“गीतिका”देखों वो जा रहें हैं लगते नहा नहा के आँचल उठाए कर से पानी बहा बहा केफैली हुई हैं बूँदें लट गेशू भिगा रही है उठते हैं पाँव पानी चले मानों थहा थहा के॥ अरमान तकते रहते गुमनाम जिंदगी के उड़ता चला है बादल बिजली ढहा ढहा के॥ नयना उलझ ही जाते जब दूर होती मंजिल चातक का भाव