आजकल बाबा साहब डॉ आंबेडकर जी की "जाति का सम्पूर्ण विनाश" पुस्तक पढ़ हूँ। उनका साफतौर पर मानना है कि राजनैतिक सुधार से पहले सामाजिक सुधार बहुत आवश्यक है। उनके शब्दों में "राजनीतिक क्रांतियाँ हमेशा सामाजिक और धार्मिक क्रांतियों के बाद हुई है।" साथ ही " मस्तिष्क और मन की मुक्ति जनता के राजनैतिक विस्तार के लिए पहली आवश्यकता है।"
बाबा साहिब की यह बात शत प्रतिशत दलित समाज पर विशेषकर और आम भारतीय जनता पर सामान्यतौर पर लागू होती है।
तथाकथित दलित नेता चुनाव समय में समाज में सक्रिय हो जाते हैं तथा इस बात की परवाह नहीं करते कि जिस समाज का सामाजिक और शैक्षणिक विकास नहीं हुआ वह कैसे राजनैतिक चेतना को पा सकता है क्योंकि केवल साक्षर होना ही सामाजिक विकास नहीं है बल्कि समाज की मूलभूत आवश्यकताओं को समझना और उसके प्रति संवेदशील होना भी अति आवश्यक है।
दूसरी तरफ आम भारतीय जनता जब तक समाज में फैले कोढ़ जैसे जातिप्रथा, धार्मिक संकीर्णता, मानवाधिकारों के उल्लंघन, समाज को तोड़ने वाली संस्थाओं के प्रति समझ पैदा नहीं कर पायी, वह कैसे भारत देश के लोकतांत्रिक स्वरूप को बनाने और संवैधानिक मूल्यों के सरंक्षण में कैसे अपनी भूमिका अदा कर सकती है?
यह प्रश्न विचारणीय है और लोकतांत्रिक भारत देश के लिए महत्वपूर्ण भी। स्वागत है नए भारत में-
1. जातिगत वैमनस्य का उद्भव
2. सामन्तवाद का उदय
3. पाखण्ड को राजनैतिक स्वीकृति
4. सामाजिक और सांस्कृतिक अवमूल्यन
5. धार्मिक उन्माद को हवा
6. भारतीय संविधान की अवहेलना
7. नैतिकता का ह्रास
8. शिक्षा और शोध का निम्नस्तर और इसका ध्रुवीकरण
9. आतंकियों का शुद्धिकरण
10. "जय भारत" की जगह "नमो नमो"
गोबर खाओ, मूत्र पीयो
देशहित भाड़ में जाये
अडानी-अम्बानी खूब जियो
देश चाहे बिक जाए।
रोज़ी-रोटी हक़ की बातें जो भी मुँह पर लाएगा
कोई भी हो, निश्चय ही वह, कम्युनिस्ट कहलाएगा।-नागार्जुन
राजनीति में साम दाम दण्ड भेद से ही जीता जाता है लेकिन कुछ बातें हैं जो मैं कहना चाहता हूँ :
1. कांग्रिस की हार का सबसे बड़ा कारण दलित समुदाय की अनदेखी करना रहा है । दलितों में भी जिन जातियों का उसने बहुत फ़ायदा किया सबसे ज़्यादा नुकसान उन्हीं ने किया ।
2. बसपा पार्टी की हार का कारण भी उसकी सबसे प्रिय जाति का वोट न मिलना और साथ ही ज़मीनीस्तर पर अपने उम्मीदवारों के पक्ष में प्रयास न करना रहा। हरियाणा और चण्डीगढ़ के प्रत्याशी “अन्य दलित जाति” से थे तो पार्टी की भावना के अनुरूप नहीं रहे होंगे।
3. कॉम्युनिस्ट पार्टी तो मार्क्सवादी विचारधारा को सही ढंग से न समझ केवल ऊपरी स्तर तक रह गयी।
आज एक बात तो साफ है भारत की जनता को चाहिए:
1. धर्म का लॉलीपॉप
2. गौमूत्र और गौ मांस पर कत्ल
3. छद्म राष्ट्रभक्ति
4. पाकिस्तान पर नाटकीय हमला
5. कश्मीर पर जुमले
6. नामकरण की राजनीति
7. अतार्किकता
8. कर्तव्यविमूढ़ता
9. मतान्धता
10. प्रायोजित खबरें और भाषण
11. वोट के लिये सेना का प्रयोग
12. जन विरोधी आर्थिक नीतियाँ
हमें देश का विकास, संवैधानिक मूल्य, भ्र्ष्टाचार और देशविरोधी कामों पर लगाम और वैज्ञानिक चेतना नहीं चाहिए। जब हम असल मुद्दों की पहचान करना सीख जायेंगे तभी हम कह सकेंगे कि हम सब भारतीय हैं।जिस देश के युवा , लेखक, पत्रकार, और विद्वान सत्ताधारी की पूजा करने लगे, समझ लो वहाँ का समाज मानसिक रूप से विक्षिप्त हो चुका है। बाक़ी तो सीधी बात, लोगों तक पहुँचना है तो अपना स्वार्थ छोड़ दिल से काम करना पड़ेगा। बिना इसके भी आप सत्ता तो हासिल कर लोगों लेकिन अपना ज़मीर खो दोगे।