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जनेऊ पहनने के लाभ : -

14 अक्टूबर 2015

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पूर्व में बालक की उम्र आठ वर्ष होते ही उसका यज्ञोपवित संस्कार कर दिया जाता था। वर्तमान में यह प्रथा लोप सी हो गई है। जनेऊ पहनने का हमारे स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। पूर्व काल में जनेऊ पहनने के पश्चात ही बालक को पढऩे का अधिकार मिलता था। मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व जनेऊ को कानों पर कस कर दो बार लपेटना पड़ता है। इससे कान के पीछे की दो नसे जिनका संबंध पेट की आंतों से है, आंतों पर दबाव... डालकर उनको पूरा खोल देती है जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है तथा मल-मूत्र विसर्जन के समय कान के पास ही एक नस से कुछ द्रव्य विसर्जित होता है। जनेऊ उसके वेग को रोक देता है, जिससे कब्ज, एसीडीटी, पेट रोग, मूत्रन्द्रीय रोग, रक्तचाप, हृदय रोगों सहित अन्य संक्रामक रोग नहीं होते। जनेऊ पहनने वाला नियमों में बंधा होता है। वह मल विसर्जन के पश्चात अपना जनेऊ कान पर से तब तक नहीं उतार सकता जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले। अत: वह अच्छी तरह से अपनी सफाई करके ही जनेऊ कान से उतारता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जिवाणुओं के रोगों से बचाती है। जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हृदय रोगियों को होता है।

उमेश सिंह की अन्य किताबें

आशा  “क्षमा”

आशा “क्षमा”

ज्ञानवर्धक जानकारी ! धन्यवाद !

14 अक्टूबर 2015

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

बहुत ही सार्थक एवं रोचक जानकारी देने के लिए आपको बहुत धन्यवाद ....

14 अक्टूबर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

हमारे संस्कारों में बहुत सी ऐसी क्रियाएं हैं जिनका कोई न कोई गूढ़ अर्थ है, लेकिन आज की तेज़ की रफ़्तार ज़िन्दगी में हम उन्हें भूलते जा रहे हैं । सार्थक लेख !

14 अक्टूबर 2015

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बेटी

29 अगस्त 2015
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अब मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है.. कुछ जिद्दी, कुछ नकचढ़ी हो गई है. अब अपनी हर बात मनवाने लगी है.. हमको ही अब वो समझाने लगी है. हर दिन नई नई फरमाइशें होती है. लगता है कि फरमाइशों की झड़ी हो गई है. मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है. …………….अगर डाटता हूँ तो आखें दिखाती है.. खुद ही गुस्सा करके रूठ जाती

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पालकी

1 सितम्बर 2015
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इंडियन vs अंग्रेज

1 सितम्बर 2015
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एक बार एक पजामा पहने हुएइंडियन से एक अंग्रेज ने पूछा -आप का यह देशी पैंट (पजामा) कितने दिन चलजाता है..?इंडियन ने जवाब दिया: कुछ ख़ास नहीं,मैं इसे एक साल पहनता हूं।.उसके बाद श्रीमति जी इसको काटकरराजू के साइज़ का बना देती है।फिर राजू इसे एक साल पहनता है।उसके बाद श्रीमति जी इसको काट-छांट कर तकियों के क

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भारत की संस्कृति

3 सितम्बर 2015
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अपनी भारत की संस्कृति को पहचाने. ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचाये. खासकर अपने बच्चो को बताए क्योकि ये बात उन्हें कोई नहीं बताएगा... दो पक्ष- कृष्ण पक्ष , शुक्ल पक्ष ! तीन ऋण - देव ऋण , पितृ ऋण , ऋषि ऋण ! चार युग - सतयुग , त्रेतायुग , द्वापरयुग , कलियुग ! चार धाम - द्वारिका , बद्रीनाथ , जगन्नाथ

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बचपन की यादें

22 सितम्बर 2015
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याद है बचपन की वो बहुत सी बात , जिनकी कोई तस्वीर तो नहीं लेकिन वो आँखों से कभी ओझल भी नहीं हुई ..........याद है वो आसमानी रंग की स्कूल की ड्रेस जिसे पहन कर बचपन के वो खूबसूरत सपने आसमानों से ऊँची उड़ान भरते थे .....याद है बचपन की वो औकात जब हम ५० पैसे में दुनिया खरीद लेने का जज्बा रखते थे .....याद ह

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सुरक्षा

22 सितम्बर 2015
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बेचारा पुरुष

26 सितम्बर 2015
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¤ बीवी पर हाथ उठाये तो "बेशर्म" ।¤ बीवी से मार खाये तो "बुजदिल" ।¤ बीवी को किसी और के साथदेख कर कुछ कहे तो "शक्की" ।¤ चुप रहे तो "डरपोक" ।¤ घर से बाहर रहे तो "आवारा" ।¤ घर में रहे तो "नाकारा" ।¤ बच्चों को डांटे तो"ज़ालिम" ।¤ ना डांटे तो "लापरवाह" ।¤ बीवी को नौकरी करने से रोके तो"शक्की" ।¤ बीवी को नौक

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होठ

26 सितम्बर 2015
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लाजवाब

28 सितम्बर 2015
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मुम्बई के बरखा, दिल्ली के सरदी,जैसलमेर के गरमी, पटना के करप्शन,काश्मीर के आतंकवाद, अफ्रीका के सांप,आ यूपी के " आप " बाप रे बाप !बिहार के डाक्टर, यूपी के पुलिस,आ बंगाल के लड़की, लाजवाब होलें....।।

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मड़ई

28 सितम्बर 2015
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बेटी की बिदाई

5 अक्टूबर 2015
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००

5 अक्टूबर 2015
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मेरा परिवार

14 अक्टूबर 2015
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जनेऊ पहनने के लाभ : -

14 अक्टूबर 2015
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                    पूर्वमें बालक की उम्र आठ वर्ष होते ही उसका यज्ञोपवित संस्कार कर दिया जाता था।वर्तमान में यह प्रथा लोप सी हो गई है। जनेऊ पहनने का हमारे स्वास्थ्य से सीधासंबंध है। पूर्व काल में जनेऊ पहनने के पश्चात ही बालक को पढऩे का अधिकार मिलता था।मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व जनेऊ को कानों पर कस कर

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"हाउस वाइफ का दुःख,हाउस वाइफ ही जाने"

16 अक्टूबर 2015
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                    "हाउस वाइफ का दुःख,हाउस वाइफ ही जाने" आज ससुर तो कल सासबीमारससुर को डाक्टर केपास ले जाना है ,सास को बैद जी को दिखाना हैमंदिर से लेकरअस्पताल तक साथ निभाना है...पति का सिर दुःख रहासिर पर बाम लगाना है,बेटा खांस रहा है शरीर गर्म हो रहा हैउसे हल्दी मिला दूधपिलाना है,चिडचिडाहो रहा है इ

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भोजपुर ( आरा ) की प्रसिद्ध मिठाई

20 अक्टूबर 2015
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उपवास का बिहारी वर्जन

21 अक्टूबर 2015
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                    पति-. का बात है आजरोटी ना बनइलू का..? ख़ाली शर्बत पी रहलबारू.?पत्नी, - आज हमार उपवास बा न..पति-त कुछ खा लेतुउपासे काहे बाड़ू. पत्नी- तनिका साफलाहार कइली ह.4 गो केला   2 गो अनार   3 गो सेवहलुआ , साबुदाना की खिचड़ी, सिंगाड़ा की पूड़ी खा लेली ह बस……और 1 गिलास दूध और  दो कप चाय पी लेनी

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नवरात्रों के पावन दिन पर सुखी जीवन हेतु मंगल शुभकामनायें.....

21 अक्टूबर 2015
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लिट्टी पार्टी

24 अक्टूबर 2015
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ब्लूमिन्ग

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गायत्री मंत्र का अर्थ :-

30 अक्टूबर 2015
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मुंबई यात्रा

2 नवम्बर 2015
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मुंबई यात्रा

2 नवम्बर 2015
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सत्य-वचन

9 नवम्बर 2015
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                    मित्रों !!       ..समय, सत्ता, संपत्ति और शरीर .....येचार ... सदा साथ नहीं देते . इसके ठीक विपरीत, संत , सज्जन , सत्संग और सम्बन्ध, ... ये चारों.. सदा साथ देते हैं .

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चलते चलते

21 नवम्बर 2015
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लिट्टी चोखा की तैयारी

21 नवम्बर 2015
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ताज

28 नवम्बर 2015
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भगवान

23 दिसम्बर 2015
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                    मैंने भगवान से कहा- मेरे सभी दोस्तों को खुश रखना l………………भगवान बोले- ठीक है,पर सिर्फ 4 दिन के लिए……वो चार दिन तू बता………………….मैंने कहा ठीक है……1) Summer Day           2) Winter Day3) Rainy Day                4) Spring Day……………..भगवान confusedहो गए और बोले- नहींसिर्फ 3 दिन…………………….म

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मोटरसाइकिल की सवारी

4 फरवरी 2016
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shayri

30 मार्च 2016
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पत्र

30 मार्च 2016
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                   मेरे जानेमन मंटू    तोहार लेटर आज मिला.जबसे पढ़े हैं तबसे हमरो लभलाइटिस बढ़ गया है...आज दिलवा बोरसी जइसन सुनुगरहा...केतना बार दिल बनाकर नाम लिखे तोहार आ केतना बार तीर बनाये.. आ केतना बाररोये ....अरे यूनिनार वाले मिल जातें न तो उनके टावर में किरासन डाल के फूंक देतीआ पूछती...."कवना जन

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bhojpuri kahawat

15 जून 2016
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1)कूकूर पोसले बानीं तऽभूँकी मत। 2)आदमी के भूख लागीअपने से खाई, बकरी के भूख लागी लकड़ी चबाई। 3)दू बेकत के झगड़ा, बीच मे बोले से लबरा। 4) अबर बानी, दूबर बानी, भाई में बरोबर बानी। 5)बाप के नाम साग पात, बेटा के नाम परोरा। 6)बापे पूत, परापत घोड़ा, बहुत नहीं तऽ थोड़ाथोड़ा। 7)खाईब तऽ गेंहूँ, ना तऽ रहब एहूँ। 8)

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