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ज़ोया और समाज

8 जून 2017

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आज ज़ोया की ऑफिस में एक महत्वपूर्ण मीटिंग थी! लेकिन कल रात से ही उसकी तबियत कुछ ठीक नही लग रही थी। आज सुबह जब ज़ोया उठी तो उसे बहुत कमजोरी महसूस हो रही थी , फिर भी उसने दोनों बच्चों को स्कूल भेजा , पति को ऑफिस ,सास-ससुर के लिए दोपहर का खाना बनाया ,घर की सफाई की और खुद तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल गई। तबियत ठीक न होने की वजह से नाश्ता भी नही किया। ऑफिस पहुँच के वहाँ का काम निपटाया और शाम को ऑफिस से लौटते वक़्त मेडिकल से अपनी तबियत के लिए कुछ दवाइयां ली और वापस घर आ गई। सुबह से लगातार काम कर के बहुत ज्यादा थक चुकी थी ऊपर से तबियत भी ठीक नही लेकिन घर का काम तो करना ही होता है। जूस के साथ दवाइयां लेकर अपने काम में लग गई। इस टाइम भी उसका कुछ खाने का मन नही था और कमजोरी भी थी। लेकिन किसी तरह रात का खाना बनाकर , सबको खिलाकर ,खुद बिना खाये(तबियत की वजह से) सो गई। प्राचीन काल से लेकर आज तक ये स्थिति केवल ज़ोया की ही नही लगभग सभी महिलाओं की है। शारीरिक समस्या का सामना करते हुए ज़ोया ने अपने प्रतिदिन के काम को जिस खूबसूरती और लगन के साथ बिना रुके , बिना किसी से अपनी समस्या कहे अपने कर्म को अपना धर्म मानते हुए पूरी निपुणता के साथ निभाया है , इतना महान काम केवल एक स्त्री ही कर सकती है। शायद इसी लिए स्त्रियों को ईश्वर की एक अद्भुद अनमोल और शक्तिशाली रचना माना जाता है । उनमे त्याग , बलिदान, वात्सल्य और दूसरों के लिए खुद को न्यौछावर करने जैसे गुणों का विकास समय और परिस्थितियों के अनुसार स्वतःहो जाता है। कुछ एक स्त्रियों को छोड़ दिया जाय तो लगभग सभी स्त्रियों में अपने लक्ष्य को बिना ध्यान भटकाये प्राप्त करने की एक अद्भुद क्षमता होती है , चाहे सामने कितनी भी परेशानियां क्यू न आ जायें वो अपने मार्ग से विचलित नही होती। शायद इन्ही गुणों की वजह से आज स्त्रियां निरन्तर प्रत्येक क्षेत्र में नए मुकाम हासिल कर रही है। लेकिन आज भी जब स्त्रियां किसी क्षेत्र में पीछे नही है , हमारे समाज में कुछ ऐसी बुराइयां है जो उन्हें निरन्तर पीछे धकेलने का काम कर रही है जैसे दहेज,छेड़छाड़,बलात्कार,शोषण, अत्त्याचार आदि। इन बुराइयों में अधिकतर वो ही लिप्त पाये जाते है जिनके लिए ये स्त्रियां अपने प्राण तक न्यौछावर करने के लिए तैयार रहती है। सहनशीलता ! जो की स्त्रियों का एक विशेष गुण है जिसकी वजह से ये बुराइयां निरन्तर अपने पाँव पसार रही है! कितना भी अत्याचार क्यू न हो जाए ये सहन करती रहती है , तब तक! जब तक पानी सिर से ऊपर न चला जाए, कई बार तो सहनशीलता के कारण जान भी गवानी पड़ती है। इसलिए अब जरूरत है खुद को आधुनिक परिस्थितियों के अनुसार ढालने की, अपने अद्भुद गुणों को और विकसित करने की और कुछ गुणों का त्याग करने की। ताकि समय रहते उन बुराइयों से बचा जा सके जिसकी वजह से हम पीछे धकेल जा रहे है, पानी को घुटनों तक ही रोक दिया जाय सिर तक पहुंचने न दिया जाय। खुद की परेशानी और समस्याओं को सहने की जगह अपनों से कहने की आदत डालें। खुद के साथ होने वाले छोटे से छोटे अत्त्याचार और शोषण के खिलाफ आवाज उठायें , खुद अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहे और दूसरों को भी जागरूक करे।

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