दो लोग
दाना डाल रहे हैं
मछलियों को |
पहला -
इसलिए कि
मछली अपना पेट भर सके
और दूसरा -
इसलिए कि
मछली उसका पेट भर सके |
मछली दोनों को ख़ुशी देती है --
एक को ज़िंदा रहकर
दूसरे को जिंदगी देकर |
यह उसका मुक्कद्दर है कि
उसके हिस्से मैं कौन आता है -
क्योंकि उस नादान के पास
दोनों को जांचने परखने का
कोई जरिया या विकल्प भी तो नहीं |
इसलिए -
मेरी बेटियो और बहनो,
मेरे देश की एक सच्चाई यह भी है कि -
मछली और तुम्हारे दरमियाँ
यहाँ कोई मोटा फर्क नहीं |
पसरा पड़ा है जाल चारों तरफ
दाना फेंकने वालों का |
बेहतरी इसी में है कि
किसी के बहकावे में मत आना
पहले जांचना फिर परखना
क्योंकि
खाने की प्लेट पर
पहुँचने के बाद
उस मछली का कोई वजूद नहीं --
ना अपने लिए और ना ही
नदी, तालाब या समंदर के लिए ||