वह मुझसे , मैं उससे थोड़ा
खिंचे-खिंचे से रहते हैं ,
होते हरदम साथ, मगर
कुछ तने तने से रहते हैं !
उससे मेरी यही शिकायत
उसने मुझे नकारा है ,
उसका कहना ,सदा चुनौती रख
मुझको ललकारा है !
मेरा कहना - कड़ी धूप में
उसने मेरी परीक्षा ली
जब आँधी तूफ़ान चले
मेरे सिर से छतरी हर ली!
जब मैं अपने घाव गिना कर
दोषी उसे बताती हूं,
वह चतुराई से मेरी
उपलब्धि मुझे गिनवाती है !
अगर कभी कहती मैं है वह
अधिक कृपालु दूजों पर
वह कहती देखो मुड़ कर
हैं कितने ही तुमसे कमतर !
मैं बोली हर मौक़े पर क्यूँ
मुझे पराजित करती हो ?
बोली - सीख इन्हीं से ले
तुम हर पल आगे बढ़ती हो !
मैंने कहा मुझे उलझा यूँ
तुम तो झट से गुज़र चलीं
उसने कहा ,अरे ! मैं तो
हर इक पल तेरे संग रही!
“यूँ रूठोगी कब तक मुझसे “
उसने कहा चलो छोड़ो
तुम मुझसे , मैं हूँ तुमसे
हो जब तक श्वास, इसे समझो!!