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गन्दी बस्ती

15 सितम्बर 2015

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अन्त:विचारों में उलझा 

न जाने कब 

मैं 

एक अजीब सी 

बस्ती में आ गया । 


बस्ती बड़ी ही खुशनुमा 

और रंगीन थी । 

किन्तु वहां की हवा में,  

अनजान सी उदासी थी । 


खुशबुएं वहां की 

मदहोश कर रहीं थीं । 

पर एहसास होता था 

घोर बेचारगी का, 

टूटती सांसे 

जैसे फ़साने बना रही थीं । 


गजरे और पान की दूकानें 

एक ही साथ थीं । 

मधुशालाएं जगह-जगह 

प्यालों में लिए हाला थीं । 


मकती इमारतों में 

दमकते हुए चेहरे थे । 

मानो चिलमनों से 

चाँद निकल आए थे । 


यहांँ अंधेरे को चीरकर 

नज़रें 

उजली चाँदनी में मिलती हैं । 

यही तो हैं 

वह बस्तियां 

जो सभ्य समाज की 

गन्दगी निगलती हैं । 


शरीफ़ों की निगाहों में 

ये एक बदनाम बस्ती है । 

शराफ़त किन्तु हर लम्हा 

यहाँ हर ओर बिकती है । 


पुरुषत्व की मैला 

इसी बस्ती में साफ होती है । 

ख़ुद मैली होकर यह बस्ती 

हर शय जिहाद करती है । 


सियासत के फ़सादों से 

बड़ी ही दूर यह बस्ती । 

मुसलमान और हिन्दू में 

कभी कोई भेद नहीं करती । 


मग़र क्यों लोग कहते हैं 

इसे बदनाम सी बस्ती । 

यहाँ तो तन मन लुटता है 

ये ख़ुशियाँ हैं मग़र कैसी । 


जो लुटता है वही क़ाफ़िर, 

सफेद चादर ओढ़े जानवर 

इंसान कहा जाता है ।

 गंदगी साफ़ करने वाली 

बस्तियों को यहाँ 

नाजायज़ और बदनाम 

कहा जाता है । 


ऐ ख़ुदा 

जहाँ ग़रीबों की इज़्ज़त 

और इंसान की जान सस्ती है, 

क्या वो नहीं बदनाम बस्ती है ? 

आखिर ऐसी रियाया को 

क्यों बनाया ? 

जिससे अच्छी तवायफ़ों की बस्ती है ।।

राघवेन्द्र कुमार

राघवेन्द्र कुमार

विजय कुमार शर्मा जी और अर्चना गंगवार जी उत्साहवर्धन करने के लिए धन्यवाद...

21 सितम्बर 2015

अर्चना गंगवार

अर्चना गंगवार

यही तो हैं वह बस्तियां जो सभ्य समाज की गन्दगी निगलती हैं । शरीफ़ों की निगाहों में ये एक बदनाम बस्ती है । शराफ़त किन्तु हर लम्हा यहाँ हर ओर बिकती है ।.........................ek kadva satya .....jis par charcha karne se ....se har samajh bachta hai ......ekdam sata kaha hai aaapne ........lakin isko khuli aankho se manna chahiye

20 सितम्बर 2015

विजय कुमार शर्मा

विजय कुमार शर्मा

जिंदगी के अंधेरों उजालों से रुबरु कराती एक उत्कृष्ट रचना

20 सितम्बर 2015

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रचनाएँ
राघव का रचना संसार : कुछ कविताएँ और कुछ लेख
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इस पुस्तक में कविता व लेख दोनों सम्मिलित हैं। यह भविष्य हेतु दिग्दर्शिका की भाँति है।
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परिवर्तन

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गन्दी बस्ती

15 सितम्बर 2015
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अन्त:विचारों में उलझा न जाने कब मैं एक अजीब सी बस्ती में आ गया । बस्ती बड़ी ही खुशनुमा और रंगीन थी । किन्तु वहां की हवा में,  अनजान सी उदासी थी । खुशबुएं वहां की मदहोश कर रहीं थीं । पर एहसास होता था घोर बेचारगी का, टूटती सांसे जैसेफ़साने बना रही थीं । गजरे और पान की दूकानें एक ही साथ थीं । मधुशालाएं

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गुरु वन्दना

17 अक्टूबर 2015
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स्वीकार करो गुरु मम् प्रणाम, मैं शरण आपकी आपकी आया हूँ ।मैं तर जाऊँ भव सागर से, वह युक्ति जानने आया हूँ ।बिन गुरु ज्ञान नहीं जग में, यह वेद पुराण सभी कहते ।गुरु की महिमा के सन्मुख, ईश्वर भी स्वयं झुके रहते ।ज्ञान मिले किस विधि से प्रभु, वह युक्ति जानने आया हूँ । स्वीकार करो गुरु मम् प्रण

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प्रियतम की याद

30 अक्टूबर 2015
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प्रियतमकी यादपीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनयन नीर बन फूट रही है ।दुःख का सागर धैर्य खो रहाव्यथा की सरिता उमड़ रही है ।पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनयन नीर बन फूट रही है ।अक्स तुम्हारा मुझ में बसताऔर हमारी साँसें तुझ में ।आह तुम्हारी मेरे प्रियतमबन शूल हृदय को छेद रही है ।पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनय

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प्रियतम की याद

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प्रियतम की याद

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प्रियतमकी यादपीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनयन नीर बन फूट रही है ।दुःख का सागर धैर्य खो रहाव्यथा की सरिता उमड़ रही है ।पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनयन नीर बन फूट रही है ।अक्स तुम्हारा मुझ में बसताऔर हमारी साँसें तुझ में ।आह तुम्हारी मेरे प्रियतमबन शूल हृदय को छेद रही है ।पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनय

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आप के आशीर्वाद का आकांक्षी... http://www.unvanprkashan.com/details.php?book=28

22 अक्टूबर 2016
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देश बेंच के खा डाला है नेता और दलालों ने ।जनता के घर डाका डाला मिलकर नमक हरामों ने ।खादी टोपी बर्बादी की बनी आज परिचायक है ।चोर उचक्के आज बन गए जनता के जन नायक हैं ।गाली – गोली किस्मत अपनी जीवन फँसा सवालों में ।देश बेंच के खा डाला है नेता और दलालों ने ।सरकारी जोंकें चिपकी हैं लोकतन्त्र के सीने में ।

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हे कृषक-पुत्र! हे लौह-पुरुष!

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<p><strong>——-राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’</strong></p> <p>जीवट जिनका लाखों जन को<br> सम्बल देता

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