-----वतन परस्ती----(कहानी दूसरी क़िश्त)
देखते ही देखते 20 साल गुज़र गए। अब पाकिस्तान और भारत के संबहधों में कड़वाहट आ गई। अब दोनों तरफ़ से जासुसी गतिविधियां भी तेज़ हो गईं ।
इसी तारतम्य मेरी पाकिस्तान के आईएसआई चीफ़ मोहम्मद गाज़ी ने अपने दो अधिकारियों को भारत की कुछ सामरिक जानकारियां जुटाने के लिये भारत की सीमा में प्रवेश करवाया ।
उनके द्वारा चयनित दो अधिकारी थे एक मुस्तफ़ा शाद और दूसरा नाम युसुफ़ जमाली । भारतीय सीमा में घुसने के उसके बाद मुस्तफ़ा को आगरा जाना था। वहीं युसुफ़ को जैसलमेर के आसपास से जानकारी जुटानी थी।
भारत की सीमा में मुस्तफ़ा अलग अलग वाहनों के द्वारा दो दिनों में आगरा पहुंचकर वहां के एक धर्मशाला में ठहर गया । उसने अपनी दाढी मूछें निकलवा ली थी साथ ही जनेऊ भी धारण कर लिया था । रोज़ सुबह वह आगरा की गलियों में घूम घूम कर कुछ ज़रूरी जानकारियों को जुटाने लगा । इआज वह अपने आपको कार्यमुक्त रखकर ताज़महल की सुन्दरता और भव्यता देखने का मन बनाया था । ताजमहल की सुन्दरता को देखकर वह मंत्र मुघ्ध हो गया । ताज़महल का मुआयना करने के बाद वह पास ही स्थित एक गली में प्रवेश करके वहां स्थि एक हलवाई की दुकान में समोशा और जलेबी खाने लगा । हलवाई को पैसा पटाकर वह उस गली के सामने वाली गली में चला गया । उस गली में घुसते ही उसे ऐसा लगा कि इस गली में वह पहले भी आ चुका है। कुछ कदम आगे बढा तो उसे एक जर्जर हवेली नज़र आई । उस हवेली की दीवाल पर एक बोर्ड लगा था । पंडित रामप्रसाद चतुर्वेदी । न जाने कैसे मुस्तफ़ा का हाथ उठ गया और उस हवेली के दरवाज़े कि खटखटाने लगा । कुछ देर बाद एक बुजुर्ग व्यक्ति बाहरा अया तो मुस्तफ़ा ने पूछा कि क्या आप ही रामप्रसाद जी हैं । बुजुर्ग ने जवाब दिया हां मैं ही राम्प्रसाद चतुर्वेदी हूं । बोलिए मुझसे क्या काम है आपको?
मुस्तफ़ा – मुझे आपसे कुछ बात करनी है।
रामप्रसाद – आइए अंदर आइए , आराम से बैठिए और फिर पूछिए , क्या पूछना है ?
मुस्तफ़ा – इस घर के मालिक आप हैं या कोई और ।
रामप्रसाद –मैं तो एक ग़रीब ब्राह्मण हू। ये मेरे जजमान अर्जुन और मीरा जी की हवेली है । उम दोनों का देहान्त एक कार एक्सीडेन्ट में कुछ वर्ष पहले हो चुका है । उनका सुपुत्र विक्रम फ़ौज़ में है , उन्होंने ही मुझे घर की देखभाल की ज़िम्मेदारी सौंपी है ।
मुस्तफ़ा ‘ क्या अर्जुन और मीरा जी के कोई फोटो आपके पास है ?
रामप्रसाद—जी नहीं यहां तो नहीं है । उनके सुपुत्र विक्रम जी के पास होगा। उनकी पोस्टिंग तो जोधपुर में है । वैसे क्या बात है?
मुस्तफ़ा—मैं अपने जीवन में पहली बार आगरा आया हूं पर मुझे न जाने क्यूं लग रहा है कि यह गली और यह हवेली जानी पहचानी है । क्या इस घर के पिछले हिस्से में आंगन है , आंगन पर एक पीपल का पेड़ और एक छोटा सा मंदिर है ?
रामप्रसाद – जी हां आप जिन जिन चीज़ों का उल्लेख कर रहे हैं वैसी सारी चीज़ें हैं इस घर में ।
मुस्तफ़ा – मुझे विक्रम संबंधित जानकारी कहां से हासिल होंगी।
रामप्रसाद = परसों ही उनकी चिट्ठी आई है । उसमें उनका पता का उल्लेख है । आप नोट कर लें ।
मुस्तफ़ा—पता नोट करते हुए कहा कि ठीक है , बहुत बहुत शुक्रिया, फिर आपसे मुलाक़ात होगी ।
इस तरह मुस्तफ़ विक्रम का पता लेकर धर्मशाला की ओर जाने लगा । जाते जाते वह उस घर और उस गली को कई बार पलट कर देखता रहा ।
अगले दिन वह जोधपुर पहुंचकर विक्रम को ढूंढते हुए उसके आफिस पहुंच गया । विकरं से जब वह मिला तो विक्रम ने उससे पुछा
बोलिए मुझसे आपको क्या काम है?
मुस्तफ़ा – आप आगरा वाले विक्रम हैं न आपके पिताजी का नाम अर्जुन है ना ?
विक्रम – आप ने बिल्कुल ठीक कहा ।
मुस्तफ़ा – मैं आपसे तसल्ली से बात करना चाहता हूं क्या हम किसी समय कंपनी गार्डन में बैठकर बात कर सकते हैं ?
विक्रम—आज तो नहीं कल शाम को मैं आपसे कंपनी गार्डन में मिल सकता हूं ।
मुस्तफ़ा – ठीक है कल शाम ।
अगले दिन मुस्तफ़ा शाम साढे पांच बजे ही कंपनी गार्डन पहुंच गया । और बिल्कुल किनारे की एक बेन्च पर बैठकर विक्रम का इंतज़ार करने लगा । ठीक 6 बजे विक्रम सादे ड्रेस में वहां पहुंचा और मुस्तफ़ा के पास पहुंचकर कहा , कहिए मुझसे क्या बात करनी है आपको?
मुस्तफ़ा – मैं एक पाकिस्तानी हूं और वहां के एक छोटे से शहर अकबराबाद का निवासी हूं । मैं पहली बार भारत आया हूं और यहां आगरा में मुझे कुछ ज़रूरी काम था । तो दो दिन पहले मैं आगरा में अपना काम कर रहा था । वहां पर एक गुप्ता हलवाई है । जिसके बाजू स्थित गली में जाने से मुझे लगा कि इस गली से मेरा कुछ तो रिश्ता है । उस गली में स्थित चौथा मकान , जो तुम्हारे पिताजी ने बनवाया है , वहां गया तो मुझे ऐसे लगा कि वहां कि सारी दीवारें मुझे पहचानती हैं और वहां रहने वाले पंडित जी को मैने बिना देखे जब उस घर का नक्शा बताया तो वे भी चकित रह गए। मैं परेशां हं कि आखिर आगरा के उस गली से और आपके मकान में मुझे अपने बचपन की किलकारियां गूंजती क्यूं सुनाई देती हैं?
विक्रम जी क्या उस गली और अपने मकान के इतिहास के बारे कुछ जानकारी है ?
विक्रम – तुम्हारी बातें मेरे गले नहीं उतर रही हैं । पांच वर्ष पूर्व मेरे माता पिता का एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई है । उन्होंने भी मुझे उस मकान संबंधित या किसी भी तरह की अनहोनी वाली बात कभी भी नहीं बताई है ।
मुस्तफ़ा – क्या तुम किसी ऐसे शख़्स को जानते हो जो उस गली के तीस वर्षों का इतिहास जानता हो ?
विक्रम – नहीं मेरी जानकारी में ऐसा कोई भी शख़्स नहीं है ।
( क्रमशः)