"विरह"
"मेरा प्यार मुझसे जो रूठा हुआ है ।
विरह वेदना तब से मैं सह रही हूं।
तपिश सूर्य से तेज है वेदना की।
मैं अस्कों की बन कर नदी बह रही हूं।।
अंधेरा मुझे रास आने लगा है।
मैं तन्हाईयों को सखी कह रही हूं।
पवन तेरी यादें उड़ा ना सकी है।
मैं पतझड़ के के जैसी खड़ी ढह रही हूं।।
मेरा दर्द किसको बताऊं भला अब।
गजल से हर इक बात मैं कह रही हूं।।
सताती नहीं मुझको ठंडी की सिहरन।
मैं मौसम की हर मार को सह रही हूं।।"
अम्बिका झा ✍️