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उपवास का बिहारी वर्जन

21 अक्टूबर 2015

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पति-. का बात है आज रोटी ना बनइलू का..? ख़ाली शर्बत पी रहल बारू.?

पत्नी, - आज हमार उपवास बा न..

पति-त कुछ खा लेतु उपासे काहे बाड़ू.

पत्नी- तनिका सा फलाहार कइली ह.
4 गो केला   2 गो अनार   3 गो सेव
हलुआ , साबुदाना की खिचड़ी, सिंगाड़ा की पूड़ी खा लेली ह बस…

और 1 गिलास दूध और  दो कप चाय पी लेनी ह……..

अब मुसंबी के रस पियत रहनी ह..त तू टोक देल ह...
आज उपवास ह न, सो कुछो और ना खा सकनी ह.

पति- तनक रबड़ी सबड़ी और खा ल……..

पत्नी - एह रात के बाद राबड़ी खाई.....खाना एकही टाइम खाये के बा......

पति- भाई बहुते कठिन उपवास बा तोहार.....
केकरो बाप ना कर सके अइसन कठिन उपवास………

देखिह.. कमजोरी न हो जाये तोरा.

पत्नी- एहिसे ता बीच बीच में काजू बादाम फ़ाँक ली ले…….

पति- फिर भी ख्याल रखिह आपन………!


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बहुत बढ़िया ।

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अब मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है.. कुछ जिद्दी, कुछ नकचढ़ी हो गई है. अब अपनी हर बात मनवाने लगी है.. हमको ही अब वो समझाने लगी है. हर दिन नई नई फरमाइशें होती है. लगता है कि फरमाइशों की झड़ी हो गई है. मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है. …………….अगर डाटता हूँ तो आखें दिखाती है.. खुद ही गुस्सा करके रूठ जाती

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पालकी

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3 सितम्बर 2015
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अपनी भारत की संस्कृति को पहचाने. ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचाये. खासकर अपने बच्चो को बताए क्योकि ये बात उन्हें कोई नहीं बताएगा... दो पक्ष- कृष्ण पक्ष , शुक्ल पक्ष ! तीन ऋण - देव ऋण , पितृ ऋण , ऋषि ऋण ! चार युग - सतयुग , त्रेतायुग , द्वापरयुग , कलियुग ! चार धाम - द्वारिका , बद्रीनाथ , जगन्नाथ

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याद है बचपन की वो बहुत सी बात , जिनकी कोई तस्वीर तो नहीं लेकिन वो आँखों से कभी ओझल भी नहीं हुई ..........याद है वो आसमानी रंग की स्कूल की ड्रेस जिसे पहन कर बचपन के वो खूबसूरत सपने आसमानों से ऊँची उड़ान भरते थे .....याद है बचपन की वो औकात जब हम ५० पैसे में दुनिया खरीद लेने का जज्बा रखते थे .....याद ह

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                    मैंने भगवान से कहा- मेरे सभी दोस्तों को खुश रखना l………………भगवान बोले- ठीक है,पर सिर्फ 4 दिन के लिए……वो चार दिन तू बता………………….मैंने कहा ठीक है……1) Summer Day           2) Winter Day3) Rainy Day                4) Spring Day……………..भगवान confusedहो गए और बोले- नहींसिर्फ 3 दिन…………………….म

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                   मेरे जानेमन मंटू    तोहार लेटर आज मिला.जबसे पढ़े हैं तबसे हमरो लभलाइटिस बढ़ गया है...आज दिलवा बोरसी जइसन सुनुगरहा...केतना बार दिल बनाकर नाम लिखे तोहार आ केतना बार तीर बनाये.. आ केतना बाररोये ....अरे यूनिनार वाले मिल जातें न तो उनके टावर में किरासन डाल के फूंक देतीआ पूछती...."कवना जन

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