याद है बचपन की वो बहुत सी बात , जिनकी कोई तस्वीर तो नहीं
लेकिन वो आँखों से कभी ओझल भी नहीं हुई ..........
याद है वो आसमानी रंग की स्कूल की ड्रेस
जिसे पहन कर बचपन के वो खूबसूरत सपने
आसमानों से ऊँची उड़ान भरते थे .....
याद है बचपन की वो औकात
जब हम ५० पैसे में दुनिया खरीद लेने का जज्बा रखते थे .....
याद है रास्ते चलते पेड़ो से कच्चे आम तोडना
याद है बारिश के मौसम में भीगते हुए घर जाना ......
याद है १५ अगस्त , २६ जनवरी और ३ मार्च
इन दिनों की अहमियत हमारे लिए इसलिए थी
क्योंकि उस दिन स्कूल से चॉकलेट की पॉकेट मिला करते थे ....
याद है होली में होलिका दहन और पिचकारी के रंग
दुर्गा पूजा की ढाकी की आवाज , दिवाली के पटाखे
छठ में सुबह शाम नदी किनारे का उत्सव
जिसके लिए हम साल भर इंतजार किया करते थे .....
याद है वो कॉलेज के दिन जब पढाई कम मस्ती ज्यादा करते थे
याद है बिना टिकट बस में सफर करना, क्लास बंक कर के फिल्म देखना ......
याद है कॉलेज में बारीडीह, कदमा,सोनारी ,आदित्यपुर और बागबेड़ा की गुटबाजी
आपस में गृह युद्ध और बे वजह के लड़ाई झगड़ा करना
याद है वो लड़कपन , अखडपन और आवारागर्दी करना
जो कॉलेज की पढाई खत्म होते ही
आगे की पढाई , जिम्मेदारी और समझदारी में गायब हो गए ...........
याद है वो दही पापड़ी , गोलगप्पे, पकोड़ी,सिंघाड़ा और इडली डोसा
जिसका स्वाद कही भी किसी और शहर में नहीं मिलता ..........
याद आती है वो पुरानी घटनाएँ , दोस्तों का साथ
अब तो कोई आमने सामने कम ही मिलते है
अब तो फेस टु फेस कम और फेसबुक पर ही मिल जाया करते है
जाने अनजाने कुछ चेहरे , भूले बिसरे कुछ दोस्त
वक्त के साथ सब बदलता है .......
शहर तो आज भी वही है
लेकिन वो स्कूल ,वो कॉलेज वो टीचर नहीं रहे
वो माहौल नहीं रहा ,सब कुछ बदल गया
कुछ बची है तो वो है बस बचपन की यादें ..................
उमेश सिंह