एक ऐसी ट्रेन जो उसमे बैठने वालों को अनंत काल का दर्शन कराती है।इसमें बैठने वाले अधिकतर लोग उस बिमारी से संघर्ष करते नजर आते है जिसके लिए वे खुद जिम्मेदार नही है।ये कोई साधारण बिमारी नही और न ही ये कोई साधारण ट्रेन है। इस आसाधारण बिमारी का नाम है 'कैंसर' और इस ट्रेन का नाम है 'कैंसर ट्रेन'।
पंजाब के बठिंडा से चलकर राजस्थान के बीकानेर जाने वाली ट्रेन (नंबर 54703) का नाम अबोहर-जोधपुर एक्सप्रेस है, लेकिन इसे "कैंसर एक्सप्रेस"के नाम से भी जाना जाता है। कैंसर एक्सप्रेस एक ट्रेन ही नहीं बल्कि उन सैकड़ों लोगों की जीवन रेखा भी है, जो हर 20 दिनों में बठिंडा से बीकानेर के "आचार्य तुलसी कैंसर संस्थान" का सफर तय करती है। हर रोज पूरे उत्तर भारत से सैकड़ो लोग यहां अपना इलाज कराने आते है, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इसमें सबसे ज्यादा मरीज भारत की कृषि भूमि पंजाब से आते हैं।
उत्तर भारत के लोगों में फैले इस भयंकर रोग का मुख्य कारण भूमिगत जल है। असल में 'हरित क्रांति' के समय सर्वप्रथम इन्ही क्षेत्रों में हाइब्रिड बीजों , रासायनिक उर्वरकों और रासायनिक खादों का अंधाधुंध प्रयोग हुआ और इनको बनाने से निकलने वाला रासायनिक कचरा बड़ी मात्रा में जमीन के अंदर रिवर्स बोरिंग के द्वारा डाल दिया जाता था। जिसकी वजह से ये रासायनिक कचरा धीरे धीरे भूमिगत जल से होता हुआ उन क्षेत्रों के तालाबों ,नदियों, मिट्टी के साथ साथ फसलों तक भी पहुँच गया और इसने इन्हें जानलेवा बना दिया। इनके प्रयोग से इन क्षेत्रों के लोगों में कैंसर नामक भयंकर रोग ने कब अपना ठिकाना बना लिया इन्हें पता ही नही चला। आज तो हाल ये है कि इन क्षेत्रों के औसतन प्रत्येक घर में एक कैसंर रोगी है और कई जगहों के भूमिगत जल के प्रयोग पर भी रोक लगा दी गई है।
आज यही हाल लगभग पूरे भारत का है देश भर में तमाम तरह के रासायनिक पदार्थो का प्रयोग हो रहा है और इनको बनाने में निकलने वाले कचरे को भूमि में डाल दिया जाता है। एक तो इन रासायनिक पदार्थो के प्रयोग से तात्कालिक खतरा होता है, इसके अतिरिक्त इसके कचरे से दीर्घकालिक खतरा भी होता है ,ये पदार्थ हमारे पर्यावरण के साथ साथ हमारे शरीर को भी अंदर से खोखला करते जा रहे है।
इसमें पहली गलती तो सरकार की है क्योंकि इसने रासायनिक कचरे के निस्तारण पर ध्यान नही दिया और न ही इनकी फैक्ट्रियों पे लगाम लगाई ।लेकिन दूसरी और बड़ी गलती जनता की है क्योंकि हम ही वो महान आत्मा है जो रासायनिक पदार्थो को बढ़ावा देते जा रहे है और प्रकृति से दूर होते जा रहे है। आज हमारी मानसिकता ऐसी हो चुकी है कि अगर हम भौतिकवादी सोच के साथ जी रहे है तो हम सबसे अच्छे है। हमने खुद को इनका आदी बना लिया है , आज हम इन चीजों से परे सोच ही नही पाते । कुल मिलाकर रासायनिक और भौतिकवादी चीजें हमारी सोच और हमारे जीवन पे हावी हो चुकी है, जिन्होंने हमे अपना गुलाम बना लिया है जो की आने वाले समय में और घातक सिद्ध हो सकता है।
आज भारत में केवल एक 'कैंसर ट्रेन' चल रही है लेकिन अगर यही हाल रहा तो पूरे भारत में सैकड़ों 'कैंसर ट्रेन' चलेंगी और न चाहते हुए भी हमे और हमारी आने वाली पीढ़ी को इस ट्रेन पे सवार होना पड़ सकता है।
अगर हम समय रहते सचेत नही हुए तो आने वाले समय में हाल ये हो जाएगा कि हमारे सामने फल, सब्जी , अनाज ,पानी आदि चीजे रखी होंगी लेकिन हम उनका उपयोग नही कर पाएंगे और यदि गलती से उपयोग कर लेंगे तो सीधा अस्पताल! ये एक प्रकार का ऐसा नशा है जो हम सभी को अपनी चपेट में ले चुका है कोई भी इससे अछूता नही है।
अब जरूरत है कि हम खुद को इस अनचाही गुलामी और नशे से मुक्त करें।अपनी सोच को रासायनिकवाद और भौतिकवाद से हटाकर प्रकृतिवाद की तरफ ले जाएँ। जितनी जरूरत हो केवल उतना ही इन वस्तुओं का उपयोग करें। उपयोग करने से पहले ये जरूर सोचे कि "हम जिस वस्तु का उपयोग कर रहे है वो कैसे बनी है इसको बनाने में निकलने वाले कचरे से और इस वस्तु से हमारे शरीर और पर्यावरण को कितना नुकसान है?"ये पदार्थ हमे केवल क्षणिक सुख देते है अतः इससे छुटकारा पाने के लिए हम सभी को पुरजोर कोशिश करनी चाहिए । हमे प्रकृति से अपना मधुर सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए, अधिक से अधिक आवश्यकताओ की पूर्ति प्राकृतिक माध्यम से करनी चाहिए साथ ही ये भी ध्यान देना चाहिए की पर्यावरण को किसी प्रकार का कोई नुकसान न हो।
© गौरव मौर्या