क्या ढूँढना है?
मानव का सारा जीवन इसी परेशानी में व्यतीत हो जाता है कि उसे क्या ढूँढना है? उसकी तलाश वहाँ जाकर सिमट जाती है जब उसे यह सुकून मिल जाता है कि जो कुछ उसने इस संसार में कमा लिया है, उसे वह अपने साथ अगले जन्म में लेकर नहीं जा सकता है। उसका जो सब कुछ है इसी संसार में रह जाता है।
मनुष्य के शुभाशुभ कर्म ही केवल उसकी वास्तविक पूँजी कहलाते हैं जो जन्म-जन्मान्तर तक उसका साथ निभाते हैं। उसे कमाने के लिए वह जितना अधिक यत्न करता है, उतना ही मानसिक रूप से मजबूत, सहृदय और दूसरों की चिन्ता करने वाला बनता है।
यदि मनुष्य अपने जीवन में पीछे मुड़कर देखे, तो उसे अनुभव का खजाना ही मिलेगा। भावी जीवन में दूरदर्शिता से काम ले तो आशा मिलेगी। दाएँ और बाएँ देखने पर सच्चाई के दर्शन होंगे। इसी तरह स्वयं अपने अंतस में झाँककर देख सके, तो वहाँ परमात्मा और आत्म विश्वास से उसका साक्षात्कार हो जाएगा।
यदि वह उचित अवसर की तलाश में है, तो उसे सदा याद रखना चाहिए कि हर अवसर उपयुक्त होता है। शर्त यह है कि मनुष्य उसका सदुपयोग कर सके। हम यहाँ तालाब का उदाहरण लेते हैं। जब वह भरा होता है, तब मछलियाँ चींटियों को खाती हैं। जब वही तालाब खाली हो जाता है, तब नन्ही चींटियाँ मछलियों को खाने लगती हैं।
इसका अर्थ यही निकलता है कि जीवन में अवसर तो हर किसी जीव को मिलता है। देखना बस यही होता है कि वह उसका सदुपयोग कर पाता है अथवा नहीं। सोचने वाली बात यही है कि कब तक वह अपने लिए उपयुक्त अवसर का इन्तजार करता हुआ बैठा रहेगा।
इस दुनिया में लोगों को आगे बढ़ता हुआ कोई भी मनुष्य अच्छा नहीं लगता, ऐसा अनुभव बहुत से लोगों को हुआ होगा। जो भी मनुष्य ऊँचाई छूने लगता है, उसे पीछे धकेलने का भरसक प्रयास किया जाता है। लोग बीज को मिट्टी में दबाने का बार-बार प्रयास करते हैं लेकिन वे भूल जाते हैं कि बीज की यह आदत होती है कि वह बार-बार उग जाता है। फिर एक वृक्ष बनकर सब जीवों को फल और छाया देता है।
इसी तरह मनुष्य भी बारम्बार अपने सामने आए हुए अवसर को नहीं चूकता। वह हर समय अपने लिए अवसर तलाशने का साहस करता है। कोई कितना भी उसे डिगाने का यत्न क्यों न करे, वह उन सब कठिनाइयों को पार करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो ही जाता है।
मनुष्य की यह तलाश जीवन पर्यन्त चलती ही रहती है। कभी वह सुख की तलाश मे भटकता है, तो कभी शान्ति की। इस खोज में वह देश-विदेश में घूमता है, जगलों के एकान्त में जाता है। इसी कड़ी में भटकता हुआ तथाकथित गुरुओं और तान्त्रिकों व मान्त्रिकों के चंगुल मे भी फंस जाता है। वहाँ से बाहर निकलने के लिए हाथ-पैर पटकता रहता है।
जीवन में उसे बहुत-सी परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है तथा लाभ-हानि जैसे द्वन्द्वों के थपेड़ों को भी सहन करना पड़ता हैं। प्रभु मनुष्य को उसके पूर्वकृत कर्मों के अनुसार सब देता है। मनुष्य पर उसकी मेहरबानियाँ भी बहुत हैं जिसे उसे सदा याद रखना चाहिए।
हर मनुष्य को अपनी सूझबूझ के अनुसार यानी अपने विवेक के बल पर ही अपनी तलाश नित्य जारी रखनी चाहिए। सबसे आगे रहने का उसे कोई भी अवसर गँवाना नहीं चाहिए। जब तक जीवन है उसे हार नहीं माननी चाहिए। अपनी इच्छाशक्ति और दृढ़ विश्वास पर पूर्णरूप से भरोसा करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद