-----वतन परस्ती----( तीसरी क़िश्त )
इस तरह कुछ दिनों के लिए मुस्तफ़ा , विक्रम के ही घर में रहने लगा । विक्रम अविवाहित था और मुस्तफ़ा से चार वर्ष छोटा था । कद, काठी,रंग , रुप में दोनों के बीच बहुत समानता थी । इस तरह पांच दिन बीत गए पर विक्रम को ऐसी कोई बात याद नहीं आई न हीऐसा कोई सूत्र याद आया जो मुस्तफ़ा के प्रश्नों को शायद कुछ हल ढूंढ सके। छठ्वें दिन विक्रम पिताजी के द्व्रारा बनाए गए ज़मीन जायदाद के कागज़ात व बैंक एकाउन्ट के पेपर्स देख रहा था । इस कागज़ात को वह एक थैले में भरकर आगरा से अपने पिता की मृत्यु के बाद ले आया था । तभी उसे एक पुरानी डायरी मिली। डायरी उनके पिता अर्जुन जी की थी व डायरी में उनकी लिखी बातें थी । डायरी में उनके पिताजी ने अपने जीवन की सारी महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख किया था । सारी घटनाओं का उल्लेख तारीख के अनुसार ही लिखा गया था । पहले पन्ने पर उन्हें कब नौकरी मिली का उल्लेख था । दूसरे पन्ने पर उनकी शादी की तारीख का जिक्र था । तीसरे पन्ने को पढते ही विक्रम सन्न रह गया वहां लिखा था कि आज हमे एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई । तारीख थी 22 दिसंबर 1986 । पुत्र का नाम उन्होंने रखा था अभिमन्यु। उत्सुकता वश विक्रम आगे पढना प्रारंभ किया तो उसकी सांसे थमने लगीं । आगे उल्लेखित था कि 1992 फ़रवरी में हमार ग्रुप एक सांस्कृतिक सम्मेलन में अपनी प्रस्तुति देने पाकिस्तान गया था । वहां जब हम अकबराबाद के पास स्थित जंगल में घूमने गए थे , तो हमारे साथ एक बड़ा हादसा हुआ । हमारा पुत्र अभिमन्यु हमसे बिछड़ गया । दो दिनों की खोज़बीन के बाद हमें एक बच्चे की लाश मिली , जिसे हमने अभिमन्यु की मृत काया समझकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया पर हमारे दिल में आज भी यह बात कुरेदती है कि कहीं अभिमन्यु ज़िन्दा तो नहीं है ।
डायरी के इस हिस्से को पढकर विक्रम की आंखों से आंसू बहने लगे । इस बहुत घटना के वृतान्त से वह पिछले 20 सालों से वंचित था । उसकी आंखों के सामने मुस्तफ़ा का चेहरा घूमने लगा । उसे लगा कि मुस्तफ़ा का चेहरा मेरी माता के चेहरे से बहुत मिलता है । उसने तुरंत ही मुस्तफ़ा को अपने पास बुलाकर उस पन्ने को पढने कहा । उस पन्ने को पढते पढते मुस्तफ़ा के भी आंसू बहने लगे । उसे लगने लगा कि विक्रम उसका भाई है और मैं खुद अर्जुन जी का बेटा अभिमन्यु हूं । इसके बाद विक्रम और मुस्तफ़ा गले लगकर बहुत देर तक रोते रहे। इए शायद खुशी के ही आंसू थे । मुस्तफ़ा ने फ़ैसला किया इस बात की तस्दीक वह गांव जाकर अपने गांव के बुजुर्गों से और करेगा ।
मुस्तफ़ा अपने भविष्य के बारे में सोचने लगा । उसके लिए बहुत ही जटिल स्थिति निर्मित होने जा रही थी । वह पैदा तो एक हिन्दू परिवार में , भारत में हुआ था पर उसका लालन पालन पाकिस्तान के एक मुस्लिम परिवार द्वारा किया गया था । और आज की तारीख में वह पाकिस्तान की संस्था आई एस आई का एक जुनियर अधिकारी था । और वर्तमान दौर में भारत से पाकिस्तानी की दुश्मनी है । इसके तहत वह भारत की कुछ सामरिक जानकारियां जुटाने पाकिस्तान से आया था ।
अब विक्रम और मुस्ताफ़ा के बीच विचार विमर्ष हुआ कि आखिर ऐसी स्थिति में मुस्तफ़ा को क्या करना चाहिए। उन दोनों ने निर्णय लिया कि अब उसे ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे दोनों मुल्को में से किसी का भी अहित न हो । साथ ही अब मुस्तफ़ा को सोचना होगा कि उसे आगे की अपनी ज़िन्दगी कहां गुज़ारनी है । इस विषय पर विक्रम ने कहा कि इस बाबत तो तुम्हें ही फ़ैसला करना होगा । मैं तो दिल से चाहूंगा कि तुम भारत आ जाओ और अपने भाई विक्रम के साथ रहो ।
अगले कुछ दिनों में मुस्तफ़ा अपने आकाओं की मदद से सीमा पार करके वापस पाकिस्तान पहुंच गया । और दो दिनों बाद वह अपने शहर अकबराबाद पहुंच गया । वहां पहुंच्कर वह आस पास के गांवों में अपने बारे में पता लगाने बुजुर्गों से पूछने लगा । एक गांव फ़तेहपुर में एक बुजुर्ग ने उसे बताया कि वास्तव में तुम अपने अब्बा रहमान भाई को आज से 20/25 साल पूर्व जंगल में अकेले रोते हुए मिले थे । वह तुम्हें अपने घर ले आए। आस पास के गावों में तुम्हारे बारे में पता लगाया गया पर तुम्हारे माता पिता और घर का कोई पता नहीं चला । तब रहमान भाई ने अल्लाह की रहमत समझ कर अपना बेटा बनाकर रख लिया और तुम्हें एक नाम दिया : मुस्तफ़ा : । अब तो मुस्तफ़ा को भरोसा हो गया कि वह अर्जुन – मीरा का पुत्र है और विक्रम उसका सगा भाई है ।
( क्रमशः)