आओ चले बचपन में, फिर हों सभी अमीर !
डांट खाएं बापू से, मां से खाएं खीर !
मां से खाएं खीर, न कोई हो फिर टेंशन !
कि हर गली-नुक्कड़ में, दिखाएं हम हर एक्शन !
कहे 'सहज' कविराय, जीवन रसमय बनाओ !
फिर से खेलें-कूदें, मिट्टी में मिलकर आओ !
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- जेपी सहज