवान्-खुदा-गॉड के नाम पर वर्ग-सम्प्रदाय अनेक क्यों ?
आज समाज में कोई अपने को हिन्दू कहता है तो, कोई अपने को जैनी कहता है, तो कोई बौध्द कहता है, तो कोई अपने को यहूदी कहता है तो कोई अपने को ईसाई कहता है तो कोई अपने को मुसलमान कहता है, तो कोई अपने को सिक्ख कहता है यानी धर्म के नाम पर अनेक वर्ग-सम्प्रदायों में समाज बँटा है । वास्तव में ये धर्म का नाम नहीं है धर्म वह है जो सभी के लिए एक ही है । एक ऐसा जीवन विधान है जिसमें ''हम-जीव-रूह-सेल्फ'' कौन है ? कहाँ से शरीर में आया, क्यों आया ? जाना कहाँ है?
हमारा असली पिता आत्मा-नूर-सोल कौन है ? कैसा है ? फिर सबका परमपिता ''भगवान्-खुदा-गॉड'' इन तीनों की वास्तविक जानकारी ही ''धर्म'' है जो सभी के लिए एक ही था, आज भी एक ही है और एक ही रहेगा भी । क्या हिन्दू का अभीष्ट भगवान्, जैनी का अभीष्ट ''अरिहंत'' यहूदी का अभीष्ट यहोवा (परमेश्वर), ईसाई का अभीष्ट ''शब्द-गॉड'', मुसलमान का अभीष्ट ''खुदा-अल्लाहतऽला'' सिक्ख का अभीष्ट ''एक ॐ कार सत् श्री अकालपुरूष'' दो या अनेक हैं ? नहीं! कदापि नहीं ! बल्कि भगवान्-खुदा-गॉड-यहोवा अरिहंत-अकालपुरूष एक ही का नाम है उसी तरह 'धर्म भी एक ही है दो या अनेक नहीं फिर हिन्दू, जैनी, यहूदी, ईसाई, मुसलमान, सिक्ख अलग-अलग क्यों ? अलग-अलग तरीके से उपदेश क्यों ? नसीहत, वपतिस्मा अलग- अलग क्यों ? हम मनुष्य-आदमी-Man का अलग-अलग बँटवारा क्यों ? हम सभी उस भगवान्-खुदा-गॉड के सन्तान-बन्दे हैं, ये बँटवारा सम्प्रदाय-वर्गबाद भेदभाव अनेकता ही घनघोर अज्ञानता का कारण है । यह अनेकता ही लड़ाई-झगडा-आतंकबाद का कारण है एक बनें और नेक बनें । मनुष्य का मतलब ही जीव-रूह-सेल्फ और शरीर-जिस्म-बॉडी का संयुक्त रूप है । चाहे हिन्दू का शरीर हो, चाहे मुसलमान का जिस्म हो, चाहे ईसाई की बॉडी हो शरीर बनने का प्रक्रिया माध्यम परिवार माता-पिता हैं, तो शरीर-जिस्म-बॉडी को क्रियाशील रखने वाला जीव रूह-सेल्फ, ब्रह्म-शक्ति, नूरे इलाई, डिवाइन लाईट के माध्यम से सीधा खुदा-गॉड-भगवान् से आता है यानी दोनों शरीर + जीव = मनुष्य का संयुक्त रूप जिस्म + रूह = आदमी ही Body + Self = Man है । हम मनुष्य आदमी मैन हैं। जब ये शरीर से जीव-रूह-सेल्फ निकलते ही ये शरीर मुर्दा, डेड बॉडी हो जाएगी और ये बात हर कोई मानता है कि एक दिन ये शरीर से जीव-रूह-सेल्फ निकलकर शरीर क्रियाहीन हो जाएगा फिर ये दो दिन के जीवन में सम्प्रदायवाद-भेदभाव-अज्ञानता-
संसार - शरीर - जीव - आत्मा - परमात्मा
World – Body – Self – Soul - GOD
खिलकत - जिस्म - रूह - नूर - अल्लाहतऽला
ये पाँचो की अलग-अलग जानकारी अनिवार्य है तब ये अनेकता वर्ग-सम्प्रदाय के भ्रम समाप्त होकर एकता का भाव होगा तभी अपराध-भ्रष्टता-आतंकवाद रहित समाज 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की सार्थकता की कल्पना किया जा सकता है । समाज को भेदभाव भ्रष्टता-आतंकवाद से रहित करने के लिए तथा वसुधैव कुटुम्बकम् की सार्थकता के लिए हमारे महाराज जी सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस के अनुसार--
(1) सच्चा हिन्दू वह है जो ''दूषित भावनाओं से हीन हो, अर्थात् जो 'दोष रहित' सत्य प्रधान उन्मुक्त अमर जीवन विधान वाला हो।''
(2) सच्चा जैनी वह है जिसे 'अरिहंत' की प्राप्ति और 'निर्वाण' का यथार्थत: ज्ञान प्राप्त हो । जो 'सत्य तत्त्व' को जान लिया हो वही जैनी है ।
(3) सच्चा बौध्द वह है जिसे 'बोधिसत्त्व का सच्चा-सम्यक् बोध' हो ।
(4) सच्चा यहूदी वह है जो 'यहोवा (परमेश्वर)' के प्रति विश्वास और भरोसा रखते हुए 'यहोवा' मात्र के ही आज्ञाओं में रहता-चलता हो, अन्य किसी के नहीं ।
(5) सच्चा ईसाई वह है जो यीशु (जीव-ज्योति) और यीशु के पिता 'शब्द'(गॉड)(वचन) रूप 'परमेश्वर' के प्रति विश्वास और भरोसा सहित समर्पित और शरणागत हो।
(6) सच्चा मुसलमान वह है जो मुसल्लम ईमान से ''अल्लाहतऽला'' अथवा दीन की राह (धर्म-पथ) के प्रति जान-माल सहित कुर्बान हेतु सदा ही समर्पित-शरणागत रहे ।
(7) सच्चा सिक्ख वह है जो सदगुरु से माया और परमेश्वर अथवा उनकी कृपा आदि सब कुछ ही पाना परखना 'सीख (जानकर)' 1 ॐ कार-सत् श्री अकाल के प्रति समर्पित-शरणागत रहें।
अत: सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस का कहना है कि वास्तव में जो सच्चा हिन्दू है, वह ही सच्चा जैनी भी है; वह ही सच्चा बौध्द भी है, जो सच्चा बौध्द है, वह ही सच्चामुसलमान भी है; जो सच्चा मुसलमान है, वह ही सच्चा सिक्ख भी है; जो सच्चा सिक्ख है, वह ही सच्चा हिन्दू भी है; क्योंकि भगवान्-अरिहंत-बोधिसत्तव-यहोवा-
सम्प्रदायवाद का मूल आधार इस शरीरवादी धारणा को लेकर ही उत्पन्न-विकसित-संरक्षित होता है जो आगे चलकर एक अत्यन्त भयावह मोड. लेकर समाज में उभरता और विनाश तक पहुँचा देता है । जैसे श्री विष्णु जी, श्री रामजी, श्रीकृष्ण जी के अनुयायी वैष्णव; श्री शंकर जी का एकादश रूद्र अनुयायी शैव; दुर्गा, काली, चण्डी आदि के अनुयायी शाक्त; तीर्थंकर महावीर के अनुयायी जैन; गौतम बुध्द के अनुयायी बौध्द; मुसा के अनुयायी यहूदी; यीशु के अनुयायी ईसाई; मुहम्मद साहब के अनुयायी
मुसलमान; नानक देव के अनुयायी सिक्ख; गुरू वचन सिंह के अनुयायी निरंकारी आदि-आदि नाना प्रकार के समुदाय सम्प्रदाय उत्पन्न होकर, मानव समाज जो एक ही भगवान्-खुदा-गॉड के अधीन एक समाज था, विभाजित हो-होकर झूठ-मूठ में एक-दूसरे को गलत तथा अपने को सही सिध्द करने पर लगे हैं । यदि वास्तव में गहन-मनन-चिन्तन द्वारा समस्त सद्ग्रन्थ को एक साथ करके समस्त समुदाय-सम्प्रदाय के अगुवा का साथ बैठक कर निर्णायक मत का शोध करें तो निश्चित ही समझ में आ जायेगा कि यह सम्पूर्ण वर्गीकृत भेदभाव भ्रामक एवं यथार्थता के प्रतिकूल ही है सभी के भगवान्-खुदा-गॉड एक ही है दो नहीं। वर्तमान में धरती विनाश के स्थिति पर है प्राकृतिक विपत्ति और परमाणु बमों के कहर से, व्यापक प्रदूषण से धरती पर प्रलय की स्थिति है यदि इस विनाश से बचना हो तो इस ''वसुधैव कुटुम्बकम्'' के सिध्दान्त पर चलना ही होगा ।
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