उचित अवसर की प्रतीक्षा
उचित अवसर की प्रतीक्षा में लोग प्रायः बैठे रहते हैं। वे सोचते हैं कि उचित समय आएगा, तो वे कुछ विशेष कार्य करके सारी दुनिया को दिखा देंगे। ऐसे साधारण प्रकृति के लोग होते हैं जो उसकी राह देखते रहते हैं। न उन्हें उचित अवसर मिल पाता है और न ही वे कोई ऐसा चमत्कार कर पाते हैं, ताकि संसार उनके कार्यों को उनके जाने के बाद याद कर सके। अतः अपने जीवन में ये लोग पिछड़ जाते हैं।
इसके विपरीत असाधारण व्यक्तित्व के लोग इन अवसरों को जन्म देते हैं। वे कभी किसी अवसर की प्रतीक्षा नहीं करते बल्कि ऐसा लगता है कि अवसर ही उन्हें तलाशता हुआ आ जाता है। उनके लिए हर अवसर विशेष होता है। उसका लाभ उठाने से वे कभी नहीं चूकते। इसलिए वे अपने जीवन में हर कदम पर सफलता को गले लगाते हैं।
इस दुनिया की रीति है कि यहाँ पर कठोर-से-कठोर लोहे को भी चाहें तो तोड़ा जा सकता है। बिना श्वास की धौंकनी का प्रयोग करके जब चाहे लुहार लोहे को तोड़-मरोड़ सकता है। उसे मनचाहा आकार दे सकता है। लोहे की मजबूती उस लुहार के आड़े नहीं आती।
कहते हैं कि जब कई झूठे व्यक्ति इकट्ठे हो जाते हैं, तो बे बार-बार सच को झूठ में बदलने का प्रयास करते हैं। तब सच टूटा हुआ-सा दिखाई देने लग जाता है। परन्तु वास्तव में ऐसा होता नहीं है। सत्य तो सत्य ही रहता है।
वह कुछ समय के लिए सूर्य कि तरह बादलों की ओट में जाकर छुप सकता है, पर फिर हमें चमकता हुआ, मुस्कुराता हुआ दिखाई देने लग जाता है। वेदमन्त्र कहता है-
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्।
अर्थात् स्वर्णिम पात्र से सोने का मुख ढका हुआ है। दूसरे शब्दों में कहें तो हर चमकती वस्तु सोना नहीं होती। अतः नकली और असली की पहचान करने की मनुष्य को परख होनी चाहिए।
इसीलिए मनीषी समझाते हैं कि यदि सत्य को सौ परदों में भी छुपाकर रख दिया जाए तो भी वह समय आने पर स्वयं प्रकट हो जाता है। तब वह झूठों का मुँह काला कर देता है। उन्हें सबके समक्ष शर्मसार करने से पीछे नहीं हटता।
मनुष्य को अपनी सच्चाई और ईमानदारी से अपने निर्धारित मार्ग पर सदा बढ़ते जाना चाहिए। किसी कंकड़ और पत्थर की क्या हैसियत कि वह उसकी राह रोक सके। रास्ता यदि ऊबड़-खाबड़ हो अथवा उस पर कंकड़-पत्थर हों, तो एक अच्छा जूता पहनकर उस मार्ग चला जा सकता है। अपने गन्तव्य पर पहुँचा जा सकता है।
लेकिन यदि एक अच्छे जूते के अन्दर ही कंकड़ आ जाएँ, तो एक अच्छी सड़क पर कुछ कदम चलना भी कठिन हो जाता है। इसलिए रास्ते की चुनौतियों से हारकर नहीं बैठ जाना चाहिए, बल्कि उन्हें मुँहतोड़ जवाब देते हुए सफलता प्राप्त करने से घबराना नहीं चाहिए।
कहने का तात्पर्य यही है कि बाहरी चुनौतियों से नहीं, बल्कि मनुष्य को अपने अंतस में विद्यमान कमजोरियों से लड़ना होता है जिनसे वह हार मानता रहता है। उसका निश्चय यदि दृढ़ हो तो किसी भी प्रकार का आँधी-तूफान उसके मार्ग में बाधा नहीं बन सकता।
वह इन्सान ही क्या जो कठिनाइयों के आने से मुँह मोड़ ले, आगे बढ़ने का विचार ही छोड़ दे। रास्ते में सौ झूठों की भीड़ भी आ जाए, तो उसके मजबूत इरादों को रौंद नहीं सकती। ये सब उसे जीवन में बहुत कुछ सिखा जाते हैं। उनसे अनुभव लेकर ही मनुष्य को अपने लक्ष्य तक पहुँचना होता है।
मनुष्य को तथाकथित उस उचित अवसर की प्रतीक्षा किए बिना ही जीवन के हर झंझावात को सहन करते हुए अनवरत आगे बढ़ते ही रहना चाहिए। तभी उसकी सोने-सी चमक हर किसी को चौंधिया कर रख सकती है। ऐसे साहसी जनों की ईश्वर भी सदा सहायता करता है।
चन्द्र प्रभा सूद