जिंदगी कितना प्यारा सा लफ्ज़ है, कितने गाने लिखे गए, कितनी कविताएं लिखी गई, कितनी शेरो-शायरी हुई, पर जिंदगी कैसी है पहेली ना वो जाने ना हम. ये जिंदगी क्या कभी हमारी अपनी भी होती है? क्या हमारा भी अपनी जिंदगी पर कोई अधिकार है? क्या जिंदगी वाकई एक बोझ है जिसे हर किसी को ढोना होता है? कोई कहता है कि देश के लिए कुर्बान करो, कोई कहता है मज़हब के लिए कुर्बान करो, कही जात पात के नाम पर कुर्बानी तो कभी ख़ानदान की इज़्ज़त की खातिर. ऐसे में किसी की अपनी जिंदगी की अहमियत क्या है? माँ-बाप ने जन्म दिया तो जिंदगी पर उनका अधिकार है, गुरु ने शिक्षा दी तो उस पर गुरु का अधिकार है, किसी कारोबारी ने नौकरी देदी तो उसका अधिकार, शादी हुई तो पत्नी का अधिकार और बच्चे हुए तो उनका क्योकि तुमने उन्हें पैदा किया है इसलिए उनका अधिकार है, अगर कोई बच्चा अपने माँ-बाप से कहे कि तुमने क्यों पैदा किया जब पाल नहीं सकते थे, तब आप क्या जवाब देंगे? हिन्दुस्तान में ये घर घर की कहानी है. प्यार करने की , अपनी जिंदगी जीने की कोई बात नहीं करता , बात करता है तो सिर्फ और सिर्फ कुर्बानी देने की. अपने बारे में सोचना, अपने बारे में कुछ करना मतलबपरस्ती है खुदगर्ज़ी है? ऐसी शिक्षा, ऐसी तालीम देते कौन लोग है, जो अपने घरो में मज़े से रह रहे है, जिनके बच्चे अच्छी नौकरी कर रहे है, या विदेशों में बसे है, जिनके बच्चे कारोबार कर रहे है, वो देश के लिए, मुल्क के लिए कुर्बानी की बात अपने बच्चो से नहीं दूसरे गरीबों के बच्चो से कर रहे है, उन गरीब बच्चों को मुल्कपरस्ती, या देशभक्ति, मज़हब परस्ती या धर्मभक्ति की घुट्टी पीला रहे है. देश एक नए जोश के साथ बात कर रहा है, हिन्दुस्तान ने इंग्लॅण्ड और फ्रांस को भी अर्थवयवस्था में पीछे छोड़ दिया, क्या यह सच है? कितने भूखे बच्चे उन देशो में मिलेंगे जिनसे आगे हम अर्थवयवस्था में निकल आये है? हिन्दुस्तान की अर्थवयवस्था सिर्फ गिनती के कुछ लोगो के हाथ में है, और आबादी का बड़ा हिस्सा जो शायद दुनिया का सबसे बड़ा हिस्सा भी हो सकता है, गरीबी रेखा के नीचे है. भुखमरी की सूचि में हिन्दुस्तान किस नंबर पर है? हिन्दुस्तान की या चीन की अर्थवयवस्था का बड़ा होना , अमीर देशों में शामिल हो जाना नहीं है, अगर जनसँख्या और अर्थवयवस्था का अनुपात किया जाये तो शायद सबसे नीचे के पायदान पर पहुँच जाएंगे. हिन्दुस्तान में बैठकर गरीब हिन्दुस्तानियों को बताया जा सकता है और उनको रोटी मिले या ना मिले पर मुल्क पर गर्व करने की घुट्टी ज़रूर पिलाई जा सकती है. दूसरे मुल्क में जाकर इस बात पर फ़क्र करना हास्य का विषय बन जाएगा जो लोग आकर देखते हिन्दुस्तान की गरीबी की हालत. दोष किसी को देदो, उससे हालात बदलते नहीं है. जब एक गरीब जिसके घर में कुछ ना हो वो किसी तरह से अपने बच्चे को इंजिनियर या डाक्टर बना देता है और फिर वही बेटा बाप से पूछता है की तुमने किया ही क्या था, वो घर में हर सहूलियत का सामान खरीद बाप को बताता है कि ये सब मेरी मेहनत से है तो उस बाप का सर शर्म से नहीं झुकता उसे शर्म आती होगी कि उसकी औलाद कितनी गिर चुकी है. आज हिन्दुस्तान की हालत एक उस बाप जैसी ही है, जिन लोगो ने देश को कहाँ से कहाँ पहुंचाया आज उन पर सवाल उठा कर ,खुद के मुर्ख होने का प्रमाण दे रहे है. आज क्यों कुछ लोग जो सर्वसम्पन्न है चाहते है कि गरीब कुर्बानी दे और वो घर बैठे आराम करे, गरीब के बच्चे सरहद पर जाए शहीद होने और खुद के बच्चे यहाँ मुल्क में बैठ कर मौज़ उड़ाए. जिस दिन ये सर्वसम्पन्न अपने बच्चो को सरहद पर भेज देंगे मैं भी अपने विचार बदल लूंगा. जंग की बात करना और जंग करना दो अलग अलग स्थितियां है, जंग की बात हर कोई कर रहा है पर जंग पर ना तो खुद जा रहा है ना ही बच्चों को भेज रहा है. जिंदगी सबको प्यारी है इसलिए प्यार से जिओ और दुसरो को जीने दो, नफ़रत मत फैलाओं, एक दिन ये नफ़रत की आग खुद के घर में लग जाएंगी, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. जिंदगी जीने के लिए है किसी की गुलामी के लिए नहीं. मुल्क, मज़हब, जाति, नस्ल में बाट कर देखने की जगह हर इंसान को इंसान समझकर देखो. (आलिम)