आज क़लम विद्रोह कर उठी
बोली तुम झूठा लिखती हो !
किस युग की बातें करती हो
सच पर क्यूँ परदा ढकती हो !
देखो दुनिया बदल रही है
प्रेम - राग सब मिथ्या ही है
भाई चारा कहीं खो गया
नातों की बुनियाद हिली है !
बाहर तनिक निकल कर देखो
रक्त- पात है आम हो रहा
क्या तुमने यथार्थ देखा है?
कौन यहां कविता सुनता है !
याद नहीं किस युग की गाथा
जब 'रसखान', 'श्याम' रंग रंगे
'अकबर' के प्रासाद कक्ष में
होते 'कृष्ण जन्म' के जलसे!
नामों से 'पहचान' जान कर
क्यूँ बन जाते हैं अंगारे
कब हिन्दू या मुस्लिम बन गये
इक 'आदम' के वंशज सारे !
कैसा यह उन्माद बढ़ रहा
कौन इसे है यूँ भड़काता
पल भर में हत्या कर देना
पाठ भला यह किस शिक्षा का ?
हो क़ुरान , गीता या बाइबिल
नहीं किसी की सीख घृणा है
हर मज़हब का एक सूत्र है
मानवता का धर्म बड़ा है !
बस कर दो !अब बस भी कर दो!!!
'नर पिशाच ' मत यूँ बन जाओ
जात- धर्म का तमग़ा फेंको
"होमों सेपियन " ही कहलाओ!!