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"विरह"

7 सितम्बर 2021

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"विरह"


"मेरा प्यार मुझसे जो रूठा हुआ है ।

विरह वेदना तब से मैं सह रही हूं।


 तपिश सूर्य से तेज  है वेदना की।

मैं अस्कों की बन कर नदी बह रही हूं।।


अंधेरा मुझे रास आने लगा है।

मैं तन्हाईयों को सखी कह रही हूं।


पवन तेरी यादें उड़ा ना सकी है।

मैं पतझड़ के के जैसी खड़ी ढह रही हूं।।


मेरा दर्द किसको बताऊं भला अब।

गजल से हर इक बात मैं कह रही हूं।।


सताती नहीं मुझको  ठंडी की सिहरन।

मैं मौसम की हर मार को सह रही हूं।।"


               अम्बिका झा ✍️

रवीन्‍द्र श्रीमानस

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विरह की वेदना और तड़प की सुन्‍दर अभि‍व्‍यक्ति ।

7 सितम्बर 2021

SMT. VIMLESH SHRIVASTAVA

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बहुत बढ़िया गजल तपिश सूर्य की तेज है वेदना से----' सुंदर पंक्तियां

7 सितम्बर 2021

Ambika Jha

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7 सितम्बर 2021

धन्यवाद

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