इज़राइलीयों से दुनिया इसलिए खौफ खाती है,क्योंकि वो 85 लाख सिर्फ सच्चे एवं ईमानदार देशभक्त है और यही हाल जापान एवं जर्मनी जैसे राष्ट्रों का भी है। ये ऐसे मुल्क है जो खुद यहां के देशभक्त नागरिकों की वजह से आज विश्व में एक अलग विकसित राष्ट्र वाली छवि रखते है।
वही अगर बात भारत के नागरिकों की करे, तो कहने को हम 1 अरब 30 करोड़ है लेकिन यहां के लोगों ने देशभक्ति शब्द केवल पढ़ने और सुनने तक ही सिमित रखा है बाकी वास्तविकता के नाम पर केवल देश को धोखा ही देते आएं है।
हमारी देशभक्ति केवल क्रिकेट मैच में दिखाई देती है वो भी खोखली, बस उतनी देर जितनी देर मैच चलता है।
इसके अलावा थोड़ी बहुत देशभक्ति 15 अगस्त और 26 जनवरी को देखने को मिल जाती है ,बकायदे बाइक , साईकिल , कार और हाथ में झंडे, चेहरे पे तिरंगा बनवाकर देशभक्ति से ओतप्रोत नारे लगाते हुए , उसके बाद न तो झंडे का पता न तो नारों का।
अब बात आती है देश की और यहां के सम्पत्ति की रक्षा करने की ! रक्षा के नाम पर तो हमने न जाने कौन कौन से कारनामे किये है! रेलवे को नुकसान पहुचनां हो या उसके सामन को घर ले जाना हो , हड़ताल में रोडवेज की बसें जलानी हो, कालेजो में मांग के नाम पे तोड़ फोड़ करनी हो, धरनों के नाम पे दूध, फल ,सब्जियां बर्बाद करनी हो, सड़क पे थूकना हो , खुले में शौच करना हो , कूड़े को इधर उधर फेकना हो,बिजली चोरी करनी हो राह चलते छेड़खानी करनी हो, विदेशियों को लूटना हो , अतिक्रमण करना हो , भ्र्ष्टाचार करना हो ,अस्पताल और सरकारी स्थानों के कोनो में थूक थूक के पेंटिंग करनी हो, टैक्स चोरी करनी हो,पड़ोसन की बुराई,दहेज की मांग या दहेज के नाम पे अत्त्याचार करना हो ! इन महान कामों की वजह से ही हम खुद को देशभक्त कहते है और हमारे इन्ही देशभक्ति वाले कार्यों को करने की वजह से हम चाहते है कि हम एक विकसित राष्ट्र बन जाएं और हमे एकदम साफ सुथरी व्यवस्था मिल जाय ! लेकिन साफ सुथरी व्यवस्था तो तब मिलती न जब हम इसे साफ सुथरा रखते।
ऐसे लोग जो अन्य विकसित देशों की व्यवस्था से भारत की तुलना करते है , मैं उनसे बस यही कहना चाहूंगा कि वहां की व्यवस्था से तुलना करने से पहले वहाँ के नागरिकों से खुद की तुलना करें , उनके और अपने देशभक्ति के मायने की तुलना करें एवं देश के प्रति कर्तव्य निर्वाह की तुलना करें।
हमे केवल अपने अधिकारों से मतलब है!' हमारा देश के प्रति क्या कर्तव्य है' इसे तो हम कभी गलती से भी नही सोचते।अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ते लड़ते हम सुप्रीम कोर्ट तक चले जाते है लेकिन जब बात देश के प्रति कर्तव्य निभाने की आती है तो हम घर से बाहर भी नही निकलना चाहते।
हो सकता है इन बातों से कुछ सो-कॉल्ड देशभक्तों को ऐतराज हो लेकिन यही हमारे देश के नागरिकों की वास्तविकता है।
हम तभी पूर्ण रूप से तरक्की कर सकते जब हम अपने अधिकारों से ज्यादा देश के प्रति अपने कर्तव्यों को तवज्जो दें। किसी राष्ट्र के विकास में सर्वाधिक योगदान वहां के नागरिकों का होता है!
जैसा नागरिक वैसा राष्ट्र।
______________
©गौरव मौर्या