अयोध्या की याद आती है प्रतिपल मुझे अयोध्या की याद आती है याद करने को मेरे लिए कुछ भी नहीं बाकी है नाते जन्म - जन्म के, सब हो गये बे गानेऐसा लगे की जैसे ,सब सम्बन्धों की झांकी है न किसी को आना है , न किसी को जाना है आने और जाने में, बात बस जरा सी है छोटी सोच से ऊपर रहके ,बड़ी सोच संग जो रहता प्रकृति के संग -संग जो चलता , प्रकृति उसे अपनाती है मैं सुखमंगल हूँ सभी का मंगल -मंगल मैं चाहूँ समझ लो मेरी यही सोच, मेरे जीवन की थाती है | - सुखमंगल सिंह 'मंगल '
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