कुछ दिन पूर्व 'आशा साहनी' जी की दर्दनाक मृत्यु की घटना ने युवा पीढ़ी पर कई प्रश्न उठाये थे . मेरा कहना उन माता पिता से है जिन्हें ऐसी परिस्थिति में जीवन की सन्ध्या व्यतीत करनी ही होती है ----
कुछ पल कभी चुरा कर तुमने
इक डिबिया में क़ैद किये थे
उसे समझ कर अपनी पूँजी
शेष उन्हीं पर वार दिये थे !
धीरे धीरे चलते चलते
तुमने अपनी उम्र बिता दी
लेकिन ख़ुशियाँ अपनी सारी
शायद संग उन्हीं के कर दीं!
वे जब अपनी राह चले तो,
रस्ता थोड़ा अलग हो गया.
इन बूढ़ी आँखों के हिस्से ,
बाट जोहना शेष रह गया !
मेरा तुमसे यह कहना है
रुकी ख़ुशी को तनिक भूल कर
तुम भी कुछ आगे बढ़ जाओ
नये -नये सम्बन्ध जोड़ कर !
फिर से तनिक स्वयम् को समझो
कुछ रीते कोनों को परखो
कहीं दबी इक क़लम निकालो
उठा तूलिका -रंग सवांरो !
अपने बिसरे ख़्वाब टटोलो
शब्दों की गठरी को खोलो,
भाव उमड़ कर छलक उठेंगे
नये -नये से शब्द सजेंगे !
अगर कठिन है ऐसा करना
ममता फिर भी रहती प्यासी
कुछ अनाथ पर तनिक उड़ेलो
छँट जायेगी गहन उदासी!
जीवन फिर से महक उठेगा
चहक उठेगा मन का पाखी
बाँटोगे जब प्यार सभी में
झूम उठेगा मन बैरागी !!