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बच्ची का संघर्ष

9 अप्रैल 2017

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#बच्ची_का_संघर्ष आज अनामिका क्लास में आधे घण्टे की देरी से आई, तो क्लास के अन्य बच्चे बोलने लगे की सर जी ! ये रोज देर से आती है इसे क्लास से बाहर निकाल दीजिये। हालांकि प्रक्षिक्षु अध्यापक के रूप में मेरा क्लास(कक्षा-4) का पहला दिन था। मैंने पहले दिन किसी को दंड न देना ही उचित समझा। तो मैंने उसे क्लास में आने की अनुमति दे दी। मैंने अपना परिचय छात्रों को पहले ही दे दिया था अब बारी थी उनके परिचय देने की। सभी ने अपना परिचय देना प्रारम्भ किया वैसे तो ये बच्चे प्राथमिक विद्यालय के बच्चे थे लेकिन 6 छात्रों को छोड़ कर बाकि 31 ने टूटी फूटी इंग्लिश में अपना परिचय दिया। अब नम्बर था अनामिका का ,लेट आने की वजह से सबसे पीछे बैठी थी, मैं उसके पास गया तो वह खड़ी हुई लेकिन कुछ बोली नही एकदम शांत केवल नीचे देख रही थी। उसका परिचय बगल वाली लड़की ने दे दिया। क्लास के सभी बच्चों ने अपने बारे कुछ न कुछ बताया लेकिन केवल अनामिका ही ऐसी थी जिसने कुछ नही बोला। मैंने उसे बैठने को कहा और पढाने लगा। इसी तरह 2 - 3 दिन बीत गए। पूरे क्लास में मुझे अनामिका के व्यक्तित्व ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया। ये 9-10 वर्ष की एक अंतर्मुखी छात्रा थी।मैंने ये पता करने की कोशिश शुरू की कि आखिर ये सबसे अलग क्यों है? क्लास के ही अन्य छात्रों ने उसके बारे में थोड़ा बहुत बताया कि सर जी ये घर का सारा काम करती है और खेलती है । और अधिक जानकारी के लिए मैंने क्लास टीचर से उसके बारे में पूछा। सामान्यतः क्लास टीचर को अपने क्लास के सभी विद्यार्थियों के बारे में लगभग जानकारी होती है। लेकिन अनामिका के बारे में स्कूल के लगभग सभी टीचरों को पता था । उन्होंने मुझे बताया कि ये घर की सबसे बड़ी लड़की(उम्र-9 -10 वर्ष) है इसके एक छोटी बहन और एक छोटा भाई भी है, इसकी माँ बीमार रहती है और पिता जी खेती करते है , सुबह सब्जी बेचने जाते है और 10 बजे तक घर आ जाते है उसके बाद आराम फरमाते है। सुबह घर का सारा काम जैसे पूरे ओसारे,आंगन और घर में झाड़ू लगाना , खाना बनाना , बर्तन साफ करना, भैसों को चारा डालना, छोटे भाई बहनों को नहलाना खिलाना , माँ की सेवा करना और खुद का सारा काम करने के बाद स्कूल आती है। स्कूल से वापस जाने के बाद शाम और रात का भी काम ,इसके अलावा जरूरत पड़ी तो खेत में भी काम करती है।कुल मिला के पढाई का समय नही मिलता इसे। इतना सुनकर मैं एकदम से चौक गया कि एक छोटी सी बच्ची इतना काम करने के बाद भी स्कुल आती है! लेकिन वो कहते है न की 'परिस्थितियां इंसान को अपने अनुसार ढाल लेती है ", शायद ऐसा ही अनामिका के साथ भी हुआ था। हालांकि उसके पापा चाहते तो घर के काम में उसकी कुछ मदद कर सकते थे लेकिन शायद वो पुरुषवादी मानसिकता से ग्रसित थे इसलिए घर के किसी काम में हाथ नही बटाते थे। अब मेरी इच्छा इनके पिता से मिलने और उन्हें समझाने की हुई। हमारी प्रिंसिपल ने उन्हें कई बार बुलावा भेजा लेकिन वे हर बार काम का बहाना बनाकर नही आते थे। इसी तरह करीब 21-22 दिन बीत गए मैं क्लास के सभी छात्रों को काम न पूरा करने पर दंड देता था हालांकि अनामिका कभी काम पूरा नही करती और न ही कुछ याद करती थी, फिर भी मैं उसे दंड नही देता था ,केवल समझा के बैठा देता था और प्रतिदिन उसे उसके पापा को लाने के लिए बोलता था। लेकिन 23 वे दिन मैंने अनामिका का बैग क्लास में ही जमा करवा लिया और बोला की 'पापा की लेकर आओगी तभी बैग वापस मिलेगा'। वो चली गई अपने पिता की बुलाने , फिर मै पढ़ने में व्यस्त हो गया। छुट्टी होने में आधा घंटा बाकि था मैं और बाकि अध्यापक छात्रों की प्रार्थना की लाइन लगा ही रहे थे की अनामिका और उसके पापा आ गए। अनामिका को लाइन में भेजकर हमने उन्हें समझाने की तमाम कोशिश की , कि आप भी अनामिका की मदद किया कीजिये घर के कामो में ताकि उसे थोड़ा समय मिले पढ़ने के लिए , और भी कई बातें उन्हें बताई।पढाई का महत्व समझाया, वो चुप चाप सबकी बाते सुन रहे थे जैसे हमारी बातें खत्म हुई उन्होंने कहा कि 'अगर घर का काम भी हमे ही करना पड़े तो इसके रहने का क्या फयदा'।इतना सुनते ही सभी गुस्से से लाल हो गए लेकिन हमने अपने गुस्से को काबू करके उन्हें दोबारा समझाया सभी अध्यापको ने अपने अपने तरीके से समझाने की कोशिश की हालांकि अंत में उन्होंने अनामिका की मदद करने की हामी भरी और चले गए।इधर छात्रों की प्रार्थना भी खत्म हो चुकी थी। सभी अपने घर चले गए। प्रतिदिन की तरह क्लास चल रही थी । आज मेरा वहां 26 वाँ दिन था । आज अनामिका पहली बार समय से क्लास में आई । क्लास शुरू होने के थोड़ी ही देर बाद खुद मेरे पास आकर बोली 'सर जी हमसे ये सुन लीजिये'। ये सुनकर मैं बड़ा आश्चर्यचकित हुआ , उसने सारा पाठ एकदम सही सही सुना दिया। अगले दिन भी यही हुआ आई और खुद से सुनने को बोली। मुझे लगा शायद इसके पिता जी को बात समझ में आ गई और इन्होंने इसकी मदद करनी शुरू कर दी। मैंने उससे पूछा" क्या पापा भी तुम्हारे साथ काम में मदद करते है " उसने बोला ;नही सर! मैंने पूछा फिर कैसे समय मिलता है, पढ़ने का ! तो वो बोली सर आज कल हम सुबह 4 बजे ही उठ जाते है और दो घंटे पढाई कर के काम करना शुरू करते है। खेलने-कूदने की उम्र वाली इस बच्ची के मुंह से ये बाते सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। इतनी सी उम्र में घर की सारी जिम्दारियों को निभाते हुए उसने पढाई के प्रति भी खुद को प्रेरित किया। अध्यापको द्वारा उसके पिता को समझाये जाने पर भी समझ न आने पर उसे लगा होगा की पापा तो बदल नही सकते इसलिए मुझे ही बदलना चाहिए ।शायद इसी घटना ने उसको और मेहनत करने के लिए प्रेरित किया। दिन प्रतिदिन उसका प्रदर्शन अच्छा होता रहा। उसके इस बदलाव से सभी खुश थे और शायद वो भी पहले से थोड़ी खुश रहने लगी थी। जिस उम्र में बच्चे खेलते कूदते है , पढाई-लिखाई करते है और सभी जिम्मेदारियों से मुक्त रहते है उस उम्र में अनामिका एक परिपक्व, समझदार और जिम्मेदार नारी का कर्तव्य पूरी निष्ठा के साथ निभा रही है । उसने परिवार ,पढ़ाई और अपनी उम्र के साथ और अधिक सामंजस्य स्थापित कर लिया है।अनामिका ने अपनी योग्यता, कर्तव्यनिष्ठा एवं बौद्धिक क्षमता के आधार पर इस बार परिस्थिति को अपने अनुसार बदल लिया है। अनामिका का जीवन हम सभी के लिए एक प्रेरक का काम करेगा और लोगो को ये बताएगा कि अगर आप चाह जायें तो किसी भी उम्र में परिस्थितियों को अपने अनुसार ढाल सकते है और अपनी परिस्थितियों पर दोषारोपण किये बिना अपने जीवन को ख़ुशी के साथ जी सकते है। ©गौरव मौर्या

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