"भारतीय नारी" जिसे सम्पूर्ण विश्व प्रेम, स्नेह, त्याग ,तपस्या, वात्सल्य,संघर्ष, समझदारी, बुद्धिमत्ता और नेतृत्व कौशल की देवी के रूप में देखता है। भारतीय संस्कृति में नारी को देवी समान माना गया है विभिन्न अवसरों पर उनकी पूजा होती है। वेदों में ये भी कहा गया है कि "यत्र तु नार्यः पूज्यन्ते तत्र देवताः रमन्ते, यत्र तु एताः न पूज्यन्ते तत्र सर्वाः क्रियाः अफलाः (भवन्ति)" अर्थात" जहां नारियो का आदर-सम्मान होता है, उनकी आवश्यकताओं-अपेक्षाओं की पूर्ति होती है, उस स्थान, समाज, तथा परिवार पर देवतागण प्रसन्न रहते हैं ।
जहां ऐसा नहीं होता और उनके प्रति तिरस्कारमय व्यवहार किया जाता है, वहां देवकृपा नहीं रहती है और वहां संपन्न किये गये कार्य सफल नहीं होते हैं"। वैदिक काल से लेकर अब तक महिलाओं ने अपनी योग्यता और बुद्धिमत्ता को साबित किया है और बहुत हद तक वें पुरुषों से आगे निकलती दिखाई दे रही है। लेकिन मेरे हृदय में एक प्रश्न बचपन से है कि क्या महिलाओं की इतनी खूबियों और योग्यताओं पे कहि न कहि पुरुषवादी सोच हाबी है क्योकिं आज भी ,जब महिलाएं पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में किसी भी प्रकार से कम नही है उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है ; एक प्रश्न जो हम सबके सामने आता है वो ये की "आप के पिता जी क्या करते है" ? कभी कोई ये नही पूछता की "आप की माता जी क्या करती है"?
वैसे तो आज के युग में क्या पुरुष क्या नारी सभी हर प्रकार के क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित करते नजर आ रहे है। शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा जहां महिलाओं ने अपना परचम न लहराया हो, फ़िर भी स्कुल हो , कालेज हो, ऑफिस हो या कोई भी ऐसा स्थान जहाँ हम नए लोगो से मिलते है सभी का प्रश्न यही होता है कि "आप के पिताजी क्या करते है?" शायद लोगो की मानसिकता आज भी महिलाओं को घरेलू मानने की है । वैसे घर को सुचारू रूप से चलाना ही सबसे कठिन काम है जिसे महिलाएं अपना कर्तव्य मानकर बखूबी निभातीं है और जो महिलाएं नौकरी वाली है वो भी घर के काम को निपटाने के बाद ही अपने काम पर जाती है। इस प्रकार से देखा जाय तो महिलाएं पुरुषों से ज्यादा काम करती है और उनके सफलता का अनुपात भी पुरुषों से ज्यादा है।
फिर भी हमारे समाज में सबसे एक ही प्रश्न सबसे पूछा जाता है कि " आप के पिता जी क्या करते है?" इसका मुख्य कारण समाज की पुरुषवादी मानसिकता है, समाज ने पिताजी/पुरुष को ही मुलबिन्दु मान लिया है उन्ही से हमारी पहचान और उन्ही के नाम में हमारा नाम। किसी स्कुल, कालेज में जाओ तो पहले पिता का नाम, कोई फार्म भरो तो पहले पिता का नाम(कुछ एक कॉलेज, फार्म को छोड़कर) उसके बाद माता का नाम आता है। जब ये माताएं/ महिलाएं लगभग सभी क्षेत्रों में पुरुषों से आगे है तो इनका नाम पुरुषों के पीछे क्यों ??
इसके लिए जरूरत है कि हम अपनी पुरुषवादी मानसिकता को बदलें और अपनी पहचान को माता के नाम से बनाएं और आगे बढ़ाएं। इन चीजों के लिए हमे शुरुआत अपने घर से ही करनी पड़ेगी , हम जब किसी से मिले तो उससे सबसे पहला प्रश्न ये पूछेंगे की "आप की माता जी क्या करती है?" भले ही किसी की माँ घरेलू महिला हो तब भी उसे प्रश्न का उत्तर देने में संकोच नही करना चाहिए क्योंकि घर को संभालना नौकरी करने जे ज्यादा कठिन और जिम्मेदारी वाला काम है। इसके अतिरिक्त सबसे महत्वपूर्ण काम ये कि अब अगर कोई ये पूछे की "आप के पिताजी क्या करते है ?'" तो सबसे पहले उसे टोकिये और ये बताइये की आप की माता जी क्या करती है।