उषा लाल
" बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ " समस्त बेटियों को समर्पित ....जब हुयी प्रस्फुटित वह कलिकाकोई उपवन ना हर्षायाउसकी कोमलता को लख करपाषाण कोई न पिघलाया!वह पल प्रति पल विकसित होतीइक दिनचर्या जीती आईबच बच एक एक पग रखती वहशैशव व्यतीत करती आई!जिसने था उसका सृजन कियाउसने न मोल उसका जानावह था जो उसका जनक स्वयम् उसने न मोह उससे बाँधा !वह थी कन्या यह दोष मानवे उसे प्रताड़ित करते थेजो पुत्र रत्न घर में आयाउस पर ही जान छिड़कते थे!जब पुष्प बनी वह कुसुमित होप्रतिभा अनेक थी ,धनी बड़ीजितने भी सद्गुण सम्भव थेवह थी उन सब से भरी हुई!!था आँखों में आकाश भरासतरंगे पुष्प खिले जिसमेंमन पर था ज़ोर नहीं चलतावह बुनती थी कितने सपने!जब स्वप्न सभी साकार हुयेवह तोड़ कूल को बह निकलीअपनी सारी प्रतिभा समेतवह कलिका बन कर पुष्प खिली!है ऐसा क्षेत्र नहीं कोईजो रहे अछूता कन्या सेजो मात पिता को बोझ लगेवो ही समाज की धुरी बने!वह घर को गुंजित करती हैवह स्वप्न तुम्हारे गुनती हैदो बेटी को विस्तार सदाक्षमता असीम वह रखती है!!