कभी
बचपन में
तितलियाँ पकड़ते थे,
फिर उँगलियों में छपी
उनकी सुनहरी-रुपहली
काया देखा करते थे
बहुत देर तक ।
वो तितलियाँ अब
तब्दील हो गई हैं
चमकते खनकते
सिक्कों में ।
इनके पीछे भी
हम भागते फिरते हैं
वैसे ही; पर अब
इन्हें छूकर-गिनकर
हाथों को धो लेते हैं...