फिर तीन, पांच, दस और बीसपैसियल भी साथ हो लिए,
चवन्नी की बिसात क्या, अब अठन्नी भी पाकिट छोड़ गये,
न जाने कितने, ताबो-बिसात वाले यूं ही बेखास हो गये।
इसी दुपैसियल से तिलंगी, लेमचूस और खट्टा पाचक जुटाये थे...
बामुश्किल जुगाड़े थे दसपैसियल तो भाई संग फुलप्लेट चाट खाये थे,
हमारे दादा ने बड़ी शान से हमको अपनी जवानी के किस्से सुनाये थे,
रुपल्ली ले कर निकले थे जो बाजार तो बड़े तांगे पर ही लौट पाये थे।
उम्र े-रवां बड़ी शोखी से गुजरता है तो अदा से याद दिला जाता है...
यही दस्तूरे-दुनिया है, यहां हर बेऔकात को यूं ही बिसरा दिया जाता है,
अपनी रुपल्ली को पाकिट में सहेजे हैं कि रातों को बेबसी से निहार लेते हैं,
अब बस मुन्तजिर हैं, अपना वजूद या ‘वो’, पहले कौन उठता है, देखते हैं...!