वक्त बदला हालात बदले,
या इंसान बदला है ।
रात अब भी स्याह है,
दिन भी अब तक उजला है ।
कल भी मां बाप,
बच्चों को पालते थे ।
आज तक माँ बाप,
कर्तव्य पथ पर अडिग हैं ।
सन्तान की खुशी उन्हें,
कल भी अनमोल थी ।
सन्तानों का ही सुख,
आज भी उनकी पूँजी है ।
कल तक माँ-बाप की खुशी,
बच्चों की आन होती थी ।
माँ-बाप पर क़ुर्बान,
सन्तानों की जान होती थी ।
माँ-बाप तो आज भी नहीं बदले,
पर सन्तानों का रूप बदला है ।
वक्त बदला हालात बदले,
या इंसान बदला है ।।
अन्धे माँ-बाप को काँधे पर,
उठाकर तीर्थ कराए ।
जन्मदाताओं के सुख के लिए,
तरह-तरह के दु:ख उठाए ।
कहानी श्रीराम और श्रवण कुमार की,
पढ़ी ही होगी ।
वर्तमान के ढंग देखो कहते हैं,
कहानी काल्पनिक होगी ।
बुजुर्ग तो देवता का रूप हैं,
भारतीय दर्शन कहता है ।
इक्कीसवीं सदी का आलम,
मग़र कुछ और कहता है ।
अब वृद्ध लाचार मज़बूर,
वृद्धाश्रमों में पलता है ।
वक्त बदला हालात बदले,
या इंसान बदला है ।।
जिन्होंने दूध की कमी नहीं होने दी,
पानी को तरसते हैं ।
भूख से व्याकुल गली-गली,
भीख मांगते फिरते हैं ।
वक़्त ऐसी करवट लेगा कि,
संस्कार ही मिट जाएंगे ।
किसने सोचा था कि सिद्धान्त,
सिर्फ किताबों में रह जाएंगे ।
परिवर्तन बड़ा बलशाली है,
ये कुछ भी कर सकता है ।
किन्तु समाज के धृतराष्ट्रों का,
सारथी संजय नहीं बन सकता है ।
जन्म और मृत्यु अपरिवर्तित है,
पानी का रंग भी नहीं बदला है ।
वक्त बदला हालात बदले,
या इंसान बदला है ।।