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Why I am not a Buddhist but an Ambedkarite?

4 मई 2020

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featured imageआजकल भारत में एक नया दौर चल पड़ा है, किन्तु बहुत पुराना नहीं कह सकते है। कुछ लोग भारत को बुद्धमय देखने का सपना सँजोए दलितों को एक विशेष राजनैतिक विचारधारा की तरफ मोड़ रहे हैं और जो लोग उस विचारधारा को नहीं मानते उन्हें निकृष्ट प्राणी की तरह व्यवहार करते है और अपने को "सच्चा अम्बेडकरवादी" स्थापित करते हैं। जब हम भारत में संवैधानिक मूल्यों को स्थापित करने की बात कर रहें है तब इस तरह की बातें मुझे थोड़ी अटपटी लगती हैं। आप "ड़ा अम्बेडकर" को किसी विशेष जाति या धर्म के साथ जोड़ कर नहीं देख सकते। उनके द्वारा किये गए संस्थागत प्रयासों के कारण आज भारत के दलित, औरतें और अन्य पिछडे वर्ग सम्मान और स्वतंत्रता की जिंदगी जीने में सक्षम हो पा रहे है। बेशक आज भी भारत में कुछ ऐसी संस्थाएं और "मानसिक रूप से अक्षम" लोग हैं जो इस नए भारत को समझ नहीं पा रहें और विमुल्यों के प्रसार में लगे हैं ऐसे में हम बिल्कुल अलगाव की नीति नहीं अपना सकते। बल्कि उन लोगों को रास्ता दिखाना चाहिए जो "लोकतांत्रिक भारत" के सार्वभौम मूल्यों को अभी नहीं देख पाते हैं। जो लोग सिर्फ "बौद्ध" होने को ही अम्बेडकरवादी होना मानते हैं, मेरे उनसे कुछ प्रश्न हैं: 1. क्या आप अपने आपको "minority" में शामिल कर चुके हो? 2. क्या आपने अनुसूचित जाति या जनजाति का फायदा लेना छोड़ दिया है? 3. क्या आप अपने से अलग लोगो को समानता भाई चारे के साथ व्यवहार करते हो? 4. क्या आपने पाखण्डवाद और ब्राह्मणवाद को छोड़ दिया है? 5. क्या आप दूसरों के हक का खाना छोड़ चुके हो? इनमे से यदि एक भी चीज़ नहीं है तो आप कभी अम्बेडकरवादी नहीं हो सकते। हमारे दलित समाज में बहुत से ऐसे लोग हैं या यूं कहूँ की कुछ विशेष जातियां है जो अपने से तथाकथित निम्न जातियों के हक को राजनीतिक और सामाजिक रुतबे के कारण उन तक नहीं पहुंचने दे रही। साथ ही अपने को पक्का अम्बेडकरवादी और बौद्ध बताती हैं। डॉ भीमराव अंबेडकर मेरे लिए मेरा आस्तित्व है और महात्मा बुद्ध जीवन जीने का एक सकारात्मक दृष्टिकोण है। आपकी तरह मैं इन्हें राजनीतिक और अपने ही समाज के साथ शोषण का जरिया नहीं बना सकता। मेरे लिए सर्वप्रथम संवैधानिक मूल्य हैं, फिर मेरा सामाजिक जीवन और उसके बाद मेरा आध्यत्मिक दृष्टिकोण। जय हिंद, जय भीम, जय संविधान

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भारत में नैतिक नेतृत्व: वर्तमान परिदृश्य एवं भविष्य

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सृजनात्मक लेखन का उद्देश्य

27 दिसम्बर 2016
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सृजनात्मक लेखन का उद्देश्य मानवीय मूल्यों का प्रसार और जीवन की सार्थकता की पहचान करवाना होता है । वही लेखन सार्थक है जो समाज को दिशा दे । न्याय, समानता, भाईचारे और अन्य मानवीय मूल्यों की जो बात करे। मूल्य, व्यक्ति की सामाजिक विरासत का एक अंग होते है इसलिए मूल्यों की व्यवस्था मानव आस्तित्व के विभिन्

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छद्म देशभक्ति

27 दिसम्बर 2016
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परसों दंगल फिल्म देखने गया । फिल्म के शुरू में ही राष्ट्रगान शुरू हुआ तो लोग मजबूरी खड़े होते दिखे । मुझे समझ नहीं आता की क्या सोच कर यह सब किया गया है । इन सिनेमा में कहीं भी पानी का प्रबन्ध नहीं होता । बोतल भी डबल रेट पर दी जाती है । क्या पानी की जरूरत को पूरा करना देश की चिंता नहीं है या सिर्फ

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नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

31 दिसम्बर 2016
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प्रियमित्रों आप सभी को आने वाले वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएंउम्मीद है हम अपने आस्तित्व के साथ साथ अपने जीवन से जुड़े हर व्यक्ति के अधिकारों का ख्याल रखेंगे और उनका सम्मान बनाएं रखेंगें .मानव आस्तित्व की गरिमा ही जीवन का सही आदर्श है और यही सबसे बड़ा कर्म भी है .आप सभी अपने जीवन की नई उंचाईयों पर पहुंचे

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भारत की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के जन्मदिवस पर हार्दिक बधाई

3 जनवरी 2017
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वे स्कूल जाती थीं, तो लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 160 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा देश में एक अकेला बालिका विद्यालय।सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया

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विश्वपुस्तक मेला

14 जनवरी 2017
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नई दिल्ली के पुस्तक मेले में आज जाना हो गया काफी समय बिताया

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मेरा भारत और राजनैतिक लोकतंत्र

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आजकल बाबा साहब डॉ आंबेडकर जी की "जाति का सम्पूर्ण विनाश" पुस्तक पढ़ हूँ। उनका साफतौर पर मानना है कि राजनैतिक सुधार से पहले सामाजिक सुधार बहुत आवश्यक है। उनके शब्दों में "राजनीतिक क्रांतियाँ हमेशा सामाजिक और धार्मिक क्रांतियों के बाद हुई है।" साथ ही " मस्तिष्क और मन की मुक्ति जनता के राजनैतिक विस्तार

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डॉ. भीम राव अंबेडकर जी को परिनिर्वाण दिवस पर कोटि कोटि नमन

6 दिसम्बर 2019
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"भारत का संविधान" इस समय भारतवासियों के लिए सबसे पवित्र माना जाना चाहिए। धार्मिक ग्रन्थों और संस्थाओं के विपरित ये मानव को मानव से जोड़ने और उसकी गरिमा को बनाये रखने का स्त्रोत है। संवैधानिक मूल्य ही हैं जो आज हम वास्तव में अपने जीवन में प्रयोग कर सकते हैं। ज्यादा नहीं तो हमें संविधान के Part-III: Fu

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शिक्षा और वैचारिक अपंगता

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आजकल सुनने में आता है कि किसी लेखक को मार दिया गया या किसी व्याख्यान में चिंतक का विरोध हुआ। अगर गौर से देखें तो वर्तमान भारत मेँ चिंतन का विरोध हो रहा है वह भी बड़े पैमाने पर। तर्क और बौद्धिकता हमारे लिए जरूरी नहीं रह गयी है , संवाद की जगह श्रद्धा ने ले ली है। सामान्यतः सेमिनार के प्रतिभागी तर्क स

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भारतीय संविधान में हर भारतीय नागरिक के कर्तव्यों का भी जिक्र है जिसकी उम्मीद हर भारतीय से अपेक्षित है। संविधान में नागरिकों को न्याय, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक कल्याण की राज्य से भी अपेक्षा की गई है ताकि सभी को बराबरी का भी हम मिल सके। वर्तमान में हम देख रहे हैं कि हम कितना आने अधिकारों के प्रति

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नागरिकता संशोधन विधेयक (C.A.B. ) 2019

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भारत में आजकल जो भी हो रहा है उससे देखकर तो यही लग रहा है कि हम मुस्लिम, पाकिस्तान और हिन्दुत्व के मुद्दे को लेकर देश की एकता और अखंडता को किसी भी हद तक दांव पर लगा सकते हैं। नागरिकता संशोधन विधेयक (C.A.B. ) 2019 के द्वारा हम बाहर से आने वालों का तो स्वागत करेंगे लेकिन अब तक जो यहाँ रह रहे हैं उनके

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रश्मि के नाम कुछ खत... (कविता-संग्रह)

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सभी साथियों को डॉ भीम राव अम्बेडकर जी के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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दोस्तो, बाबा साहेब आधुनिक भारत के विद्वानों में सबसे महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उन्होंने हमारे समाज के महत्वपूर्ण पहलुओं पर अपने विचार प्रकट किये, जिन विषयों पर अन्य विद्वानों की कोई स्पष्ट दृष्टि नहीं थी। उनके विचार समय के साथ ज्यादा प्रासंगिक होते जा रहे हैं। बाबा साहेब को केवल संविधान निर्माता और दल

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विश्व पुस्तक दिवस की हार्दिक बधाई

23 अप्रैल 2020
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मेरे जीवन में किताबों का उतना ही महत्व है जितना की मेरे दोस्तों और परिवार का।मेरे घर का सबसे बेहतर कोना मेरी किताबों वाला ही है।बच्चों को भी आश्चर्य होता है इन्हें देखकर। किताबें जीवन का सही अर्थ बताती हैं और हमें सही राह दिखाती हैं।सभी दोस्तों को विश्व पुस्तक दिवस की हार्दिक बधाई।

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Why I am not a Buddhist but an Ambedkarite?

4 मई 2020
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आजकल भारत में एक नया दौर चल पड़ा है, किन्तु बहुत पुराना नहीं कह सकते है। कुछ लोग भारत को बुद्धमय देखने का सपना सँजोए दलितों को एक विशेष राजनैतिक विचारधारा की तरफ मोड़ रहे हैं और जो लोग उस विचारधारा को नहीं मानते उन्हें निकृष्ट प्राणी की तरह व्यवहार करते है और अपने को "सच्चा अम्बेडकरवादी" स्थापित करते

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डॉ भीमराव अंबेडकर और राजनीतिक लोकतंत्र

18 मई 2020
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डॉ भीमराव अंबेडकर ने 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में दिए अपने भाषण में अंबेडकर सामाजिक-आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति में संविधान प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग जरूरी बताते हुए कहते हैं, ‘इसका मतलब है कि हमें खूनी क्रांतियों का तरीका छोड़ना होगा, अवज्ञा का रास्ता छोड़ना होगा, असहयोग और सत्याग्रह का रास्त

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मौलिक कर्तव्य और संविधान के आदर्श

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दोस्तों, "मौलिक कर्तव्य" भारतीय संविधान के भाग IV क में अनुच्छेद 51 क में सम्मिलित किया गया है। वर्ष 2002वके 86वें संशोधन के द्वारा मौलिक कर्तव्यों की संख्या 10 से बढ़ा कर 11 कर दी गयी है। देखा जाए तो अधिकारों से पहले कर्तव्य की समझ जरूरी है। हमें सोचना चाहिए कि क्या हम आने मौलिक कर्तव्यों के बारे अच

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मार्क्स और भारत

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मार्क्स का चिंतन भारतीय विद्वानों के लिए एक अनबुझ पहेली है। भारतीय समाज और राज्य पर हम उस चिंतन को सही ढंग से प्रयोग करने की बजाये हम इस बात पर जोर देते हैं कि दूसरे देशों में मार्क्सवाद की क्या गति रही। जबकि सबसे बड़ी बात तो ईमानदारी से चिंतन की है क्योंकि जब भी हमें किसी व्यवहारिक सिद्धान्त की तला

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वर्ष 2020 का अंतिम दिन। यह साल छोटी छोटी खुशियों को सहेजने का साल रहा। कोरोना समय ने बता दिया कि जिन चीजों को हम सहज ही लेते हैं वह बहुत मूल्यवान होती है। शायद यह वर्ष "परिवार वर्ष" बनकर हम सभी के सामने आया। इस वर्ष में बहुत समय मिला पढ़ने को। खुद के लिए कुछ करने को। वरना हम केवल मशीनी बनकर रह गए हैं

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