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प्रियतम की याद

30 अक्टूबर 2015

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प्रियतम की याद


पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतम

नयन नीर बन फूट रही है ।

दुःख का सागर धैर्य खो रहा

व्यथा की सरिता उमड़ रही है ।

पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतम

नयन नीर बन फूट रही है ।

अक्स तुम्हारा मुझ में बसता

और हमारी साँसें तुझ में ।

आह तुम्हारी मेरे प्रियतम

बन शूल हृदय को छेद रही है ।

पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतम

नयन नीर बन फूट रही है ।

मैं हूँ नयन प्राणपति तेरे

तुम हो इन नयनों की ज्योति ।

हैं निर्मूल्य नज़ारे सारे

नज़र–नज़र को बींध रही है ।

पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतम

नयन नीर बन फूट रही है ।

चाह तुम्हारी बन कर सपना

चैन न पाने देती है ।

मन में प्रिये तुम्हारी मूरति

पल-पल चम-चम चमक रही है ।

पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतम

नयन नीर बन फूट रही है ।

मैं चातक तुम स्वाति बूंद

चाह तुम्हारी हर क्षण हमको ।

देख-देख बादल कजरारे

मेरे मन की कलिका महक रही है ।

पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतम

नयन नीर बन फूट रही है ।

 
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रचनाएँ
राघव का रचना संसार : कुछ कविताएँ और कुछ लेख
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इस पुस्तक में कविता व लेख दोनों सम्मिलित हैं। यह भविष्य हेतु दिग्दर्शिका की भाँति है।
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प्रियतम की याद

30 अक्टूबर 2015
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प्रियतमकी यादपीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनयन नीर बन फूट रही है ।दुःख का सागर धैर्य खो रहाव्यथा की सरिता उमड़ रही है ।पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनयन नीर बन फूट रही है ।अक्स तुम्हारा मुझ में बसताऔर हमारी साँसें तुझ में ।आह तुम्हारी मेरे प्रियतमबन शूल हृदय को छेद रही है ।पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनय

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प्रियतम की याद

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प्रियतमकी यादपीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनयन नीर बन फूट रही है ।दुःख का सागर धैर्य खो रहाव्यथा की सरिता उमड़ रही है ।पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनयन नीर बन फूट रही है ।अक्स तुम्हारा मुझ में बसताऔर हमारी साँसें तुझ में ।आह तुम्हारी मेरे प्रियतमबन शूल हृदय को छेद रही है ।पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनय

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प्रियतम की याद

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प्रियतमकी यादपीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनयन नीर बन फूट रही है ।दुःख का सागर धैर्य खो रहाव्यथा की सरिता उमड़ रही है ।पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनयन नीर बन फूट रही है ।अक्स तुम्हारा मुझ में बसताऔर हमारी साँसें तुझ में ।आह तुम्हारी मेरे प्रियतमबन शूल हृदय को छेद रही है ।पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनय

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आप के आशीर्वाद का आकांक्षी... http://www.unvanprkashan.com/details.php?book=28

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