भटकती है वह यूँ ही कस्तूरी मृग सी
वजूद स्त्रियों का खण्ड -खण्डबिखरा-बिखरा सा। मायके के देश से ,ससुराल के परदेश में एक सरहद से दूसरी सरहद तक। कितनी किरचें कितनी छीलन बचती है वजूद को समेटने में। छिले हृदय में रिसती है धीरे -धीरे वजूद बचाती। ढूंढती,और समेटती। जलती हैं धीरे-धीरे बिना अग्नि - धुएं केराख हो ज