जुबा चुप क्यो?
आपकी खामोश जुबा ने ,महफ़िल की नज़रों में चोर बना दिया|
ताकते रहे आपकी नज़रों को, कभी तो इधर उठेगी, कुछ कहेंगी|
ता उम्र साथ देने का वादा करती रही, खुशियों के फूल भरती रही|
खुशियों के फूलो को संभाला बहुत, आपकी एक मुस्कान के लिए|
साथ जीने मरने के वादे करते रहे तुमसे, रोज प्यार पाने के लिए |
लड़ते रहे उस ज़माने से, जिस ज़माने मे पलते बढ़ते रहे हम दोनों |
छोड़ दो अब ये खामोशी वरना, ले डूबेगी तुम्हें एक दो पल के लिए|
रहने दो हमे भी जिंदा, तोड़ अपनी खामोशी को जहर न बनने दो|
पी गए गर महफिल मे इस जहर को, मरने से तुम ना रोक पाओगी|
फिर कही भूले बिसरे गीतो में, गुनगुनाओगी हमे अपनी जुबा से|
कहना चाहती हैं नजरे, इन्हे चोर ना बनाओ इस महफ़िल में|