'महिला दिवस ' पर सभी महिलाओं को समर्पित
दर्पण में प्रतिबिम्ब देख
वह आत्ममुग्ध हो पलटी
बोला उसे पुकार ,स्वयम् पर
डाल नयी अब दृष्टि !
तनिक ध्यान से देखो तो
तुम हो एक पुंज प्रकाश ,
अपना मूल्याँकन करने का
कुछ तो करो प्रयास !
पंख लगे हैं अभिलाषा के
उड़ लो पंख पसार!
स्त्रोत शक्ति का हो अपार
फिर क्यूँ कर फिरो हताश !
हाँ , कोमल है देह तेरी
पर भीतर है इस्पात,
अन्तर है गहरा सागर से
करूणा का भण्डार !
कितनी बेड़ी डाल तुझे
यूँ जकड़ा है सदियों से
अब है समय , तोड़ बन्धन
तुम उतरो समर भूमि में!
जिसमें क्षमता हो असीम
वह अबला क्यूँ कहलाये
मिली प्रकृति से सृजनशक्ति
वह आश्रित क्यों रह जाये?
बात करें क्या निर्जन पथ की
गर्भ में तुम असुरक्षित,
उठा अस्त्र अब सबला बन
कर अपने को अब रक्षित !
तुम बिन है हर आँगन
सूना ,अँधियारा संसार ,
महिला दिवस मनाने से ही
होगा क्या उद्धार ?
तुम जैसी बालायें जब जब
चलीं विजय के पथ पर
नहीं रोक पाया जग उनको
पहुँची उच्च शिखर पर !!