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भाग्यवान

सुखमंगल सिंह

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लिख दिया था क्या लिखूं अब, किसका करूं मैं गुड़गान! रोटी - कपड़ा और मकान मनुष्य का रिश्ता सदा सम्मान। बढ़ता जिससे स्वाभिमान, बनाया जिसने महा महान। जो दिया ऐसा वरदान भूल गया उसको इंसान। भक्षण जीव का करता है जीव जीव से लड़ता है! स्वप्नलोक में विचरण करता विनय विषाद में उलझे रहता! हो गया है कैसा इंसान पर करता रहता सम्मान? रक्षा लेखा जोखा भगवान अरे भाग्यवान श्रीमान। - सुख मंगल सिंह  

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