-----( वतन परस्ती-) कहानी प्रथम क़िश्त
अर्जुन और उनके साथियों को इस्लामाबाद की सड़कों पर घूमना अच्छा लग रहा था । बीस लोगों का यह जत्था “ इंडो-पाक सांस्क्रितिक- साहित्यिक एक्स्चेंज बोर्ड” के तहत पाकिस्तान के विभिन्न शहरों में भारत की साहित्यिक व सांस्कृतिक झंडे को फ़हराने आये हैं ।इस समूह का मुखिया अर्जुन पंडित था । बीस दिनों का इनका टूर था । जिसमें इन्हें विभिन्न शहरों में अपनी प्रस्तुति देनी थी । अर्जुन ने अपने साथ अपनी पत्नी मीरा और बेटा अभिमन्यु को भी यहां लाया था । अभिमन्यु की उम्र अभी 7 वर्ष से ज्यादा नहीं थी । उनका अंतिम प्रोग्राम इस्लामाबाद से 300 किमी दूर जंगलों के बीच एक छोटे से शहर अकबराबाद में था । कार्यक्रम दोपहर 2 बजे समाप्त हो गया ।
दोपहर 2 बजे से संद्ध्या 6 बजे तक उनके जत्था को जंगल घूमने जाना था । वहां से लौटकर कल सबको इस्लामाबाद जाने की तैयरी करनी थी । और अगले दिन वे भारत की भूमि पर अपना सर झुकाने वाले थे।,
ठीक 2 बजे वे सभी बस में बैठकर जंगल पहुंच गए । वहां एक सुरक्षित और समतल स्थान का चयन करके वे सभी दरी बिछाकर बैठ गए। फिर उन्होंने उसी स्थान को केन्द्र बिन्दु बनाकर आगे जाने का फ़ैसला किया गया । हल्का फ़ुल्का नाश्ता करके वे लोग चार चार के समूह में आस पास घूमने लगे । अर्जुन का परिवार और उसके खास दोस्त कृष्णा का परिवार वहां से पश्चिम दिशा की ओर चल दिए। चलते चलते वे सभी निर्धारित केन्द्र बिन्दू चार पांच किमी दूर आ गए। वे जंगल के ख़ूबसूरत नजारे देखने में इतने व्यस्त थे कि उन्हें समय का ध्यान ही नहीं रहा कि शाम 6 बजे तक उन्हें सेन्ट्रल पाइंट पहुंचना ही है । इतने में उनके चारोंओर काली घटाएं छानी लगी और कुछ देर में ही तेज़ बारिश होने लगी । वे सभी दो दो के समूह में अलग अलग पेड़ों के तले खड़े हो गए। अभिमन्यू अपनी माता के साथ उनके हाथ पकड़े हुए खड़ा था । बारिश बहुत ही तेज़ थी साथ ही अंधेरा भी इतना बढ गया था कि 10 फ़ीट की दूरी से कोई भी चीज़ साफ़ साफ़ दिखाई नहीं दे रही थी । अचानक दूर से कुछ अजीब सी आवाज़ें उनकी ओर आती महसूस हुई । ऐसा लग रहा था कि बहुत सारे जानवर दौड़ते हुए उनकी तरफ़ आ रहे हैं। वे सभी दहशत से भरे पेड़ों से चिपके रहे और भगवान का नाम लेते रहे । अचानक मीरा को जंगली सुअरों का झुंड दिखाई दिया । जो 20/25 के समूह में उनकी तरफ़ ही दौड़ते हुए आ रहे थे । ऐसा लग रहा था कि वे सब किसी बात से बौराए हुए , उन्हीं की तरफ़ आ रहे हैं ।
जंगली सुअरों के झुन्ड को देखकर अर्जुन ने दूर से सबको चेताया कि यह झुन्ड सीधे रस्ते कहीं जाएगा अत: आप सभी लगभग सौ मीटर दाएं हटकर कहीं छिप जाएं । वरना इनका झुन्ड इंसानों की जान भी ले सकता है । मीरा अभिमन्यु का हाथ पकड़कर दायीं ओर दौड़ी पर कुछ दूर जाने के बाद फ़िसलकर गिर गई । जिससे अभिमन्यु का हाथ छूट गया । गिरते ही मीरा बेहोश हो गई और यूं ही भीगती ज़मीन पर पड़ी रही । अभिमन्यु को पता ही नहीं चला कि क्या हुआ? वह यूं ही भागते रहा । आधे घंटे बाद बारिश थमी और सूरज की रौशनी भी फ़ैलने लगी । जंगल अब शान्त नज़र आने लगा । उधर अर्जुन अपने साथियों के साथ मिलकर मीरा और अभिमन्यु को आवाज़ देने लगा । उन्हें उस दिशा में तलाशने लगा जिधर वे भागे थे । थोड़ी दूर जाने के बाद उसे मीरा ज़मीन पर बेहोश पड़ी मिली । उसने उसे पेड़ के सहारे बिठाकर झकझोरने लगा । कुछ मिन्टों बाद मीरा की आंखें खुल गईं और वह अभिमन्यु कहां है कहकर रोने लगी । सभी सोचने लगे कि अभिमन्यु आस पास ही होगा वे 50मिटर दूर तक जाकर उसे ढूंढ्ने लगे । पर अभिमन्यु का कहीं पता नहीं चला । वे आधे घंटे तक अभिमन्यु को ढूंढने लगे पर वह मिला नहीं । शाम के 5 बज रहे थे उन्हें समझ नहींआ रहा था कि अब क्या करें ? उन्हने तुरंत ही सेन्ट्रल पाइंट पर वापस जाने का फ़ैसला लिया । मीरा का रो रो कर बुरा हाल था कि अभिमन्यु को जंगल में छोड़कर कैसे वापस चले जाएं । आधे घंटे की मशक्कत के बाद अर्जुन का समूह केन्द्र स्थान पर पहुंच गया । वहां बाक़ी सारे लोग आ चुके थे और शहर स्थित होटल जाने की तैयारी में लगे थे । जब उन्हें पता लगा कि अभिम्ंन्यू जंगल में कहीं खो गया है तो उन्होंने तुरंत ही अपने साथ हुए हादसे के बारे में आयोजकों को बताकर मदद की गुहार लगाई । आधे घंटे के अंदर ही आयोजकों के प्रयास से 25 स्वयंसेवको का समूह पोलिस वालों के साथ सर्च लाइट लेकर केन्द्र स्थल पर पहुंच गए। अर्जुन और उसके साथी कृष्णा को छोड़कर बाक़ी सारे लोग होटल की ओर रवाना कर दिए गए और अर्जुन , कृष्णा खोजी टीम के साथ अभिमन्यु की तलाश में सघन खोज़ बीन प्रारंभ की गई । अलग अलग समूहों में बंट कर वे अलग अलग दिशाओं में अभिमन्यु को ढूंढने निकल पड़े । रात के 9 बजे के करीब उन्होंने तलाशी अभियान कल के लिए मुल्तवी करके शहर की ओर रवाना हो गए।
अगले दिन अर्जुन , कृष्णा और मीरा को छोड़कर बाक़ी लोग इस्लामाबाद चले गए और वहां से वे भारत लौट आए। वहीं अर्जुन और कृष्णा आयोजकों के स्वयं सेवकों तथा लोकल एथारिटी के लोगों के साथ अभिमन्यु की खोज़ में लग गए। कई समूह जंगल के आस पास के गांवों में जाकर अभिमन्यू के बारे में पता लगाने का काम किया । लेकिन इतने प्रयास के बावजूद अभिमन्यु का कोई पता नहीं चला । 10 दिनों बाद जंगल के मद्ध्य स्थित एक गांव का कोटवार अकबराबाद के थाने पहुंच कर बताया कि हमारे गांव के पास एक बच्चे की लाश पड़ी है । लोकल एथारिटि के लोग अर्जुन , कृष्णा व मीरा को लेकर उस स्थान पर पहुंचे । वह एक बच्चे की ही लाश थी । कद काठी में वह अभिमन्यु से मिलती जुलती थी । पर लाश पूरी तरह खराब हो चुकी थी अत: सही पहचान मुश्क़िल थी । मीरा को नहीं लग रहा था कि यह अभिमन्यु की लाश है वहीं अर्जुन को लग रहा था कि संभवत: यह अभिमन्यु का ही शव है । अंत में यह निर्णय लिया गया कि सारी कानूनी प्रक्रिया करके लाश का अंतिम संस्कार कर दिया जाए। दो दिनों बाद अर्जुन द्वारा उस बच्चे का अंतिम सस्कार कर दिया गया । अगले दिन प्रशासन के द्वारा अर्जुन , मीरा और कृष्णा का भारत लौटने का इंतज़ाम कर दिया गया । उन्हें यह भी अश्वासन दिया गया कि अगर आपके बच्चे के बारे में कोई नई खबर प्राप्त होगी तो आपको इत्तला किया जाएगा ।
( क्रमशः)