ना तो मैं किसी का गुलाम हूँ ना कोई मेरा गुलाम हैं .
मैं आज़ाद हूँ दिलो दिमाग से सब मेरी तरह आज़ाद हैं.
कुछ आज़ादी बेच मनाते जश्न हैं, कुछ दर्द आज़ादी का हैं झेलते,
जो वतन बेच बैठे थे फिरंगियों की गोद में वो आज मुल्क के चौकीदार है.
कुछ गुलामी के लड्डू खा रहे, कुछ आज़ादी की ख़ाक हैं फाक रहे.
कुछ माफ़ी नाम लिख मज़े लूट रहे, कोई बर्मा में जंग थे लड़ रहे.
वतनपरस्ती का कैसा खेल है गुलाम थे जो वो बना रहे गुलाम है.(आलिम)