-----वतन परस्ती------( अंतिम क़िश्त )
उधर आइएस आई की देखरेख में 5 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों को अफ़गानिस्तान स्थित लश्करे माज़ी के मुख्यालय में भेजने की तैयारी भी मुकम्मल हो गई ।
शाम 5 बजे मुस्तफ़ा, इक़बाल और हैदर , अल हयात होटल के उस कमरे के बाहर तैनात हो गए जिस कमरे के अंदर दोनों मुल्कों के प्रधान मंत्रीयों की शाम 6 बजे मीटिंग होने वाली थी ।
ठीक 6 बजे होटल की उस कारिडोर में खामोशी छा गई । दोनों प्रधान मंत्री किसी और रस्ते उस कमरे में दाखिल होकर गुफ़्तगू करने लगे । पौने सात बजे मुस्तफ़ा को सिग्नल मिला की दोनों प्रधान मंत्री उसी रस्ते से बाहर आएंगे जिधर तुम सुरक्षा में तैनात हो । यह बात मुस्तफ़ा ने इक़बाल और हैदर को बता दी । अब तीनों तनाव में नज़र आने लगे । इतने में ही मुस्तफ़ा को आईएसआई चीफ़ गौरी का फोन आया कि मैं भी उस रस्ते आ रहा हूं जिधर तुम लोग खड़े हो । अचानक मुस्तफ़ा को यह खयाल आया कि हो सकता है कि गौरी, इक़बाल के हाथों पाकिस्तान के प्रधान मंत्री को मरवाकर फिर इक़बाल को अपने हाथों मौत के घाट उतारकर सरकार क तख़्ता पलतना चाह्ते हों और खुद सत्ता के शिखर पर बैठना चाह्ते हों ।
मुस्तफ़ा ने तुरंत फ़ैस्ला किया और भारत के प्रधानमंत्री की सुरक्षा में मुखिया बनकर आए विक्रम को सारी बातें बताई तो विक्रम ने दोनों प्रधानमंत्रियों की मीटिंग 10 मिन्ट्स पूर्व समाप्त करवा कर उन्हें तीसरे दरवाज़े से बाहर निकालकर लिफ़्ट के माद्धय्म से होटल के चौथे माले पर सुरक्षित ले गए। इसके बाद विक्रम फिर नीचे जाकर हाल के उस दरवाज़े की ओर दौड़ा जिधर उसका भाई मुस्तफ़ा खड़ा था । वहां जाकर उसने देखा कि आइएसआइ चीफ़ अपने एक साथी के साथ उस दरवाज़े को खोलकर सामने खड़े तीनों लोगों पर गोलियां बरसा रहा है । जिसके दायरे में आकर इक़बाल और हैदर तो तुरंत मारे गए और मुस्तफ़ा को सीने के एक हिस्से में गोली लगी जिसके कारण वह घायल अवस्था में ज़मीन पर पड़ा था । मुस्तफ़ा ने ज़मीन पर पड़े पड़े ही आइएसआई चीफ़ पर गोलियों की बरसात करके उसे उपर का रस्ता दिखला दिया । वहीं विक्रम ने अपनी गोलियों से आइएसआई चीफ़ के साथ आए उसके साथी को भून दिया । इस तरह दोनों मुल्कों के बीच तनाव पैदा करने वाले व पाकिस्तान सरकार को गिराने की मंशा रखने वाले सारे साजिश कर्ता , मुस्तफ़ा और विक्रम के हाथों मारे गए।
उधर मुस्तफ़ा आइएसआई चीफ़ को मारने के बाद ज़मीन पर घायल अवस्था में पड़ा था । विक्रम ने तुरंत ही बैठकर मुस्तफ़ा के सर को अपनी गोद में रखकर उसे हिम्मत दिलाने लगा कि तुम ठीक हो जाओगे । अभी मैं तुम्हें अस्पताल ले जाने का इंतजाम करता हूं । जवाब में मुस्तफ़ा ने कहा भाई विक्रम अब इसकी ज़रूरत नहीं है । मेरा अंतिम समय आ गया है । पर मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने अपने दोनों मुल्कों के गद्दारों को जहन्नुम का रास्त दिखा दिया । मेरे लिए तो पाकिस्तान और हिदुस्तान दोनों ही मुल्क मेरे अपने हैं । इक देश में मैं पैदा हुआ हूं , मेरे पूर्वजों की धरती भी है और दूसरे देश ने मुझे बड़ा किया है अत: मेरी ज़िम्मेदारी तो दोनों मुल्कों के प्रति बरबार की ही थी और मुझे इस बात की खुशी है कि मैने गाज़ी को मार डाला साथ ही अफ़गानिस्तान के आतंकी सरगना भी हमारे प्लानिंग के तहत ही मारा गया । विक्रम तुम्हारी भूमिका भी इस काम में बहुत महत्वपूर्ण थी । अब विक्रम भाई मुझे चैन से नींद आएगी । मुझे एक ही बात का मलाल रहेगा कि तुम्हारे साथ मैं जियादा वक़्त गुज़ार न सका । इसके साथ ही मुस्तफ़ा ने जय पाकिस्तान – जय भारत कहते हुए अपनी आंखें मूंद ली और विक्रम उसके सर अपनी गोद पर रखे हुए अविरल आंसू बहाते रहा ।
आज चौदह अगस्त है इस वर्ष मुस्तफ़ा को पाकिस्तान में अपनी शहादत के लिए शहंशाहे- पाकिस्तान के खिताब से नवाजा जा रहा है। वहीं कल 15 अगस्त के दिन अभिमन्यु शर्मा को भारत में परमवीर चक्र से सम्मानित किया जाएगा । जिसे ग्रहण करने उनका सगा भाई विक्रम शरमा जी समारोह में उपस्थित रहेंगे ।
( समाप्त )