“नेतृत्व” एक विस्तृत प्रत्यय है जो कई सदियों से समाजशास्त्र, मनोवि ज्ञान , राजनीति शास्त्र, लोकप्रशासन के अध्ययन का विषय रहा है. यह एक ऐसा शब्द है जो जेहन में आते ही राजनीतिज्ञ अथवा राजनीति का बोध कराता है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है | इसका दायरा असीमित है | समाज को को दिशा देना, भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करना, समानता की भावना पैदा करना, समाज के प्रति उतरदायी बनाना इत्यादि भी नेतृत्व करने वालों का ही कार्य है. “नैतिक नेतृत्व” से अभिप्राय उस नेतृत्व से है जो नैतिक मूल्यों पर आधारित हो और दूसरों को गरिमापूर्ण जीवन और अधिकारों के प्रति संघर्ष के लिए वचनबद्ध हो. जब हम “नैतिक नेतृत्व” की बात करते हैं तो हमारे सामने ऐसे नेता की छवि उत्पन्न होती हैं जो अपने चरित्र से, अपने कर्म से, अपने निर्णयों से और अपनी विस्तृत समझ से लोहा मनवा चुका होता है. भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में आज “नैतिक नेतृत्व” की ज्यादा आवश्यकता है क्योंकि हम किसी भी क्षेत्र में देख लें तो जो लोग समाज और देश का नेतृत्व की बात करते हैं उनके प्राय लोकतान्त्रिक मूल्यों का अभाव, धन लोलुपता, कर्महीनता और आदर्श जीवन के प्रति नकारात्मक भाव इत्यादि दुर्गुण देखने को मिलते हैं. भारत में जब भी हम नैतिक नेतृत्व की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय उस “आदर्श नेतृत्व” से है जो समाज के हर क्षेत्र में न्याय, समानता और भ्रातृत्व के गुणों से युक्त हो और उस सभ्यता/ शिष्टाचार के जीवन में प्रयोग से है जोकि लोकतान्त्रिक देश में न्याय, समानता की स्थापना में सहयोग दे सके. प्रस्तुत शोध पत्र में हमारा मुख्य उद्देश्य भारत की वर्तमान सामाजिक-धार्मिक- राजनैतिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में “नैतिक नेतृत्व” के विभिन्न पक्षों का अध्ययन करना है.
भारत में नैतिक नेतृत्व: वर्तमान परिदृश्य एवं भविष्य
(Ethical Leadership in India: Present Scenario and Future)
डॉ देशराज सिरसवाल
शोध-पत्र सार
“नेतृत्व” एक विस्तृत प्रत्यय है जो कई सदियों से समाजशास्त्र, मनो विज्ञान , राजनीति शास्त्र, लोकप्रशासन के अध्ययन का विषय रहा है. यह एक ऐसा शब्द है जो जेहन में आते ही राजनीतिज्ञ अथवा राजनीति का बोध कराता है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है | इसका दायरा असीमित है | समाज को को दिशा देना, भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करना, समानता की भावना पैदा करना, समाज के प्रति उतरदायी बनाना इत्यादि भी नेतृत्व करने वालों का ही कार्य है. “नैतिक नेतृत्व” से अभिप्राय उस नेतृत्व से है जो नैतिक मूल्यों पर आधारित हो और दूसरों को गरिमापूर्ण जीवन और अधिकारों के प्रति संघर्ष के लिए वचनबद्ध हो. जब हम “नैतिक नेतृत्व” की बात करते हैं तो हमारे सामने ऐसे नेता की छवि उत्पन्न होती हैं जो अपने चरित्र से, अपने कर्म से, अपने निर्णयों से और अपनी विस्तृत समझ से लोहा मनवा चुका होता है. भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में आज “नैतिक नेतृत्व” की ज्यादा आवश्यकता है क्योंकि हम किसी भी क्षेत्र में देख लें तो जो लोग समाज और देश का नेतृत्व की बात करते हैं उनके प्राय लोकतान्त्रिक मूल्यों का अभाव, धन लोलुपता, कर्महीनता और आदर्श जीवन के प्रति नकारात्मक भाव इत्यादि दुर्गुण देखने को मिलते हैं. भारत में जब भी हम नैतिक नेतृत्व की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय उस “आदर्श नेतृत्व” से है जो समाज के हर क्षेत्र में न्याय, समानता और भ्रातृत्व के गुणों से युक्त हो और उस सभ्यता/ शिष्टाचार के जीवन में प्रयोग से है जोकि लोकतान्त्रिक देश में न्याय, समानता की स्थापना में सहयोग दे सके. प्रस्तुत शोध पत्र में हमारा मुख्य उद्देश्य भारत की वर्तमान सामाजिक-धार्मिक- राजनैतिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में “नैतिक नेतृत्व” के विभिन्न पक्षों का अध्ययन करना है.
Note: To be presented at UGC Sponsored Two-Day National Seminar on "Contemporary Ethics: Theoretical, Practical and Methodological Disquiet" 6-7 February, 2017 at Department of Philosophy, Singhbhum College, Kolhan University, Jharkhand.