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मैं योगेश कुमार पुत्र विजय पाल सिंह, ग्राम - गेझा (मेरठ)

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कविता

23 मार्च 2015
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फूलों की तरह मत बनना जिस दिन खिलोगे टूट कर बिखर जाओगे बनना है तो पत्थर की तरह बनो जिस तराशे गए "भगवान" बन जाओगे

दहेज़ के टर्रे

24 फरवरी 2015
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ससुर ने भावी दामाद से पूछा कि आपको शादी में क्या-क्या चाहिए शर्माइये नहीं बे झिझक फरमाइए इतना सुनते ही भावी दामाद की तो बांछे खिल गई भावी दामाद ने कहा हमें चाहिए "टर" ससुर ने कहा जरा विस्तार से समझाइये तो भावी दामाद ने समझाया कि "टर" जैसे: मोटर, कैलकुलेटर, स्कूटर, ट्रांज़िस्टर, रेफ़्रीज़रेटर

हंसी के फुव्वारे

17 फरवरी 2015
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१. श्रीमति जी के हाथ का बना बेस्वाद खाना खाकर कहने लगे श्रीमान जी चिल्ला चिल्लाकर यह क्या है? खाना है या गोबर श्रीमति जी बोली हाथों को नचा नचाकर हे भगवान! तुमने भी क्या क्या चीजें देख रखी है चखकर २. श्रीमान जी की पत्नी का रंग जरा वैसा था ज्यादा नहीं बस जरा उल्टे तवे जैसा था पहन

गुरु दक्षिणा

13 फरवरी 2015
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एक बार एक शिष्य ने विनम्रतापूर्वक अपने गुरु जी से पूछा-‘गुरु जी,कुछ लोग कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है,कुछ अन्य कहते हैं कि जीवन एक खेल है और कुछ जीवन को एक उत्सव की संज्ञा देते हैं | इनमें कौन सही है?’गुरु जी ने तत्काल बड़े ही धैर्यपूर्वक उत्तर दिया-‘पुत्र,जिन्हें गुरु नहीं मिला उनके लिए जीवन एक सं

इब्नबत्तूता का जूता

11 फरवरी 2015
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इब्नबत्तूता पहन के जूता निकल पड़े तूफान में थोड़ी हवा नाक में घुस गई थोड़ी घुस गई कान में कभी नाक को कभी कान को मलते इब्नबत्तूता इसी बीच में निकल पड़ा उनके पैर का जूता उड़ते उड़ते उनका जूता जा पहुंचा जापान में इब्नबत्तूता खड़े रहा गये मोची की दुकान में

इब्नबत्तूता का जूता

11 फरवरी 2015
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मफलर की कहानी

10 फरवरी 2015
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दिल्ली वालो का खुमार झाड़ू पर चढ़ गया लाखों के कोट पर 100 रूपये का मफलर भारी पड़ गया

दिल्ली के CM पद के उम्मीदवारों से पूछताछ के अंश(व्यंग)

10 फरवरी 2015
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मैं:- अरविन्द केजरीवाल जी आपके कार्यकर्त्ता जीत कि खुशी में पठाखे छुड़ाने के लिए अभी से पठाखे खरीद रहे है. अगर आपकी पार्टी नहीं जीतती TO आप उन पाठको का क्या करेंगे ​अरविन्द केजरीवाल:- अगर हम नहीं जीते तो आगे भारत-पाकिस्तान का वन डे क्रिकेट मैच होगा तो काम आ जायेंगे मैं:- किरण बेदी जी अगर भाजपा

बारिश की बूंदों से भीगा हुआ गांव

6 फरवरी 2015
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मुखिया के टपरे हरियारे बनवारी के घाव सावन की सांझी में गुमसुम भीग रहा है गांव छन्नो के टोले का तो हर छप्पर छलनी है सब की सब रातें अब तो आँखों में ही कटनी है चुवने घर में नहीं कहीं खटिया भर सुखी ठाँव निदयारी आँखों में लेकर खेतो में जाना है रोपाई करते करते भी कजली गाना है

चाय

6 फरवरी 2015
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योगेश खड़ा बाजार में, मांगे सबको चाय मुझको तो मिल गयी बाकि खड़े लखाय

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