'पालघर' की घटना उतनी ही निंदनीय है जितनी इससे पहले की मॉब लीचिंग रही हैं। भीड़तंत्र भारत के लोकतान्त्रिक चरित्र के लिए बहुत घातक है। नागरिक किसी भी धर्म और संप्रदाय का हो उसे भी जीने का हक है। कभी गौ मांस के नाम पर, कभी अफवाह के नाम पर, भीड़ लोगों को मार रही है और कुछ लोग इसे धार्मिक रूप देकर, खुद को बचा हुआ महसूस कर रहे हैं।
कुछ तो ऐसे हैं जो एक धर्म विशेष के लोगों के साथ ऐसा होने पर जश्न मनाते हैं और सरे आम अपने बौद्धिक दिवालियापन का सबूत देते हैं। दलित और मुस्लिम के साथ कभी न्याय नहीं हुआ, उस समय यही लोग " गोली मारो सालो को" बोलकर लिंचिंग करने वालों का मनोबल बढ़ा रहे थे, मिठाई बांट रहे थे और उनको फूल मालाएं पहना रहे थे। ये देश लोकतांत्रिक है न कि जंगलराज। पर कुछ जंगली लोग जरूर इसकी आड़ में अपना काम निकाल रहे हैं।
जो भी भीड़तंत्र द्वारा किया जाएगा वो अमानवीय है । संवैधानिक मूल्यों को ही समाज की जरूरत है। किसी भी विशेष विचारधारा से अगर लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन होता है वो हमेशा त्यागयोग्य है। जहाँ भी लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन हो रहा है तो देश को खतरा है। जब हम धर्म और जाति के दायरे में ही इन घटनाओं को देखना शुरू कर देंगे तो हम मानवता के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं और देशभक्त भी नहीं सिद्ध हो रहे क्योंकि देश के संविधान के मूल्यों के विपरीत सोच रख रहे हैं।
अतः हम सभी का कर्तव्य बनता है कि धर्म और जाति को छोड़, भारत को उसके लोकतांत्रिक रूप में स्वीकार करें और उसी के अनुरूप कार्य करें।