ये कहानी है निशा की जो कि यूपीके एक छोटे शहर गोरखपुर की रहने वाली बहुत ही मस्त, खुशदिल और बेबाक लड़की थी चार भाई बहनों में सबसे छोटी और सबकी लाडली बेटी थी। उसके अलावा एक बहन और दो भाई थे । पिताजी रेलवे में टीटी थे। दोनों भाइयों में बड़े भाई सप्लाई इंस्पेक्टर और छोटा भाई एमबीए करके नोएडा में एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करते थे। और बहन जो कि चारों भाई बहनों में सबसे बड़ी थी वह एक सरकारी इंटर कॉलेज में अध्यापिका थी। निशा के अलावा सभी भाई-बहन विवाहित हैं निशा भी अपनी बहन की ही तरह सरकारी अध्यापिका बनना चाहती थी स्नातक की पढ़ाई पूरी कर सरकारी अध्यापक की नौकरी के लिए तैयारी कर रही थी।
निशा भी विभाग करने योग्य हो गई थी सहयोग से एक अच्छा रिश्ता भी आ गया घर के सभी लोगों को घर और वह दोनो बहुत पसंद आए।
क्योंकि वह सब की लाडली थी और सबसे ज्यादा अपने पिताजी की इसकी वजह से उन्होंने अपनी बेटी की इच्छा को प्राथमिकता देते हुए उसकी राय जानी चाहिए,"बेटा, रिश्ता बहुत ही ऊंचे खानदान से आया है लड़का भी एक अच्छा इंजीनियर है और मुंबई में सेटल्ड है वहां उसके पास अच्छा बंगला गाड़ी और अच्छे पैकेज की सैलरी है।"
निशा,"पिताजी मुझे इस रिश्ते से कोई एतराज नहीं है आप मेरे लिए जो भी करेंगे बेहतर ही करेंगे मुझे थोड़ा सा समय चाहिये, मैं चाहती हूं पहले नौकरी मिल जाए फिर शादी करो क्योंकि मैं। अपना नाम चाहती हूं अपने पैर पर खड़े होना चाहती हूं। निशा की बात सुनकर पिताजी ने मुस्कुराते हुए कहा,"मुझे मेरी बेटी पर पूरा भरोसा है वह जो ठान लेगी वह करके रहेगी ऐसे अच्छे रिश्ते बार बार नहीं मिलते एक बार शादी हो जाए फिर आराम से तैयारी करते रहना।
निशा को कुछ समझ नहीं आया पर अपने पिताजी के चेहरे की मुस्कान देख उससे और कुछ कहते नहीं बना और उसने अपनी सहमति दे दी पिताजी के तो जैसे खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा।
पहले सगाई फिर 2 महीनों के अंदर ही शादी की तारीख भी तय हो गई दोनों के बीच थोड़ी बहुत बातें होती रही उस बीच लेकिन फिर भी दोनों एक दूसरे को बहुत जान समझ नहीं पाए। फिर वह दिन भी आ गया जब वह दोनों विवाह के बंधन में बंध गए आंखों में ढेर सारे सपने लिए निशा ससुराल आ गई।
दिन बीतते गए शुरू शुरू में निशा को सब कुछ बहुत अच्छा लगा और कुछ दिनों बाद उसे सुरेश( निशा का पति )की आदतें कुछ ठीक नहीं लगी जैसे उसे कभी कभी शराब सुपारी आदि का सेवन करना। शुरू में निशा संकोच बस कुछ कह नहीं पाती पर एक दिन जैसे शाम को सुरेश ऑफिस से घर आया निशा को महसूस हुआ सुरेश ने शराब पी रखी है निशा ने उसे हाथ मुंह धोने को बोला और खाना गर्म करके टेबल पर लगाया। निशाने थोड़ा सकूचाते हुए प्यार से सुरेश से पूछा क्या आपने शराब पी रखी है?
तो सुरेश ने कहा,"हां वो एक दोस्त की बर्थडे पार्टी थी ऑफिस में तो ले लिया"।
निशा,"क्या यह जरूरी है पार्टी एंजॉय नशे के बिना नहीं हो सकती यह आपके मेरे और हमारे परिवार के लिए बिल्कुल भी सही नहीं है"।
सुरेश,"अब तुम मुझे सिखाओ गी क्या सही है और क्या गलत है इसके लिए कभी मेरे मां-बाप ने मुझे नहीं रोका टोका तो तुम क्या हो ज्यादा ज्ञान ना बांटो और चुपचाप अपना काम करो,"।
उस रात और कुछ तो नहीं हुआ पर निशा चैन से सो नहीं पाए पूरी रात निशा यही सोचती रहेगी अभी कुछ ही महीनों पहले जो सात वचन हमने लिए थे उसके मायने सुरेश के लिए कुछ भी नहीं कितनी आसानी से सुरेश ने कह दिया अपना काम करो क्या एक पत्नी का अपने पति पर इतना भी अधिकार नहीं है।
दिन बीतते गए उसने किस बारे में अपनी मां से भी बात की तो उन्होंने कहा, बेटा पति पत्नी के बीच ऐसी बातें होती ही रहती हैं तू ज्यादा सोच मत सब ठीक हो जाएगा धीरे-धीरे।
फिर ऐसे ही कुछ दिन बीते गए और सुरेश बिना किसी की फिक्र किए शराब सिगरेट और जो भी नशीली वस्तु होते हैं उनका सेवन करता रहा।जो कि निशा को यह सब बर्दाश्त करना निशा के बस से बाहर हो गया और वह हमेशा की तरह सुरेश को टोकती रहती और सुरेश बदले में उसे चार बातें सुना था रहता था और एक दिन तो हद ही हो गई सुरेश ने उस पर हाथ उठा दिया यह बात निशा के लिए पहाड़ टूटने जैसी हो गई। निशा से बर्दाश्त नहीं हो रहा था और उसको लगने लगा कि वह सुरेश के साथ अब और नहीं रह सकती इस वजह से उसने सुरेश से तलाक लेने का फैसला कर लिय और अपने पिताजी के साथ गोरखपुर वापस आ गई।
कुछ दिनों बाद तलाक की सुनवाई की तारीख का ऐलान हुआ आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हुआ निशाने तो अपने पक्ष रखा अलग होने के लिए और जो सच था वह सब वह सारे बयान दिए और सबूत पेश किया पर इसके बदले में सुरेश की तरफ से भी निशा पर भी आरोप लगाया गया यहां तक कि उसके चरित्र पर भी सवाल उठाया गया और अंततः इस रिश्ते का अंत भी हो गया।
पर समाज का जो उसके प्रति नजरिया था वह आप काफी बदल चुका था जहां जाती लोग यही कहते ,"इतनी जल्दबाजी में इसे फैसला नहीं करना चाहिए था थोड़ा समय देना चाहिए था अपने रिश्ते को पुरुषों से तो ऐसी गलतियां हो ही जाती है पर उसे तो अपनी मर्यादा में रहना चाहिए था यह अपनी मर्यादा है नहीं लांघती तो उसने भी इस पर हाथ नहीं उठाया होता। कमी तो इसमें भी होगी इतना लंबा जीवन अकेले कैसे कटेगी? अगर दूसरी शादी भी हो गई तो क्या गारंटी है कि वहां पर भी एडजस्ट कर पाएगी ?
निशा मन ही मन सोचती क्या वह सुरेश को नहीं रोकती तो मर्यादा में रहती!!
क्या सुरेश के थप्पड़ खा कर उसकी बदतमीजी आकर रहती तो मर्यादा में रहती !!
क्या सारी मर्यादाए और सिमाये सिर्फ और सिर्फ महिलाओं के लिए ही है, पुरुषों के लिए क्या कोई मर्यादा नहीं????