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उनकी देशभक्ति Vs हमारी देशभक्ति

6 जुलाई 2017

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इज़राइलीयों से दुनिया इसलिए खौफ खाती है,क्योंकि वो 85 लाख सिर्फ सच्चे एवं ईमानदार देशभक्त है और यही हाल जापान एवं जर्मनी जैसे राष्ट्रों का भी है। ये ऐसे मुल्क है जो खुद यहां के देशभक्त नागरिकों की वजह से आज विश्व में एक अलग विकसित राष्ट्र वाली छवि रखते है। वही अगर बात भारत के नागरिकों की करे, तो कहने को हम 1 अरब 30 करोड़ है लेकिन यहां के लोगों ने देशभक्ति शब्द केवल पढ़ने और सुनने तक ही सिमित रखा है बाकी वास्तविकता के नाम पर केवल देश को धोखा ही देते आएं है। हमारी देशभक्ति केवल क्रिकेट मैच में दिखाई देती है वो भी खोखली, बस उतनी देर जितनी देर मैच चलता है। इसके अलावा थोड़ी बहुत देशभक्ति 15 अगस्त और 26 जनवरी को देखने को मिल जाती है ,बकायदे बाइक , साईकिल , कार और हाथ में झंडे, चेहरे पे तिरंगा बनवाकर देशभक्ति से ओतप्रोत नारे लगाते हुए , उसके बाद न तो झंडे का पता न तो नारों का। अब बात आती है देश की और यहां के सम्पत्ति की रक्षा करने की ! रक्षा के नाम पर तो हमने न जाने कौन कौन से कारनामे किये है! रेलवे को नुकसान पहुचनां हो या उसके सामन को घर ले जाना हो , हड़ताल में रोडवेज की बसें जलानी हो, कालेजो में मांग के नाम पे तोड़ फोड़ करनी हो, धरनों के नाम पे दूध, फल ,सब्जियां बर्बाद करनी हो, सड़क पे थूकना हो , खुले में शौच करना हो , कूड़े को इधर उधर फेकना हो,बिजली चोरी करनी हो राह चलते छेड़खानी करनी हो, विदेशियों को लूटना हो , अतिक्रमण करना हो , भ्र्ष्टाचार करना हो ,अस्पताल और सरकारी स्थानों के कोनो में थूक थूक के पेंटिंग करनी हो, टैक्स चोरी करनी हो,पड़ोसन की बुराई,दहेज की मांग या दहेज के नाम पे अत्त्याचार करना हो ! इन महान कामों की वजह से ही हम खुद को देशभक्त कहते है और हमारे इन्ही देशभक्ति वाले कार्यों को करने की वजह से हम चाहते है कि हम एक विकसित राष्ट्र बन जाएं और हमे एकदम साफ सुथरी व्यवस्था मिल जाय ! लेकिन साफ सुथरी व्यवस्था तो तब मिलती न जब हम इसे साफ सुथरा रखते। ऐसे लोग जो अन्य विकसित देशों की व्यवस्था से भारत की तुलना करते है , मैं उनसे बस यही कहना चाहूंगा कि वहां की व्यवस्था से तुलना करने से पहले वहाँ के नागरिकों से खुद की तुलना करें , उनके और अपने देशभक्ति के मायने की तुलना करें एवं देश के प्रति कर्तव्य निर्वाह की तुलना करें। हमे केवल अपने अधिकारों से मतलब है!' हमारा देश के प्रति क्या कर्तव्य है' इसे तो हम कभी गलती से भी नही सोचते।अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ते लड़ते हम सुप्रीम कोर्ट तक चले जाते है लेकिन जब बात देश के प्रति कर्तव्य निभाने की आती है तो हम घर से बाहर भी नही निकलना चाहते। हो सकता है इन बातों से कुछ सो-कॉल्ड देशभक्तों को ऐतराज हो लेकिन यही हमारे देश के नागरिकों की वास्तविकता है। हम तभी पूर्ण रूप से तरक्की कर सकते जब हम अपने अधिकारों से ज्यादा देश के प्रति अपने कर्तव्यों को तवज्जो दें। किसी राष्ट्र के विकास में सर्वाधिक योगदान वहां के नागरिकों का होता है! जैसा नागरिक वैसा राष्ट्र। ______________ ©गौरव मौर्या

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26 मार्च 2017
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27 मार्च 2017
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9 अप्रैल 2017
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बढ़ती बुद्धि : एक समस्या

22 अप्रैल 2017
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26 अप्रैल 2017
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एक प्रश्न: आप की माता जी क्या करती है?

3 मई 2017
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"भारतीय नारी" जिसे सम्पूर्ण विश्व प्रेम, स्नेह, त्याग ,तपस्या, वात्सल्य,संघर्ष, समझदारी, बुद्धिमत्ता और नेतृत्व कौशल की देवी के रूप में देखता है। भारतीय संस्कृति में नारी को देवी समान माना गया है विभिन्न अवसरों पर उनकी पूजा होती है। वेदों में ये भी कहा गया है कि "यत्र

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कैंसर_ट्रेन : सैकड़ों मनुष्यों की जीवन रेखा

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एक ऐसी ट्रेन जो उसमे बैठने वालों को अनंत काल का दर्शन कराती है।इसमें बैठने वाले अधिकतर लोग उस बिमारी से संघर्ष करते नजर आते है जिसके लिए वे खुद जिम्मेदार नही है।ये कोई साधारण बिमारी नही और न ही ये कोई साधारण ट्रेन है। इस आसाधारण बिमारी का नाम है 'कैंसर' और इस ट्रेन का नाम है 'कैंसर ट्रेन'। पंजाब के

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पर्यावरण और हम

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इतनी भीषण गर्मी, हर साल टूटता गर्मी का रिकार्ड, सालाना काटे जा रहे करोड़ो पेड़, नदियाँ सूखने की कगार पर, प्रतिदिन हजारो नई गाड़िया सड़को पर, रोज बढ़ता हुआ प्रदूषण, दूषित होती वायु ,थोड़ी दूरी के लिए भी बाइक , कार का प्रयोग, सी.ऍफ़.सी का बढ़ता प्रकोप और कार्बन उत्सर्जन में कोई कमी नही।पर्यावरण दिवस में नाम प

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आज ज़ोया की ऑफिस में एक महत्वपूर्ण मीटिंग थी! लेकिन कल रात से ही उसकी तबियत कुछ ठीक नही लग रही थी। आज सुबह जब ज़ोया उठी तो उसे बहुत कमजोरी महसूस हो रही थी , फिर भी उसने दोनों बच्चों को स्कूल भेजा , पति को ऑफिस ,सास-ससुर के लिए दोपहर का खाना बनाया ,घर की सफाई की और खुद तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल गई। त

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एक बड़े व्यापारी की दो बेटियां थी - श्रद्धा और प्रतिष्ठा । समय बीतता गया और दोनों विवाह योग्य हुई। उनके पिता ने उनके लिए दो वरों का चयन किया- यथार्थ और काल्पनिक। एक दिन दोनों वरों को दोनों कन्याओं से मिलने के लिए बुलाया गया। दोनों लड़कियां देखने में अतिसुन्दर लेकिन स्वभाव में दोनों एकदम विपरीत जहाँ एक

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एक पेड़ की दो सुखी टहनियां टूट कर नीचे गिर गई! एक टहनी फूल के पौधों के नीचे तो दूसरी कीचड़ में जा गिरी। कुछ समय बाद एक टहनी से सुगन्ध और दूसरी टहनी से दुर्गंध आने लगी।दोनों टहनियां जब मिली तो आपस में विचार करने लगी कि हम दोनों एक ही पेड़ के हिस्से है,फिर भी हमारी महक का इतना अंतर क्यों? सुगन्धित टहनी न

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सुचित्रा और माँ

14 जुलाई 2017
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सुचित्रा प्रतिदिन कालेज से लौटकर, वहाँ होने वाली परेशानियों का रोना लेकर माँ के सामने बैठ जाती थी।कभी सहेली न बनने की दिक्कत, कभी सहेलियों से होने वाले झगड़े,कभी लड़को से कहा-सुनी तो कभी अध्यापको के उसके प्रति बुरे बर्ताव की दिक्कत। माँ प्रतिदिन उसकी इन बातों को ध्यान से सुनती और सांत्वना देती की सब ठ

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बहू : बेटी या बहू

19 जुलाई 2017
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समाज में अक्सर सुनने और देखने को मिलता है की बेटे को बेटे की तरह, बेटी को बेटी की तरह,पिता को पिता की तरह,माता को माता की तरह , सास-ससुर को सास-ससुर की तरह और तो और दामाद को दामाद की तरह प्यार,सम्मान और आदर देते है लेकिन जब बात बहू की आती है तो बहू को बेटी की तरह प्यार करने की बात होने लगती है। जब ह

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वो बच्चे

2 अगस्त 2017
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घर में घुसते ही उसने देखा! कि आज फिर, माँ अगल-बगल के गरीब बच्चों के साथ खाना खा रही है। माँ को ऐसा करते देख वो बोली ," माँ तुम एक सुबह से उठकर घर की सफाई करती हो, अच्छे अच्छे पकवान बनाती हो और इन बच्चों को बुलाकर घर तो गन्दा करवाती ही हो और सारा खाना भी इन्हें ही खिला देती हो, इतनी मेहनत कर के आखिर

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