भारतीय सविधान जब लिखा जा रहा था, तब नेहरूजी चाहते थे की उसमे इस बात को जोड़ दिया जाए सरकार वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएगी, जिसमे धार्मिक सोच नहीं होगी. नेहरू , सुभाषचद्र बोस और भगत सिंह में मतभेद बताने वाले भूल जाते है कि उनके विचार एक ही थे सिर्फ मतभेद रास्ते का था. नेहरू जी गांधी जी के प्रभाव में अहिंसक रास्ते के समर्थक थे और सुभषचन्द्र बोस और भगत सिंह हिंसक. तीनो ही धर्म को राजनीती से दूर रखना चाहते थे. भगत सिंह हिन्दू नहीं थे, सिख थे, और अगर हम सिख धर्म को भी हिन्दू माने तो हम सिख धर्म और गुरु नानक देव् का अपमान करेंगे. सिख धर्म और हिन्दू धर्म यहाँ विषय नहीं है, इसलिए हम बात करते है कि भगत सिंह की, वो ना तो भगवा पगड़ी बांधते थे जैसा आजकल उनकी तस्वीरों में दिखाया जा रहा है, और ना ही वो धर्म को मानते थे, वो नास्तिक थे, इसलिए उन्होंने अपने केश और दाढ़ी कटवा दी थी. जो हिन्दू वादी यह झूठ फैला रहे है कि कांग्रेसी नेता उनसे मिलने नहीं गए थे वो जनता को गुमराह कर रहे है, क्योकि नेहरूजी उनसे मिलने जेल गए थे. कोई भी हिन्दू नेता उनसे मिलने नहीं गया था. सावरकर उनसे मिलने गए थे? उनको फांसी की सज़ा देने में भी एक हिंदूवादी का हाथ था सर शादी लाल. गाँधी जी ने ऐसा नहीं की अंग्रेजों से बात नहीं की थी, पर गाँधी जी मानते थे कि उनका केस नहीं लड़ा जा सकता क्योकि ख़ुद भगत सिंह नहीं चाहते थे कि उन्हें अंग्रेजी हुकूमत माफ़ी दे, इसलिए ना तो उन्होंने माफ़ी मांगी और ना ही उन्होंने अपने किये से इनकार किया. जब कोई इंकार भी ना करे और माफ़ी भी ना मांगे तो उसका मुकदमा कोर्ट में नहीं लड़ा जा सकता. इसलिए गांधी जी अदालत में नहीं गए बल्कि लार्ड इर्विन से कहा कि भगत सिंह को फांसी देना ठीक नहीं है, उन्हें बिना शर्त छोड़ दिया जाना चाहिए, और इर्विन उनकी बात मान भी गए थे, पर वादा नहीं किया था. कुछ हिंदूवादी ताकते जो देश की आज़ादी नहीं चाहती थी वो ही लोग अंग्रेज़ों के साथ थे उन्हें फांसी दिलाने में जिसमे सर शादी लाल भी थे. सुभाषचंद्र बोस पर काफी प्रभाव जापान के तत्कालीन फौजी राज पर था जो धार्मिक नहीं थे, जापान का राजा सिर्फ नाममात्र का था सारी ताकत फ़ौज़ के हाथ में थी, जो किसी धर्म को नहीं मानती थी ,और सुभाषचंद्र बोस पर इसका काफी असर था यही नही वो हिटलर से भी प्रभावित थे, जो बिलकुल भी धार्मिक नहीं था, सुभाषचंद्र बोस ने तो गैर हिन्दू लड़की से जर्मन में शादी भी कर ली थी, जिसे उनके परिवार ने स्वीकार नहीं किया था. नेहरू जी वैज्ञानिक नहीं थे पर उनकी सोच वैज्ञानिक थी, वो किसी भी बात को तर्क से मानते थे नाकि अंधविश्वास से, उन्हें भारत के हिन्दू दर्शनशास्त्र पर गर्व था पर उनका काम का तरीका व्यवाहरिक, तर्कसंगत और वैज्ञानिक था. जिसका प्रमाण उनकी किताब " भारत एक खोज" है. तीनों ही हिन्दू राष्ट्र के विरोधी थे, ऐसा ना होता तो उनके साथी मुस्लिम ना होते. हिंदू राष्ट्र के समर्थक तीनों से ही नफ़रत करते थे. जहाँ भगत सिंह के साथ अशफ़ाक उल्हा थे तो सुभाषचंद्र बोस की फ़ौज़ के सेनापति शाहनवाज़ खान और नेहरू जी के साथ अब्दुल आज़ाद कलाम. क्या हिन्दू संघठन के लोग जो आज भगत सिंह या सुभषचन्द्र बोस को नायक बता नेहरू को खलनायक साबित करने में लगे है वो बता सकते है कि उस वक्त जब ये लोग आज़ादी के लिए लड़ रहे थे जो भारत के विभाजन के खिलाफ थे तब हिन्दू राष्ट्रवादी क्या कर रहे थे? क्या वो अंग्रेज़ों की मदद इन सब के खिलाफ नहीं कर रहे थे? भारत के विभाजन की बात सावरकर ने शुरू की थी, जिन्होंने कहा था की हिन्दुस्तान में दो राष्ट्र है हिन्दू और मुसलमान, वो क्या बंगाल विभाजन के समर्थक नहीं थे? विभाजन की बात की शुरुवात बंगाल से होती है, जिसका विरोध कांग्रेस ने किया, सुभाषचंद्र बोस ने किया, यहाँ तक की सुभाषचंद्र बोस के भाई शरतचंद्र बोस का मानना था कि उत्तर भारत के हिन्दू राष्ट्रवादी बंगाल के कल्चर को खराब कर रहे है हिन्दू और मुसलमानों को अलग कर के, तब उन्होंने मांग रखी बंगाल की भारत से विभाजन की. आज इतिहास को गलत तरीके से दिखाया, बताया और समझाया जा रहा है. भारत विभाजन के समर्थक हिन्दू राष्ट्रवादी और जिन्ना की पार्टी मुस्लिम लीग थे ना की नेहरू और गाँधी. गाँधी जी की हत्या भी इसी की कड़ी है, क्योकि गांधी जी ने फैसला किया था पकिस्तान जाने का और जिन्ना से बातचीत करने का. यदि हिन्दू राष्ट्रवादी विभाजन के लिए नेहरू को दोषी मानते है कि नेहरू प्रधानमंत्री बनना चाहते थे इसलिए विभाजन हुआ तो क्या हिन्दू राष्ट्रवादी उस वक्त जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाने को तैयार थे? आज भी पाकिस्तान को वापिस मिलाया जा सकता है अगर हम पकिस्तान के प्रधानमंत्री को अखंड भारत का प्रधानमंत्री बना दे, क्या हिंदूवादी इसके लिए तैयार है? सच यह है कि जिन्ना और सावरकर में एक सहमति थी, दोनों ही अलग राष्ट्र चाहते थे ताकि उनपर उनका राज़ हो सके अगर विभाजन नहीं होगा तो दोनों ही सत्ता से दूर रहेंगे. विभाजन हुआ और जिन्ना को मुस्लिम राष्ट्र मिल गया पर हिन्दू राष्ट्र कांग्रेस की वजह से नहीं बन पाया और उसका नतीजा यह हुआ कि हिंदूवादी सत्ता से दूर हो गए. लेकिन इन हिंदूवादियों ने उम्मीद नहीं छोड़ी और लगातार हिन्दू मुसलमान दंगे कराते रहे ताकि हिन्दुओं को इकठ्ठा किया जा सके और हिन्दू राष्ट्र बनाया जा सके. कांग्रेस को मुस्लिम परस्त बताने में वो हर प्रकार का झूठ फैलाने लगे. नेहरू और गाँधी के चरित्र पर झूठ, कांग्रेस के नेताओं खासकर नेहरू और पटेल के संबंधो को लेकर झूठ, और इस झूठ में छोटे से बड़ा नेता लगा रहा. आज जहाँ हम है वहां झूठ सच बनाया जा चूका है. इस झूठ से निकलने में ना जाने कितना वक्त लगेगा और इसका आने वाले वक्त पर क्या असर पड़ेगा यही देखना है. ( गाँधी जी के बारे में एक झूठ की उन्होंने पाकिस्तान को पैसा देने के लिए सत्यग्रह किया था जिसकी वजह से गोडसे ने उनकी हत्या की, अगले लेख में. आलिम) आज हम वैज्ञानिक सोच छोड़ देश चलाना चाहते है, जिसका उदारहण है, हमारे पढ़े लिखे लोग, जब कोई जज यह कहे कि मोरनी मोर के आंसू पीकर बच्चे पैदा करती है? लड़ाकू जहाज़ बादलो में छिपकर हमला करने गए ताकी रडार से बच सके? वायुपरवर्तन नहीं हो रहा हम बदल रहे है ? गाय ऑक्सीजन पैदा करती है? गन्दी नाली की गैस से चाय बनाई जा सकती है तो लगता है कि नेहरू जी ने बहुत बड़ी गलती की वैज्ञानिक संस्थान और आधुनिक अस्पताल बनाकर, उन्हें गौशाला और मंदिर बनवाने चाहिए थे ताकि हिन्दू बहुसंख्यक समाज को खुश किया जा सके? (आलिम)