अपनी नाक़ामियाबी को हम दुसरो पर थोप कर अपनी कमियों पर पर्दा डाल लेते है. और अपनी कामियाबियों पर खुश हो लेते है. आज कहाँ है से हम नावाकिफ़ बने रहते है. जो गुज़र गया उसे भूल जा, जो है हो रहा उसे जान ले. तेरे सर पे जो कभी ताज था, वो उस वक्त का कमाल था, इस वक्त तेरे सर पर बवाल है, इसे जान ले पहचान ले . -----. गीता में कृष्ण युद्ध के हिमायती नहीं थे, लेकिन अर्जुन को यही समझाया था कि जब वक्त था इस जंग से बचने का तब तुमने कोई इसके बारे में नहीं सोचा और आज जब जंग के मैदान में पहुँच गए हो तो फिर सोचने का कोई फायदा नहीं. अब किसी के रोकने से यह नहीं रुकेगी, क्योकि स्वयं काल ने इसका फैसला कर दिया है और काल से बड़ा कोई नहीं है . इंसान सब से लड़ सकता है पर काल से नहीं, काल अजेय है. इसलिए अब जंग ना करना बुज़दिली होगी. कृष्ण ने बार बार सबको समझाया था, अमन की बात की थी लेकिन सब के लिए अमन से ज्यादा अहम अपने हक़ थे, लड़ाई अपने हकों की थी. जब जब इंसान हको की बात करता है और अपने फ़र्ज़ भूल जाता है तब तब जंग का मैदान तैयार हो जाता है. जंग में जीत किसी की हो पर मरती इंसानियत ही है. क्योकि इंसानियत की ना कोई जात होती है ना कोई मजहब होता है. वक्त गुज़र जाता है और हम यही कहते रहते है कि " वो दिन भी क्या दिन थे ".
2018-9-2